तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव जीतने के बाद सबसे मजबूत विपक्षी चेहरे के रूप में उभरी थीं। भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार और चुनावी रणनीति के कारण ममता के लिए यह चुनाव बहुत कठिन हो गया था। जाहिर है चुनाव जीतने के बाद उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा काफी बढ़ गई थी। ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए काफी सक्रिय भी हुइ थीं। वह राजधानी दिल्ली आइ और कई विपक्षी नेताओं के साथ उनकी मुलाकातें भी हुइ। इस दौरान संसद और संसद के बाहर तृणमूल कांग्रेस की गतिविधियां इशारा कर रहीं थी कि पार्टी का उद्देश्य कांग्रेस को कमजोर करना था। जाहिराना तौर पर कांग्रेस को कमजोर किए बिना तृणमूल कांग्रेस विपक्षी एकता की धुरी नहीं बन सकती‚ लेकिन तृणमूल कांग्रेस की इस रणनीति के कारण संयुक्त विपक्षी मोर्चा बनाने की प्रक्रिया में बाधक बन गया। विपक्षी नेताओं को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि कांग्रेस को साथ लिये बिना विपक्षी एकता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विपक्षी एकता की दूसरी सबसे बड़ी अड़़चन यह है कि आगामी लोक सभा चुनाव में विपक्ष का नेता कौन होगा इस सवाल पर सहमति नहीं बन रही है। २०२४ के लोक सभा चुनाव से पहले विपक्षी खेमे का जो राजनीतिक परिदृश्य सामने आया है उसमें विपक्ष के नेता की दावेदारी के लिए चार नेताओं के नाम सामने आए हैं–ममता‚ चंद्रशेखर राव‚ केजरीवाल और नीतीश कुमार। राजनीति की पहेलियां देखिए कि इसमें से कोई भी अपने को दावेदार नहीं मान रहा। २०२१ में जब ममता बनर्जी से पूछा गया था कि २०२४ में विपक्ष का नेता कौन होगा तो उन्होंने कहा था कि मैं ज्योतिष नहीं हूं। एनड़ीए से अलग होने के बाद जद (यू) नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता की डफली बजा रहे हैं। ममता बनर्जी की तर्ज पर इन्होंने भी पिछले दिनों राजधानी दिल्ली का दौरा किया और विपक्षी नेताओं से मुलाकात कीं। नीतीश कुमार ने ज्योतिष की तरह भविष्यवाणी कर दी कि भाजपा २०२४ के चुनाव में ५० सीटों पर सिमट जाएगी। रोचक बात यह है कि नीतीश कुमार भी कह रहे हैं कि मैं प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं हूं‚ लेकिन तेजस्वी उनको प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। राकांपा नेता शरद पवार भी प्रधानमंत्री पद का चेहरा नहीं होंगे। विपक्षी एकता की इस कवायद में हर नेता इसके लिए त्याग की मूर्ति बना हुआ है। आगे देखना है कि विपक्षी एकता की इस मुहिम के क्या परिणाम सामने आते हैंॽ
बृजभूषण शरण सिंह नहीं, कैसरगंज से लड़ेंगे उनके बेटे करन भूषण सिंह!
यूपी की हाई-प्रोफाइल सीटों में से एक गोंडा जिले की कैसरगंज सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को लेकर चल रहा सस्पेंस...