जितनी दिल्ली की आबादी है‚ उतना पानी है नहीं। जी हां‚ पेयजल की ही बात कर रहा हूं। बढ़ती गर्मी में पानी की किल्लत बढ़ती ही जा रही है। पड़ोसी राज्यों ने भी दिल्ली को पानी देने मामले में हाथ खड़े कर लिये हैं। उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश पीछे हटे तो हरियाणा ने भी अनिच्छा जताई है। यही हाल रहा तो चंद दिनों में दिल्ली में जल संकट और गहरा सकता है। गर्मी के दिनों में हर साल करीब–करीब यही हाल होता है। राजधानी दिल्ली में पानी की उपलब्धता के प्रति पड़ोसी राज्यों से भी उदासीनता मिल रही। सो इस मुददे पर सरकारी एवं प्रशासनिक स्तर पर गंभीरता से उपायों पर पहल की जानी चाहिए। असल में‚ दिल्ली में पानी के लिए समझौता और पानी के लिए संकट के विषय पर जनता को भी सजग दिखने का समय आ गया है। दिल्ली इन दिनों पानी की ज्यादा किल्लत झेल रही है।
कहते हैं कि इसकी बड़ी वजह वजीराबाद बैराज में घटता जलस्तर है। खबर है कि दिल्ली ने कभी उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के साथ मिलकर राजधानी को पानी सप्लाई की योजना बनाई थी‚ जिससे वे अब पीछे हट चुके हैं। उधर‚ हरियाणा भी पानी के बदले पानी देने की योजना को आगे बढ़ाने का इच्छुक नहीं है। हिमाचल और यूपी से जुड़े प्रस्तावों पर २०१९ से विचार किया जा रहा था‚ लेकिन सात–आठ महीने पहले दोनों राज्यों ने हाथ खींच लिये। ज्ञात हो कि दिल्ली को लगभग १‚२०० एमजीडी पानी की आवश्यकता होती है‚ जबकि दिल्ली जल बोर्ड लगभग ९५० एमजीडी की आपूर्ति कर पाता है। हरियाणा से रोजाना ६१० मिलियन गैलन पानी की सप्लाई आती है। इनमें से कैरियर लाइंड कैनाल (सीएलसी) से ३६८ एमजीडी और दिल्ली सब ब्रांच (डीएसबी) से १७७ पानी आता है। यमुना से ६५ एमजीडी पानी मिलता है‚ जबकि दिल्ली को ऊपरी गंगा नहर के जरिए उत्तर प्रदेश से २५३ एमजीडी पानी मिलता है। इसके साथ ही ९० एमजीडी पानी शहर के कुओं और नलकूपों से खींचा जाता है। इसे पानी का वितरण कहिए या वर्तमान प्रबंधन व्यवस्था। कहते हैं कि दिल्ली ने पानी की कमी दूर करने के लिए उप्र से ताजे पानी के बदले १४ करोड़ गैलन प्रतिदिन (एमजीडी) ट्रीटेड वेस्ट वॉटर देने की योजना बनाई गई थी। यूपी ने तब कहा था कि वह मुरादनगर रेग्युलेटर से गंगा का २७० क्यूसेक पानी दे सकता है। बदले में दिल्ली से सिंचाई के लिए ओखला के रास्ते यूपी को उतना ही ट्रीटेड वेस्ट वॉटर दिया जाएगा। मगर छह महीने पहले उत्तर प्रदेश की तरफ से इस योजना को रद्द करने की जानकारी दी गई। इसका कारण क्या है‚ अभी तक स्पष्ट नहीं। वहीं दिल्ली ने हरियाणा को भी २० एमजीडी पानी की सप्लाई का प्रस्ताव भेजा था। बदले में दिल्ली जौंटी और अचौंदी रेग्युलेटर से सिंचाई के लिए उपचारित अपशिष्ट जल हरियाणा को देता‚ लेकिन हरियाणा से कोई जवाब नहीं मिला है। सुना गया कि हरियाणा से पानी एक्सचेंज का प्रस्ताव ऊपरी यमुना नदी बोर्ड के स्तर पर लंबित है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश ने यमुना का अपने हिस्से का पानी दिल्ली के बेचने के लिए दिसम्बर २०१९ में एक समझौता किया था जिसके तहत दिल्ली को २१ करोड़ रु पये सालाना देना था। एग्रीमेंट के बाद बयान में बताया गया था कि हिमाचल नवम्बर से फरवरी तक ३६८ क्यूसेक और मार्च से जून तक २६८ क्यूसेक पानी रोजाना सप्लाई करेगा। ये पानी हरियाणा के यमुना नगर जिले में स्थित ताजेवाला बांध से दिल्ली तक पहुंचना था मगर हरियाणा ने इस समझौते का विरोध कर दिया। हरियाणा ने दलील दी कि उसकी नहरों में इतना अतिरिक्त पानी ले जाने की क्षमता नहीं है। इसलिए हिमाचल भी छह महीने पहले इस समझौते से पीछे हट गया।
असल में पानी के वितरण या प्रबंधन को लेकर हर साल गर्मी के दिनों में यह दिक्कत पैदा होती है‚ जिसका निवारण सरकार या प्रशासनिक स्तर पर भी नहीं हो पाता है। पड़ोसी राज्य एक–दूसरे की मदद नहीं करते। इसलिए उन राज्यों में भी पानी की आपूर्ति दयनीय बन जाती है। उदाहरण के तौर पर पानी की किल्लत राजस्थान में इस कदर हुई कि वहां नहरों–तालाबों पर पहरा बिठाना पड़ा। उचित पेयजल प्रबंधन के लिए इमरजेंसी रिस्पांस टीम गठित की गई। प्रत्येक फिल्टर प्लांट के लिए प्रभारी नियुक्त किए गए। इस क्रम में निगम को जल का दुरु पयोग करने वालों पर जुर्माना लगाने के निर्देश भी दिए गए। शहर के कायलाना‚ चौपासनी‚ तखतसागर और झालामंड फिल्टर प्लांट की समुचित सुरक्षा के लिए २४ घंटे पुलिस व्यवस्था मुस्तैद है। वहीं बीसलपुर बांध जयपुर‚ अजमेर और टोंक की लाइफलाइन कहा जाता है जो भीषण गर्मी में इन शहरों में पानी की कमी को पूरा करने का काम करता है और सिंचाई की जरूरत को भी पूरा करता है। पानी को लेकर जो लड़ाई हो रही है‚ उसका असर उपभोक्ताओं के बीच मची हायतौबा और फसाद से लगा सकते हैं। यानी पानी के वितरण में जब तक ईमानदारी नहीं बरती जाएगी किसी भी राज्य का गला कभी तर नहीं होगा। लेकिन उसके पास बहुमत के लिए १ फीसद वोटों की कमी है। इसी बात ने कांग्रेस की विपक्षी मोर्चा बनाने की उम्मीदें जगा दी हैं। भाजपा को बीजू जनता दल (बीजेड़ी) और वाईएसआर कांग्रेस का साथ मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस के लिए ये सिर्फ विपक्ष की एकजुटता दिखाने का मौका होगा‚ लेकिन उसे इस प्रयास में लंबे वक्त से कोई सफलता नहीं मिल रही है। इस खातिर वह कांग्रेस से बाहर किसी अन्य दल से भी प्रत्याशी के चयन पर तैयार हो सकती है। इस बार राष्ट्रपति निर्वाचन मंडल का आकार मामूली सा घटा है। जम्मू–कश्मीर विधानसभा के चुनाव नहीं हुए हैं। इसलिए ८७ विधायकों की कमी हो गई है। उस अनुपात में सांसदों के मत का मूल्य भी ७०८ से घटकर ७०० रह गया है। कुल मत १०‚९८‚२२१ की जगह १०‚८६‚४३३ होंगे। राष्ट्रपति चुनाव में लोक सभा‚ राज्य सभा और विधानसभा के सदस्य मतदान में हिस्सा लेते हैं। भाजपा लोक सभा‚ राज्य सभा में सबसे मजबूत स्थिति में है। लोक सभा में एनडीए के सांसदों की संख्या ३३७ एवं राज्य सभा में १०८ है। २८ राज्यों की विधानसभाओं में अकेले भाजपा के १३७९ विधायक हैं। इसके अलावा एनडीए में शामिल दलों के विधायक अलग हैं। एनडीए के पास कुल ५‚३०‚६९० मत हैं‚ जबकि जीतने के लिए ५‚४३‚२१६ मत चाहिए। लोक सभा में बीजेड़ी के २१ सांसद और वाईआरएस कांग्रेस के २२ सांसद हैं। भाजपा को उम्मीद है इन दोनों दलों का वोट भाजपा को मिलेगा। दोनों के वोटों को जोड़ दिया जाए तो ४० हजार से ऊपर बैठते हैं‚ जबकि भाजपा को जीतने के लिए महज १३‚००० वोटों की जरूरत है‚ मगर कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों के उभार ने भाजपा के रणनीतिकारों को उलझा दिया है। वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल तो मान भी जाएं‚ लेकिन तेलांगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली टीआरएस चुनाव को रोचक बना सकती है। केसीआर केंद्र से नाराज हैं और विपक्ष का मोर्चा खड़़ा करने का प्रयास करते रहते हैं। फिलहाल इस समय देश और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में जो हालात बने हुए हैं उन्हें संभालने के लिए किसे जिम्मेदारी मिलती है‚ जानने के लिए इंतजार करना होगा।