रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड एक विध्वंसक हथियार है‚ इसे टैंकरोधी ग्रेनेड लांचर भी कहा जाता है जो आसानी से कंधे पर रखकर चलाया जा सकता है। यह बख्तरबंद वाहनों और इमारतों के खिलाफ व्यापक क्षति का कारण बन सकता है। अफगानिस्तान‚ सीरिया और इराक में चरमपंथी इसका उपयोग सेना के खिलाफ करते रहे हैं। अब भारत में इसका उपयोग सुरक्षा के लिहाज से अतिसंवेदनशील है। मोहाली में पुलिस इंटेलिजेंस हेडक्वॉर्टर पर हमले में रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड का इस्तेमाल और इसमें खालिस्तानी पृथकतावादियों का जुड़ा होना देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए नये खतरे के संकेत हैं।
खालिस्तान आंदोलन के भारत में उभरने की आशंकाएं करीब दो दशक पहले ही खत्म हो चुकी है‚ लेकिन भारत से बाहर इसे जिंदा रखने की धार्मिक और राजनीतिक कोशिशें बदस्तूर जारी रही है। किसान आंदोलन में सुरक्षा एजेंसियों ने खालिस्तानी चरमपंथियों की भागीदारी को लेकर आशंका जताई थी वहीं पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की चिंता भी इससे मिली–जुली थी। किसान आंदोलन की समाप्ति के बाद खालिस्तान के समर्थकों की गतिविधियों में अचानक तेजी आई है। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के मुख्य गेट पर खालिस्तान समर्थक झंडे‚ पटियाला और मोहाली की घटनाएं इस बात की ओर इशारा कर रही है कि खालिस्तानी एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए धार्मिक और सुरक्षा का संकट बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
यह भी बेहद दिलचस्प है कि भारत में रहने वाले सिखों का खालिस्तानी आंदोलन को न तो समर्थन है और न ही वे इसमें किसी प्रकार की भागीदारी रखना चाहते हैं‚ वहीं पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई ऑपरेशन के–२ के जरिए भारत के धार्मिक सद्भाव को भंग करने के प्रयासों में कई सालों से जुटी हुई है। पाकिस्तान खालिस्तान को जिंदा रखने के लिए अपनी जमीन का बेजा इस्तेमाल करने से कभी परहेज नहीं करता। वह विदेशों में रहने वाले खालिस्तानी समर्थकों को भारत विरोध के लिए उकसाने की नीति पर चलता रहा है। लाहौर में सिख अतिवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल का सरगना वधवा सिंह बब्बर लंबे समय तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की सरपरस्ती में रहा था। इस दौरान उसने लश्कर–ए–तैयबा के साथ मिलकर सिख आतंकवाद को फिर से जिंदा करने की कोशिशें भी की।
पाकिस्तान में सिख अतिवादियों को जेहादी भाई कहा जाता है और उन्हें तमाम सुख–सुविधाओं के साथ पाक सेना के अधिकारियों‚ आईएसआई और कुख्यात आतंकी संगठन के आकाओं से मिलने की खुली छूट भी मिली होती है। दूसरी और यह तथ्य किसी से छुपे नहीं हैं कि पंजाब के कुछ राजनीतिक दल पृथकतावादियों को राजनीतिक समर्थन देते रहे हैं। वे पंजाब की स्वायत्तता के हिमायती रहे हैं और उनकी भूमिका संदिग्ध रही है। पाकिस्तान की इंटर सÌवसेज इंटेलिजेंस सिख आतंकवादी संगठनों में फिर से जान डालने के लिए कनाडा‚ अमेरिका समेत दुनियाभर में बसे सिखों को भड़काने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती।आईएसआई खालिस्तानी अलगाववादी और कश्मीर के आतंकवादियों को एकजुट करने की योजना पर लगातार काम कर रही है।
पाकिस्तान ने खालिस्तान के लिए ननकाना साहिब में भी लगातार मुहिम चलाई है। दुनियाभर के सिख वहां गुरु नानक देव की जयंती पर जुटते हैं। आईएसआई खालिस्तान के नाम पर सिख युवाओं को भडकाकर स्लीपर सेल बनाने को आमादा है। इसके लिए वह स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए की गई कार्रवाई और सिख विरोधी दंगों के नाम पर विष वमन करती है। पाकिस्तानी प्रभाव से दिग्भ्रमित खालिस्तान के चरमपंथी दुनियाभर में सिख होमलैंड के पक्ष में प्रदर्शन करते रहे हैं। कनाडा में काम करने वाली पृथकतावादी ताकतें ऐसे प्रयास कर रही है कि वे कनाडा में खालिस्तान समर्थन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र पंजाब के पक्ष में एक जनमत संग्रह कराएं। अगस्त महीने में दुनिया भर में बसने वाला भारतीय समुदाय आजादी महोत्सव हर्ष और उल्लास अपना से मनाता है और इस दौरान कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। खालिस्तानी समर्थक इस मौके पर भारत विरोध का झंडा बुलंद करते हैं। खालिस्तान समर्थकों ने इसके पहले २०२० के लिए खालिस्तान के पक्ष में जनमत संग्रह को लेकर एक रैली भी निकाली थी‚ जिसमें भारत विरोधी नारे लगाए गए थे। लंदन में करीब ६० फीसद विदेशी मूल के हैं और इन्हें पाकिस्तान गुमराह करता रहा है। उत्तरी अमेरिकी देश कनाडा पृथकतावादी सिख होमलैंड खालिस्तान के समर्थकों के लिए महफूज ठिकाना रहा है। यह देश–विदेशी अल्पसंख्यकों की पहली पसंद है और इसे सिखों का दूसरा घर भी कहा जाता है।
भारत के बाद सबसे बड़ी सिख आबादी कनाडा में ही बसती है। खालिस्तानी आतंकवादी गुट बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) सिख अलगाव को बढ़ावा देने के लिए पूरी दुनिया में प्रभावशील है। इस आतंकी गुट का कनाडा पर गहरा प्रभाव है और वे इस देश में राजनीतिक तौर पर भी ताकतवर माने जाते हैं। यही नहीं अपने रसूख का इस्तेमाल कर बीकेआई खालिस्तान का समर्थन देने वाली ताकतें को यहां से संचालित भी करती है। कनाडा अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर और उत्तर में आर्कटिक महासागर तक फैला हुआ है। यह आतंकी संगठन हर साल बैसाखी जैसे मौकों पर आयोजित समारोहों में सिख चरमपंथियों को शहीद का दर्जा देकर उन्माद फैलाता है। पृथकतावादी सोच का यहां के गुरु द्वारों और कई गुटों पर इनका नियंत्रण है। बैसाखी के आयोजन में कनाडा के कई प्रभावी राजनीतिज्ञ शामिल होते हैं‚ इससे बीकेआई जैसे भारत विरोधी संगठनों को मदद मिलती है।
खालिस्तानी अपने लिए अलग देश चाहते हैं‚ वे राजकाज को धार्मिक नेतृत्व से जोड़कर नई व्यवस्था कायम करना चाहते हैं‚ यह विचार भारत की संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देने वाला है। समावेशी विचार और लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले भारत में दोबारा खालिस्तानी आंदोलन के शुरू होने की कोई आशंका नहीं है। वहीं कट्टरता‚ धार्मिक प्रदर्शन‚ सर्वोच्च धार्मिक संस्थाओं के क्रियाकलापों को नियंत्रित रखने और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के द्वारा पृथकतावादी ताकतों को संरक्षण न मिले इसके लिए सजग रहने की जरूरत अवश्य है।