मध्य प्रदेश आखिर रणजी ट्रॉफी की चैंपियन बन गया। उन्होंने रिकॉर्ड़ ४१ बार चैंपियन रही मुंबई टीम को हराकर यह उपलब्धि हासिल की। मध्य प्रदेश की टीम २३ साल पहले मौजूदा कोच चंद्रकांत पंडि़त की कप्तानी में फाइनल तक चुनौती पेश कर चुकी थी। लेकिन उस समय कर्नाटक उसकी राह में बाधा बन गया था। लेकिन पंडि़त जो काम कप्तान के तौर पर नहीं कर पाए थे‚ उसे कोच के तौर पर पूरा कर दिया। मध्य प्रदेश भले ही पहली बार रणजी चैंपियन बना है। लेकिन १९५६ में उसके खेलना शुरू करने से पहले इस राज्य की होल्कर टीम इस चैंपियनशिप में एक दशक से ज्यादा समय तक दबदबा बनाए रखने में सफल रही थी। उन्होंने १९४५–४६ से लेकर १९५२–५३ के बीच चार बार खिताब जीता और करीब इतनी ही बार उपविजेता भी रही। यह वह दौर था‚ जब इस टीम से सीके नायडू़‚ सीएस नायडू़‚ मुश्ताक अली और चंदू सरवटे जैसे दिग्गज खेला करते थे। लेकिन मध्य प्रदेश के खेलना शुरू करने तक उसका जलवा खत्म हो चुका था। हमारे यहां पहले क्रि केट मेट्रो शहरों तक केंद्रित थी। लेकिन २००० के बाद से क्रिकेट में छोटे शहरों के क्रिकेटरों का जलवा दिखना शुरू हो गया था। बाद में आईपीएल ने क्रिकेट को सारे देश में फैला दिया। असल में अब हर राज्य के युवा क्रिकेटरों को अंतरराष्ट्रीय सितारों के साथ खेलने का मौका मिलता है‚ इससे उनका विश्वास बढ़ता है और घरेलू क्रिकेट में अपने राज्य की तरफ से खेलते समय उन्हें इसका फायदा मिलता है। मध्य प्रदेश को चैंपियन बनाने में बल्लेबाज रजत पाटीदार और स्पिन गेंदबाज कुमार कार्तिकेय ने अहम भूमिका निभाई। इन दोनों ने ही आईपीएल में खेलकर भरोसा प्राप्त किया। रजत ने तो आरसीबी के लिए नॉकआउट चरण में शतक जमाया था। इस भरोसे की वजह से ही फाइनल में भी शतक लगाने में सफल रहे। वैसे उन्होंने इस सीजन में छह मैचों में ८२ से ऊपर के औसत से ६५८ रन बनाए और कार्तिकेय ने मुंबई इंडि़यंस से खेलकर पहचान बनाई और रणजी सीजन में ३२ विकेट लेकर विकेट लेने के मामले में दूसरे नंबर पर रहे। आज छोटे शहरों की प्रतिभाओं को चमक बिखेरकर भारतीय टीम में स्थान बनाने का मौका मिल रहा है‚ जिससे भारतीय टीम की सप्लाई लाइन मजबूत हुई है‚ और इसी के चलते अब हम राष्ट्रीय स्तर पर दो टीमें उतारने में सफल रहे हैं।