पितरों के तर्पण के लिए पितृपक्ष शनिवार से शुरू हो गया है। यह 25 सितंबर तक चलेगा। पहले दिन शनिवार को अगस्त्य ऋषि का तर्पण होगा। वहीं प्रतिपदा का श्राद्ध 11 सितंबर रविवार से आरंभ होगा। शनिवार भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा के दिन देवता और ऋषि-मुनियों का तर्पण शंख में जल, अक्षत, पुष्प, सुपारी, द्रव्य रखकर किया जाएगा। रविवार आश्चिन कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक पितरों का तर्पण, श्राद्ध, दान आदि शुरू हो जाएगा।
मान्यता है कि पितृपक्ष में समर्पण की भावना से श्रद्धा पूर्वक किया गया तर्पण पितरों को स्वीकार होता है। ज्योतिष आचार्य पंडित राकेश झा ने बताया कि पितरों को जल व तिल द्वारा तर्पण किया जाता है इससे उनकी आत्मा तृप्त होती है। वे प्रसन्न होकर अपने स्वजनों को आशीष देते हैं। जिन लोगों की मृत्यु के दिन के बारे में सही जानकारी न हो या जिनका अकाल मृत्यु हुआ हो तो ऐसे में श्राद्ध अमावस्या तिथि को करने का विधान है।
तीन पुरखों का होगा तर्पण
पितृ पक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह तथा मातृ पक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावे नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह वहीं नानी पक्ष में मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ अन्य गोलोकवासी संबंधियों का गोत्र एवं नाम लेकर तर्पण किया जाता है।
सर्वार्थ सिद्धि योग में 25 को पितृ विसर्जन
11 सितंबर को आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से 25 सितंबर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृ पक्ष रहेगा। 24 सितंबर शनिवार को पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इसी दिन शस्त्रादि से मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों का श्राद्ध होगा। इसके बाद 25 सितंबर रविवार को सर्वार्थ सिद्धि योग व अमावस्या तिथि में स्नान -दान सहित सर्वपैत्री अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृ विसर्जन का महालया पर्व के रूप में संपन्न होगा। इस तिथि को अमावस्या सूर्योदय से लेकर पूरे दिन रहेगा। सर्वपितृ तर्पण का कार्य 25 सितंबर रविवार को करते हुए ब्राह्मण भोजन कराकर पितरों की विदाई की जाएगी।
पितृ पक्ष : एक नजर में
अगस्त्य ऋषि तर्पण- शनिवार, 10 सितंबर
पितृपक्ष आरंभ (प्रतिपदा) – रविवार, 11 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – बुधवार, 14 सितंबर
मातृ नवमी – सोमवार, 19 सितंबर
इंदिरा एकादशी- बुधवार, 21 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध- शनिवार, 24 सितंबर
अमावस्या, महालया व सर्वपितृ विसर्जन – रविवार, 25 सितंबर