पूर्वोत्तर के कई राज्य इन दिनों भीषण बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में हैं। बाढ से सैकड़़ों लोग बेघर हो गए हैं और लाखों लोगों का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। प्रमुख राज्यों असम और मेघालय में बाढ़ की वजह से हालात अधिक खराब हैं। यहां जान–माल का भारी नुकसान हुआ है। दोनों राज्यों में अब तक ४२ लोगों की मृत्यु हो चुकी है और ४७ लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं। बाढ़ की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि असम के ३३ में से ३२ जिले बाढ़ग्रस्त हैं। पूरे राज्य में कई जगह राहत शिविर बनाए गए हैं जिनमें विस्थापित लोगों ने शरण ली है। असम के निचले इलाकों में हालात कुछ अधिक ही खराब कहे जा सकते हैं। राज्य की प्रमुख नदियां ब्रह्मपुत्र‚ सुबनिसरी‚ कोपीली और मानस खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। वन्य जीव भी बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के कई इलाके पानी में डू़बे हुए हैं। अनेक वन्य जीव असमय काल कवलित हो गए हैं। मेघालय में भी बाढ़ से भारी तबाही के हालात हैं। कई इलाकों में लोग बाढ़ और भूस्खलन की वजह से फंसे हुए हैं। पिछले सात दिनों में ही राज्य में १८ लोगों की बाढ़ संबंधित कारणों से मौत हुई है। त्रिपुरा में भी भारी बारिश के बाद बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं। हजारों लोग अपने घरबार छोड़कर सुरक्षित स्थानों कर जाने को मजबूर हैं। राज्य के अनेक सड़क मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए हैं और राज्य का संपर्क देश के दूसरे इलाकों से पूरी तरह कट गया है। मणिपुर से भी भारी बारिश के कारण बाढ़ के हालात बने हुए हैं। असम में इस साल बाढ़ की वजह से जो तबाही हुई है वैसी पहले कभी नहीं हुई। देखा जाए तो असम में कई दशकों से हालात जस के तस बने हुए हैं। राज्य में हर साल भारी बाढ़ आती है और जबर्दस्त तबाही होती है। पूर्वोत्तर के राज्यों में बाढ़ का स्थायी समाधान संभव ही नहीं है। पर्वतीय राज्यों में चाहे वह पूर्वोत्तर के राज्य हों या उत्तराखंड़ और हिमाचल प्रदेश बाढ़ जीवन का स्थायी दंश है। तेज प्रवाह वाली पहाड़़ी नदियां जब उफान पर आती हैं तो इससे होने वाले नुकसान का मूक दर्शक बने रहने के अलावा मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। बाढ़ग्रस्त इलाकों में जनजीवन की क्षति रोकने के लिए राहत सामग्री का त्वरित वितरण और क्षतिग्रस्त मार्गों का जल्द से जल्द दुरुस्त कराना बड़े़ काम का साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक‚ ग्लोबल वामिग भी बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं के लिए जिम्मेदार हैं‚ लेकिन जब तक दुनिया भर के देश एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहेंगे और आरोप–प्रत्यारोपों में लिप्त रहेंगे तब तक स्थिति का सुधरना मुश्किल है।
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