भारत सरकार के साहसिक प्रयोग के कारण इस देश की धरती अब चीतों से आबाद होने जा रही है। आज नामीबिया से चार्टर्ड विमान के द्वारा आठ चीते भारत पहुंच रहे हैं। यह विमान पहले जयपुर पहुंचेगा और फिर वहां से चीतों को हेलीकॉप्टर के जरिए मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान ले जाया जाएगा। देश में चीतों को फिर से बसाने की इस महत्वपूर्ण परियोजना के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिन के अवसर पर इन चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में गृह प्रवेश कराएंगे। इस परियोजना पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय अगले ५ वर्षो में करीब ९० करोड़़ रुपये खर्च करेगा। भारत में आखिरी चीते को १९४७ के आसपास मार दिया गया था और तब से यहां इनकी प्रजाति विलुप्त रही है। भारत में इस परियोजना को लेकर उत्साह भी है और आशंका भी है। कुनो के जंगलों में इन चीतों को बसाने को लेकर वाइल्ड लाइफ से जुड़े पर्यावरणविदों के बीच मतैक्य नहीं है। एक वर्ग का मानना है कि चीता प्रमुख शिकारी जंतु है‚ जिससे जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षक सेवाओं को लाभ मिलेगा। इतना ही नहीं बल्कि यह एकमात्र ऐसी प्रजाति है जो स्वतंत्र भारत में विलुप्त हुई और कुनो अभ्यारण में इनकी उपस्थिति से स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए इस वर्ग के पर्यावरणविद चीतों को यहां बसाने की मांग कर रहे थे। इनका तर्क है कि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में फूड चेन असंतुलित हो रहा था और इनके आने से यह असंतुलन ठीक हो जाएगा‚ जबकि दूसरे पर्यावरणविदों का मानना है कि यह परियोजना जोखिम पूर्ण हो सकती है क्योंकि यह उद्यान चीतों के लिए आदर्श नहीं है। इस वन क्षेत्र में चीतों और अन्य शिकारी जानवरों के बीच खाने के लिए होने वाले संघर्ष में चीतों को पर्याप्त शिकार प्राप्त नहीं हो सकेगा। इसलिए इस परियोजना को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं। दक्षिण अमेरिकी देश नामीबिया से चीतों के कृत्रिम अंतरमहाद्वीपीय स्थानांतरण से पर्यावरणविदों के बीच मतभेद होना स्वाभाविक है‚ लेकिन सरकार ने सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने के बाद ही इस परियोजना को अंजाम दिया है। आगे पता चलेगा कि अमेरिकी चीते भारत के पर्यावरण के अनुकूल अपने को ढाल पाते हैं या नहीं।
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