राष्ट्रपति चुनाव 2022 ( President Election 2022) में विपक्षी दलों को फिलहाल कोई उम्मीदवार नहीं मिल पाया है. राष्ट्रपति पद के लिए उचित उम्मीदवार की तलाश में विपक्षी दलों की शुरुआती बैठक में किसी नाम पर सहमति नहीं बन सकी. वहीं प्रस्तावित दो बड़े नामों ने विपक्ष की ओर से उम्मीदवार बनने के लिए मना कर दिया. चर्चा में आने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ( NCP) सुप्रीमो शरद पवार और नेशनल कांफ्रेंस ( National Confrence) के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने अनिच्छा जता दी. दूसरी ओर बताया जा रहा है कि विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश में जुटीं तृणमूल कांग्रेस ( TMC) सुप्रीमो ममता बनर्जी भी विपक्षी एकता से दूरी बरत रही हैं.
क्यों सक्रियता नहीं दिखा रही सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी
इस बीच सदन में विपक्ष की सबसे पड़ी पार्टी कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चर्चाओं में कम सक्रिय नजर आ रही है. कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के कोरोनाग्रस्त होने, नेशनल हेराल्ड केस में ईडी की नोटिस, राहुल गांधी से जारी पूछताछ और सड़क पर प्रदर्शन पर जुटे केंद्रीय नेतृत्व की व्यस्तता को इसकी बड़ी वजह बताया जा रहा है. वहीं चर्चा है कि इस मामले में कांग्रेस बाकी दलों का मूड भांप कर आखिर में बड़ा दांव भी खेल सकती है. विपक्षी दलों की अब तक हुई बैठकों में कांग्रेस की सक्रियता नहीं के बराबर है. बैठकों में उसकी उपस्थिति महज औपचारिकता साबित हुई है. राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस ने अब तक किसी नाम की पेशकश भी नहीं की है.
ममता बनर्जी की अगुवाई वाली बैठक में क्या हुआ था
विपक्षी दलों की आगामी बैठक की अगुवाई करने जा रहे शरद पवार ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुई पहली बैठक में अपनी उम्मीदवारी पर रजामंदी नहीं दी थी. राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम आगे था. कई दलों ने महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता के नाम पर सहमति भी जताई थी. कई छोटे दल भी उनके साथ आने के लिए राजी थे. शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत ने भी उनका समर्थन किया था. इन सबके बावजूद उन्होंने खुद ही प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उनके बाद नेशनल कांफ्रेस के प्रमुख और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के नाम की चर्चा हुई. उन्होंने राज्य की राजनीति का हवाला देते हुए खुद को उम्मीदवारी से अलग कर लिया था.
राष्ट्रीय राजनीति में मेगा एंट्री की कोशिश में ममता दीदी
फिलहाल विपक्षी दलों की दूसरी बैठक से दूरी बरत रहीं ममता बनर्जी को लेकर तमाम तरह की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक उन्हें नेतृत्व से कम कुछ मंजूर नहीं है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री लंबे समय से राष्ट्रीय राजनीति में मेगा एंट्री की कोशिश कर रही हैं. वह कई राज्यों में जाकर विपक्ष के बड़े नेताओं से मिल चुकी हैं. 15 जून को उनकी अगुवाई में हुई बैठक से आम आदमी पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल दूर रहे थे. जानकारी के मुताबिक आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने के बाद समर्थन की बात कही है. जबकि टीआरएस सीधे तौर पर कांग्रेस के साथ मंच साझा नहीं करना चाहती.
लगातार तीसरी बार बड़ी नाकामी की ओर ममता बनर्जी
राष्ट्रीय राजनीति के जानकारों का मानना है कि साल 2012, 2017 और 2022 के राष्ट्रपति चुनावों के हालात में एक खास पैटर्न नजर आता है. उसके मुताबिक ममता बनर्जी नेतृत्व तो करना चाहती हैं. मगर उनकी तैयारियों में कमी रह जाती है. ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी साल 2012 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) का हिस्सा थी. यूपीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार (अब दिवंगत) प्रणब मुखर्जी थे. उस दौरान बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने प्रणब मुखर्जी के नाम का विरोध किया था.
ममता बनर्जी ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह के साथ होकर एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे किया. इसमें उन्हें सफलता नहीं मिल सकी. क्योंकि, मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस के बीच शांति से सहमति बनी और मुखर्जी के नाम का समर्थन कर दिया गया. वहीं, साल 2017 में भी ममता बनर्जी ने यूपीए उम्मीदवार और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश की थी. इस चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने बड़ी जीत दर्ज कर ली थी. अब 2022 में भी विपक्षी दलों को साथ लाने की उनकी कोशिशें परवान चढ़ती नहीं दिख रहीं.