महात्मा बुद्ध किस महापुरुष का नाम है‚ इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उनका जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ‚ज्ञान बोध भी पूर्णिमा के दिन हुआ और महापरिनिर्वाण भी पूर्णिमा के ही दिन हुआ। ऐसा अद्भुत संयोग किसी महामानव के ही जीवन में आता है। मन में प्रश्नों का जन्म होना स्वाभाविक है। सामान्य लोग उन प्रश्नों का अपने अंदर ही अंत कर देते हैं‚ और कुछ विशेष लोग उन प्रश्नों के उत्तर के लिए जिज्ञासु हो‚ सब कुछ त्याग कर उनकी खोज में निकल पड़ते हैं।
ऐसे ही कुछ प्रश्नों का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के मन में हुआ। उनके परिवार को किसी संत ने कहा कि राजकुमार सिद्धार्थ बड़े होकर या तो यशस्वी राजा बनेंगे या बहुत बड़े संत। परिवार के लोग डर गए और उन्होंने उनको बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ रखा। लेकिन एक दिन वो घर से बाहर निकले और उन्होंने तीन दृश्य देखे। पहला‚ एक अत्यंत बीमार व्यक्ति‚ दूसरा‚ बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति‚ और तीसरा‚ एक मृत व्यक्ति। उनके मन में आया कि मैं बीमार हो जाऊंगा‚ मैं बूढ़ा हो जाऊंगा और मैं मर जाऊंगा। तीनों प्रश्नों ने उन्हें विचलित कर दिया। फिर वो राजपाट‚ राजमहल‚ पत्नी और परिवार को त्याग कर इन प्रश्नों की खोज में निकल पड़े। उन्होंने एक संन्यासी को देखा और मन ही मन संन्यास ग्रहण करने की ठान ली। वहीं से राजकुमार सिद्धार्थ की महात्मा बुद्ध बनने की यात्रा प्रारंभ होती है। महात्मा बुद्ध ने बिना अन्न–जल ग्रहण किए करीब छह साल घोर तपस्या की‚ उसके बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान बोध हुआ। ऐसा ज्ञान जो हजारों वर्षों से इस धरा को प्रकाशमान कर रहा है। महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना कर दुनिया को शांति‚ करु णा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। आज विश्व के अनेक देश बौद्ध धर्म का अनुसरण कर रहे हैं। पंचशील का उनका सिद्धांत किसी भी मनुष्य के जीवन को सार्थक बना सकता है‚ जिसमें उन्होंने कहा–हिंसा न करना‚ चोरी न करना‚ व्यभिचार न करना‚ झूठ न बोलना और नशा न करना।
नरेन्द्र मोदी सरकार भगवान बुद्ध के उपदेशों‚ संदेशों और विचारों को दुनिया में जन–जन तक पहंुचाने के लिए संकल्पबद्ध है। माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने २०१५ में बुद्ध पूर्णिमा को राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया। विगत वर्ष बुद्ध पूर्णिमा विश्व शांति और कोरोना महामारी से राहत के लिए समर्पित थी। दुनिया जब मुश्किल दौर से गुजर रही थी‚ उस समय भारत के साथ एकजुट होकर बोध गया–भारत‚ लुंबिनी–नेपाल‚ कैंडी–श्रीलंका‚ भूटान‚ कंबोडिया‚ इंडोनेशिया‚ मलयेशिया‚ मंगोलिया‚ रूस‚ सिंगापुर‚ द. कोरिया और ताइवान के प्रमुख बौद्ध मंदिरों में विश्व शांति के लिए एक साथ प्रार्थनाएं आयोजित की गइ। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भगवान बुद्ध सार्वभौमिक हैं क्योंकि वो अपने भीतर से शरु आत करने के लिए कहते हैं। जब कोई व्यक्ति स्वयं प्रकाशित होता है‚ तो दुनिया को भी प्रकाश देता है। इसलिए बुद्ध दर्शन में ‘अप्प दीपो भव’ भारत के आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा है।
बौद्ध धर्म को दुनिया के चार बड़े धर्मों में शुमार किया जाता है। दुनिया में ५० करोड़ से अधिक लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। उनमें से ९०% दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया में रहते हैं। चूंकि बौद्ध विरासत भारत में सर्वाधिक है‚ इसलिए भारत की आजादी के ७५ वर्षों में हमारा संकल्प अधिकाधिक बौद्ध तीर्थयात्रियों को भारत दर्शन कराना है। इस दिशा में भारत का पर्यटन मंत्रालय काम कर रहा है। पर्यटन मंत्रालय ने स्वदेश दर्शन योजना के तहत बौद्ध सर्किट बनाया तथा बौद्ध सर्किट विकास के लिए ३२५.५३ करोड़ रु पये की ५ परियोजनाओं को मंजूरी दी। सांची–सतना–रीवा–मंदसौर–धार का विकास‚ श्रावस्ती–कुशीनगर और कपिलवस्तु का विकास‚ बोधगया में कन्वेंशन सेंटर का निर्माण‚ जूनागढ़–गिर सोमनाथ–भरूच–कच्छ–भावनगर–राजकोट–मेहसाणा का विकास तथा आंध्र प्रदेश के शालिहुंडम–थोटलाकोंडा–बाविकोंडा– बोज्जानकोंडा–अमरावती–अनुपु में बौद्ध सर्किट का विकास हुआ है। भगवान बुद्ध के जीवन का संबंध जिन राज्यों से रहा बौद्ध सर्किट में उन्हें जोड़ा गया है। बौद्ध भिक्षुओं और तीर्थयात्रियों के लिए कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा बनाया गया है। बौद्ध सर्किट में ‘बुद्ध पूर्णिमा एक्सप्रेस’ स्पेशल ट्रेन भी शुरू की गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने सितम्बर‚ २०२१ में अमेरिका का दौरा किया‚ उस समय १५७ कलाकृतियां और पुरावशेष को भारत वापस लाया गया। इनमें १६ कलाकृतियां और पुरावशेष बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है‚ ऐसे में बुद्ध के जीवन दर्शन को आत्मसात कर‚ हम नये भारत‚ अतुल्य भारत का निर्माण करने में सफल होंगे।