अगले महीने भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने और पटरी पर लाने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होगा। मध्य–एशिया के देश उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन के नेताओं की बैठक आयोजित है‚ जिसमें मोदी‚ जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन सहित सदस्य देशों के नेता भाग लेंगे। वर्ष २०२० में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक सैन्य संघर्ष के बाद यह पहला अवसर होगा जब मोदी और जिनपिंग एक ही मंच पर आमने–सामने होंगे। दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता का आधिकारिक कार्यक्रम अभी घोषित नहीं किया गया है। द्विपक्षीय वार्ता वुहान और महाबलीपुरम की अनौपचारिक शिखर वार्ता के बाद होगी जिसमें दोनों नेताओं को सीमा संबंधी जटिल मुद्दों के साथही यूक्रेन‚ हिंद–प्रशांत‚ ईरान और अफगानिस्तान जैसे विश्व मुद्दों पर भी विचारों के आदान–प्रदान का मौका मिलेगा। पूर्वी लद्दाख में सैनिकों के जमाव में कमी नहीं आई है। हालांकि टकराव के कुछ स्थानों पर सैनिकों की अग्रिम तैनाती में कमी आई है। अन्य स्थलों के बारे में भी कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर विचार–विमर्श जारी है। पूरी तरह सामान्य स्थिति कायम करने के लिए जरूरी है कि चीन की सेना जून‚ २०२० के पहले की स्थिति कायम करे। फिलहाल‚ इसकी संभावना नजर नहीं आती‚ लेकिन सीमा पर यदि मौजूदा हालात में कोई नकारात्मक घटनाक्रम नहीं होता तो यह संतोष की बात होगी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति व्यापक द्विपक्षीय संबंधों की बेहतरी की आवश्यक शर्त है।
चीन के नेताओं ने यूक्रेन के घटनाक्रम के संबंध में भारत की तटस्थ भूमिका को सकारात्मक रूप में लिया है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के भारी दबाव के बावजूद भारत ने रूस के सैन्य अभियान की निंदा नहीं की। साथ ही भारत ने रूस से रियायती मूल्य पर कच्चे तेल की आपूर्ति में पूर्व की तुलना में इजाफा कर दिया। रूस के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद उसके साथ लेन देन की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए भी भारत ने उपाय किए। भारत की इस साहसिक नीति से जहां एक ओर भरोसेमंद मित्र देश रूस आश्वस्त हुआ वहीं कृत्रिम भय का शिकार चीन भी सोचने पर मजबूर हुआ। विदेश मंत्री जयशंकर ने हाल में कहा कि एशिया के देशों के बीच एकजुटता के बलबूते ही एशिया की शताब्दी का सपना पूरा हो सकता है। भारत और चीन यदि एक साथ आते हैं तो यह सपना साकार होगा‚ नहीं आते हैं तो यह संभव नहीं होगा। चीन के प्रति इस लचीले रु ख के बावजूद जयशंकर स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत किसे दोस्त बनाए‚ किसे नहीं तथा किस मंच में शामिल हो‚ किस में नहीं‚ इस संबंध में वह किसी अन्य देश को वीटो नहीं देगा। जाहिर है भारत हिंद–प्रशांत के मंच क्वाड़ में भागीदारी को लेकर चीन के किसी ब्लैकमेल में आना वाला नहीं।
शंघाई सहयोग संगठन की शिखर वार्ता के बाद नवम्बर में इंड़ोनेशिया के बाली में जी–२० देशों के नेताओं की शिखर वार्ता आयोजित है। इसमें रूस के राष्ट्रपति पुतिन और आजकल उनके दुश्मन बने पश्चिमी देशों के नेताओं को शिरकत करनी है। पश्चिमी देशों में यह आवाज उठ रही है कि पुतिन को शिखर वार्ता में भाग लेने से रोका जाए। यूक्रेन के घटनाक्रम के संबंध में इंडोनेशिया भी भारत की तरह तटस्थ रुख अपनाता है। इस बात की संभावना नहीं है कि वह पुतिन को शिखर वार्ता में भाग लेने का निमंत्रण न दे।
भारतीय विदेश नीति के लिए अगले कुछ सप्ताह और महीने अग्नि परीक्षा की घड़ी होंगे। इसका कारण यह है कि यूक्रेन के हालात बिगड़ रहे हैं‚ अमेरिका और पश्चिमी देशों के आधुनिक हथियारों और उपग्रहों के जरिए हासिल सूचनाओं के आधार पर यूक्रेन रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों में दूर तक विध्वंसक कार्रवाइयां कर रहा है। वास्तव में रूस आज यूक्रेन के विरुद्ध नहीं‚ बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों सहित ५० देशों की सैन्य शक्ति का मुकाबला कर रहा है। आगामी दिनों में स्पष्ट होगा कि इस प्रछन्न युद्ध का मुकाबला रूस कैसे करेगा। भयावह स्थिति यह होगी कि रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो देशों के बीच सीधा संघर्ष आरंभ हो जाए। ये हालात भले तीसरे विश्व युद्ध में न बदलें लेकिन सीमित स्तर के परमाणु युद्ध की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।