विधान सभा में प्रधानमंत्री की यात्रा को गौरवशाली और अविस्मरणीय बनाने की तैयारी की गई है। विधान सभा भवन के कलात्मक सौंदर्य और बिहार की विधायिका के प्रतीक के रूप में इसकी स्मृति में एक शताब्दी स्मृति स्तम्भ बनाया गया है। इस निर्णय को आकार देने के लिए भारत के राष्ट्रपति के द्वारा इस स्मृति स्तम्भ का शिलान्यास किया गया ‚ जिसमें राज्यपाल‚ मुख्यमंत्री एवं विधान सभा अध्यक्ष भी उपस्थित थे। यह शताब्दी स्मृति स्तम्भ अब लगभग बनकर तैयार है‚ जिसका अनावरण एवं लोकार्पण भारत के प्रधानमंत्री द्वारा होना है। यह स्मृति स्तम्भ कुल ४० फीट की ऊँचाई का होगा। इसमें २५ फीट कंक्रीट का अष्टकोणीय स्तम्भ रहेगा। जिसके चारो ओर सैंड स्टोन के पत्थर लगे होंगे और स्तम्भ के उपर १५ फीट ऊँचा ब्रान्ज मेटल का बोधि वृक्ष का पौधा होगा। इस पौधे की प्रतिकृति वही है जो संसद के संग्रहालय में बिहार प्रान्त के प्रतीक चिन्ह के रूप में रक्षित है। यह उसी की प्रतिकृति होगी। इसमें २४३ बडे पत्ते होंगे जो बिहार विधान सभा के २४३ और विधान परिषद के ७५ सदस्यों के प्रतीक होंगे। इसके अलावा छोटे–छोटे पत्ते होंगे जो जिला या प्रखंड को प्रदर्शित करेंगे इसके नौ मोटे तने होंगे जो बिहार के नौ प्रमंडलों के प्रतीक के रूप में रहेंगे। इसमें अंजीर का माला लटकती रहेगी तथा स्वास्तिक का चिन्ह भी रहेगा। इस अष्टकोणीय स्तम्भ के चारों दिशाओं में अंजीर की माला और स्वास्तिक चिन्ह रहेगी। इसमें चारो ओर लाइटिंग का व्यवस्था की गयी है जो इसे खूबसूरती प्रदान करेगा। बिहार विधान सभा के परिसर में बना यह स्मृति स्तम्भ‚ भविष्य में पर्यटन का केन्द्र भी होगा। सभी लोगों को यह आकर्षित करेगा। इसकी प्रतिकृति को विधान सभा के मुख्य द्वार के पास रखा गया है। यह स्मृति स्तम्भ बिहार विधान सभा के पूरे परिसर को और इसके पार्क को बहुत ही खूबसूरत बनाता है। इस स्मृति स्तम्भ से थोडी ही दूर पर बोध गया के पवित्र बोधि वृक्ष के शिशु पौधे का रोपण भी भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया गया है। प्रधानमंत्री विधान सभा परिसर में कल्पवृक्ष के पौधे का भी रोपन करेंगे। कल्पवृक्ष को कल्पद्रुप‚ कल्पतरु‚ सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता जैसे नामों से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त ४४ रत्नों में कल्पवृक्ष भी एक था। धरती पर इस वृक्ष को इच्छाओं की पूर्ति करने वाला वृक्ष माना जाता । कल्पवृक्ष काफी विशालकाय बरगद वृक्ष के समान होता है। अगस्त माह में इसमें सफेद फूल आते हैं जो सूखने के उपरांत सुनहरे रंग के हो जाते हैं। इसके फूल कमल के फूल में मौजूद असंख्य कलियों जैसे होते हैं। इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। यह वृक्ष लगभग सत्तर फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास पैतीस फुट तक हो सकता है। भारत में रांची‚ अल्मोडा‚ काशी‚ नर्मदा किनारे‚ कर्नाटक और यूपी आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। औषध गुणों के कारण भी इस वृक्ष की पूजा की जाती है। इसमें संतरे से ६ गुना ज्यादा विटामिन सी होता है। गाय के दूध से दोगुना कैश्लियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसकी पत्ती को धो–धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड की छाल‚ फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है। इसके पत्तों में एलर्जी‚ दमा‚ मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। एक तरफ जहां ये वृक्ष अपने औषधीय गुणों की वजह से जाना जाता है वहीं ये पर्यावरण के लिहाज से भी काफी लाभदायक है।
बिहार विधान सभा के अतिथिशाला का शिलान्यास का भी कार्यक्रम है। वर्त्तमान में बिहार विधान सभा का अपना कोई अतिथिशाला नहीं रहने के कारण अन्य राज्यों से आने वाले सदस्यगण एवं अतिविशिष्टगण को ठहराने में बिहार विधान सभा को कठिनाई हो रही है। इसी कठिनाई को देखते हुए बिहार विधान सभा के लिए अतिथिशाला के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई। बिहार विधान सभा के अतिथिशाला का निर्माण बिहार विधान सभा के पास ही ऑफ माल रोड‚ पटना में प्रस्तावित है। उक्त अतिथिशाला का निर्माण ग्राउंड प्लस टू में किया जायेगा। वर्तमान में अतिथिशाला में सोलह कमरे एवं सात स्यूट का निर्माण प्रस्तावित है। इसके साथ ही अतिथिशाला में पाकिंर्ग‚ जिम‚ मीटिंग करने के लिए हॉल एवं कैंटिन की व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। पीएम द्वारा बिहार विधान सभा संग्रहालय का भी शिलान्यास किया जायेगा। संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में बिहार विधान सभा लोकतंत्र का सबसे बडा मंदिर हैं‚ जहाँ बिहार की जनता के जीवन को सरल‚ सुगम‚ समृद्ध बनाने के लिए जनता द्वारा चुने गये विधायकगण अपने विधायी अधिकारों का प्रयोग करते हैं। अपने १०० वर्ष के सफर में बिहार विधान सभा द्वारा लोकहित में उठाये गये कायोंर् को भौतिक एवं डिजीटल स्वरूप में संग्रह करने की व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप देने के लिए एक संग्रहालय की निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई है। उक्त संग्रहालय में डिजीटल स्वरूप में बिहार विधान सभा के गठन से अबतक के सभी मुख्यमंत्रीगण‚ बिहार विधान सभा के सभी अध्यक्षगण एवं सभी सदस्यगण के द्वारा किए गए कायोंर् की जानकारी रहेगी और विगत सौ वषोंर् में विधायिका से संबंधित इतिहास इसमें संरक्षित रहेगा। संग्रहालय का निर्माण स्थल का चयन बिहार विधान सभा परिसर में ही प्रस्तावित किया गया है । इसका प्रवेश द्वार बिहार विधान सभा के परिसर के अंदर की ओर से तथा हाडिंर्ग रोड में बाहर की ओर से बनाने का प्रस्ताव है जिससे कि आम जनता उक्त संग्रहालय में बिना किसी रूकावट के सुगमता से आकर संसदीय लोकतंत्र के संबंध में जानकारी प्राप्त कर पायेगे।