दिल्ली सरकार का अद्भुत विज्ञापन और प्रचार अभियान मॉडल सिर्फ आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की विफलताओं को ढकने का माध्यम है। जमीनी स्तर पर ये सभी मॉडल सिर्फ सरकार की नाकामयाबियों को छुपाने का साधन बन कर रह गया है। ऐसी ही एक विफल योजना ‘मोहल्ला क्लीनिक’ है‚ जो दिल्ली के लोगों के साथ विश्वाासघात है और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल के विचार से भी कोसों दूर हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वर्ष २०१५ से ‘मोहल्ला क्लिनिक’ नामक एक स्वास्थ्य पहल परियोजना शुरू की‚ जिसका मुख्य उद्देश्य गरीबों की मदद करना और बड़े अस्पतालों की भीड़ को कम करना था। इस पहल से लोगों को स्वास्थ्य सेवा उनके दरवाजे तक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करता है ताकि उन्हें अस्पतालों में भागना न पड़े। ऐसा दावा है कि ‘मोहल्ला क्लिनिक’ में २१२ से अधिक प्रकार के चिकित्सा परीक्षण निःशुल्क किए जाते हैं।
मोहल्ला क्लिनिक की पहली समस्या ‘उपचार दृष्टिकोण समस्या’ हैं। दिल्ली सरकार के आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार अभी दिल्ली में ५१८ ‘मोहल्ला क्लिनिक’ हैं। कुछ न्यूज रिपोर्ट के अनुसार १०० ‘मोहल्ला क्लिनिक’ और बन रहे हैं। दिल्ली सरकार के ही रिकॉर्ड के अनुसार वित्त वर्ष २०२०–२१ में १‚५२‚५८‚४४० लोगों ने मोहल्ला क्लिनिक ओपीडी का लाभ लिया‚ लेकिन इनमें से सिर्फ ५‚३५‚६६६ लोगों का ही ‘ब्लड टेस्ट’ हुआ। यानी प्रत्येक १०० लोगों पर ३.५ व्यक्ति के ही रक्त की जांच हुई। इसका सीधा अर्थ है‚ ९७.५ फीसद लोगों का लक्षण के आधार पर इलाज नहीं किया गया। बीमारी का मूल कारण जाने बिना यदि हम कुल केस के ५ फीसद लोगों को भी गंभीर बीमारी मान कर चलें तो लाखों लोगों की बीमारी का पता ही नहीं चला। सिर्फ उसे दवा दे दी गई। इसका खतरा यह है कि रोग फिर दोगुनी शक्ति के साथ आएगा। जिनके रक्त की जांच भी हुई (बस एक या दो चीजों का) परिणामस्वरूप अन्य बीमारियों छिप गइ और गंभीर रूप में सामने आई।
मोहल्ला क्लिनिक की दूसरी समस्या ‘ संरचनात्मक’ हैं‚ जिसमें कई समस्याएं शामिल हैं। पहला‚ सभी ‘मोहल्ला क्लिनिक’ में महिला डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। दूसरा‚ ड़ॉक्टरों के अलावा बाकी सहायक कर्मचारी की कमी आपको लगभग हर मोहल्ला क्लिनिक में मिलेगी। तीसरा‚ दवा की उपलब्धता भी कम है। बहुत सी दवाइयां बाहर से लेनी पड़ती हैं। चौथा‚ बिना ‘आधार कार्ड’ के आपको रक्त जांच रिपोर्ट नहीं मिलती है। ‘मोहल्ला क्लिनिक’ की तीसरी समस्या इसका राजनीतिकरण है। इसका उद्देश्य मानव सेवा न होकर‚ चुनावी हथकंडा बन गया है। आए दिन इसे लेकर आप‚ भाजपा और कांग्रेस के बीच एक–दूसरे को घेरने के लिए आरोप–प्रत्यारोप चलते रहते हैं। परिणामस्वरूप सरकार इसमें जिस धन का प्रयोग सुधार और व्यवस्थाएं बेहतर बनाने के लिए कर सकती थी‚ उसका प्रयोग केवल पोस्टर और टेलीविजन तथा अन्य प्रचार माध्यमों पर कर रही है। के अनुसार २०१२ की तुलना में २०२१–२२ में दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर ४२०० फीसद अधिक खर्च हुआ है‚ जो ११.१८ करोड़ से बढ़ कर ४८८.९७ करोड़ हो गया है। ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली में मोहल्ला क्लिनिक से पहले हेल्थ सेंटर नहीं थे‚ पूरे देश की तुलना में यहां हमेशा से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध रही हैं‚ लेकिन जिस तरह से विज्ञापन के द्वारा पिछली सरकार के कामों को भी अपना लिया गया‚ इससे सिर्फ राजनीतिक बढ़त होती है न की स्वास्थ्य सेवा बेहतर होती है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली सरकार केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना दिल्ली में लागू नहीं किया है‚ जिसके अंतर्गत लाभार्थी सरकारी अथवा निजी अस्पताल में ५ लाख तक ही मुफ्त स्वास्थ्य सेवा नहीं ले सकते हैं।
अंत में हम कह सकते हैं कि मोहल्ला क्लिनिक में समाज के सबसे वंचित वर्गों के लोग आते हैं‚ जिनके पास स्वास्थ्य के अलावा और कोई संपत्ति नहीं हैं। यदि इनके पास यह भी नहीं रहा तो ये कैसे एक समावेशी समाज और देश का निर्माण कर सकते हैंॽ क्योंकि स्वास्थ्य विकास की प्राथमिक शर्त है। इस नाते दिल्ली सरकार को चाहिए कि दिल्ली का बजट स्वास्थ्य सेवा पर खर्च हो न कि उसके विज्ञापन पर। मोहल्ला क्लिनिक में हमेशा दो डॉक्टर बैठें‚ जिसमें से एक महिला डॉक्टर की उपस्थिति अवश्य हो‚ जो भी प्रक्रियात्मक अवरोध है‚ उसे तत्काल प्रभाव से दूर किया जाना चाहिए। कुल मिला कर ‘मोहल्ला क्लिनिक’ चुनाव प्रचार और वोट बटोरने का औजार नहीं‚ बल्कि मानव सेवा का केंद्र होना चाहिए‚ तभी इसमें निरंतर सुधार संभव है। विज्ञापन और प्रचार में व्यस्त यह सरकार आम व्यक्तियों की आवश्यकता और सुविधाओं को मीलों दूर छोड़ आई है यहां तक कि आए दिन जिस तरह से इनके घोटालों की जांच देश की प्रमुख जांच एजेंसियां कर रही हैं‚ उससे एक बात तो साफ हो चुका है कि यह सरकार न केवल अपना कर्तव्य भूल गई है बल्कि इन्होंने ईमानदार राजनीति की बात कही थी‚ वह भी झूठी साबित हो रही है।