आज फिजी गिरमिटिया दिवस है। आज का दिन कभी नहीं भूलने वाला दिन है। सन 1879 के 14 मई कलकत्ता के गार्डेन बीच रोड गिरमिटिया डिपो से फिजी के लिए पहला जहाज खुला था। नये अवसर‚ नई संभावना बता कर यूपी‚ बिहार और नेपाल तराई के गांवों से सैकड़ों लोगों को बहला–फुसला कर कलकत्ता लाया गया। किंतु इन अभागों को क्या पता था की अब कभी ये अपना गांव घर नहीं देख पाएंगे। परिवार‚ कुटुंब‚ समाज सब छूट गया। अगर कुछ रहा तो अनजानी धरती पर जी–तोड़ मेहनत। ये मेहनत भी अपने लिए नहीं अपितु हुकूमते ब्रितानिया के सुंदर बेहतर भविष्य के लिए था। तब साठ हजार लोग तो अग्रीमेंट के तहत केवल फिजी द्वीप ले जाए गए थे। प्रतिवर्ष ऐसे दस से पंद्रह हजार लोग अनुबंध के तहत भारत से बाहर ले जाए गए थे।
१८३४ से शुरू हुआ ये सिलसिला तत्कालीन भारतीय नेताओं के सदप्रयासों से १९१७ मे जाकर बंद हुआ। इसके लिए लोकमान्य तिलक‚ महामना मालवीय‚ गोपालकृष्ण गोखले‚ महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर ने आंदोलन पहल की थी। पहला गिरमिट जहाज २ नवम्बर १८३४ को मॉरीशस उतरा था‚ जबकि आखिरी सवारी नाव सन १९१६ के ११ नवम्बर को फिजी के लिए खुली थी। पहले गुलाम पुरबिया अर्थात बिहार‚ यूपी और नेपाल तराई के लोग थे। फिर दक्षिण भारतीय तमिल‚ तेलगु और मलयाली भाषी जन ले जाए गए। तदोपरांत तो संभावनाओं को तलाशते पंजाबी‚ सिंधी और अफगानी पख्तून भी झांसों में आकर पहुंचा दिए गए। किंतु सर्वाधिक संख्या पुरबियों की थी इसलिए भाषा और संस्कृति पर सर्वाधिक इनका प्रभाव है। ऐसे लाखों भारतीय गुलामी के लिए भेजे गए। दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर से लेकर ऑस्ट्रेलिया तट तक के द्वीपों तक भारतीय लोग गुलामी के लिए ले जाए गए। अमेरिका धरती से कैरेबियन टापुओं तक इनसे कठोर श्रम लिया गया। दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के निकट कैरेबियन भूमि पर गुयाना‚ सूरीनाम‚ त्रिनिदाद व टोबैगो और जमैका मे बसे हैं। वहीं ये अमेरिकी तट के सेशेल्स से लेकर दक्षिण अमेरिका के डरबन एवं नेटाला राज्य तक बसे हैं। अनजानी धरती‚ हिंसक लोग‚ निर्जन द्वीप और गोरे प्रेतों के बीच रह कर इन्होंने गुजर किया। कहने को बस अनुबंध किंतु ये महज एक दिखावा था। यहां न तो काम के घंटे तय थे और न ही बेहतर स्वास्थ्य सेवा थी। इन मजदूरों के हित में न कानूनी सलाह सेवा थी और ना ही कानून–कचहरी थे। थाना पुलिस सब ब्रितानी सरकार के मुखौटे भोंपू थे। इनका पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन भी पूरी तरह गोरे अंग्रेज मालिक की उदारता पर निर्भर था। ऐसे कई सामूहिक संहार और दुखांत पारिवारिक जीवन की चर्चा फिजी द्वीप में मेरे इक्कीस साल पुस्तक में आई है। यह फिजी के सत्य घटनाओं पर आधारित पुस्तक है। पुस्तक के लेखक पंडित तोताराम पंडित तोताराम पहले ऐसे व्यक्ति हैं‚ जिन्होंने यहां के हालात को बयां किया है। मॉरीशस के पितृपुरु ष शिवसागर रामगुलाम की जड़ें बिहार की है तो फिजी के पूर्व प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी के पुरखे भी भारतीय ही थे। इन सभी देशों में भारतीय मूल के लोग शासन के सर्वोच्च पदों तक पहुंचते रहे हैं। सेशेल्स‚ सूरीनाम‚ गुयाना के वर्तमान राष्ट्रपति‚ मॉरीशस के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और त्रिनिनाद के उपराष्ट्रपति भारतीय मूल के हैं। पीढ़ियां बदल गई किंतु इन गिरमिट ह्रदयों में अब भी सुंदर सुभूमि भारत बसता है। हर गिरमिटिया देश ने अपने भारतीय अतीत और पूर्वजों की स्मृति को संजोने का काम किया है। कई गिरमिटिया देशों में प्रथम भारतीय यात्री जोड़ों की मूर्तियाँ स्थापित की गई है। इसे ‘माई बाबा’ नाम दिया गया है। वहीं गिरमिटिया इतिहास से संबंधित संग्रहालय और स्मारक बनाए गए हैं‚ जबकि प्रथम जहाजी बेड़े के पड़ाव स्थल घाटों को भी स्मृति स्थल के रूप में विकसित किया गया है। इसके उलट भारत में इनसे संबंधित स्मृति को संजोने के पर्याप्त प्रयास नहीं हुए हैं। बदलाव वाले इस दौर कई बाते बदल सी गई है। भाषा बदला और संबंधों के मायने भी बदले हैं। इन मुल्कों की स्वतंत्रता बाद यहां आने वाले भारतीयों के प्रति कई जगहों पर उपेक्षा का भाव भी रहा है।
ऐसे में अब इन सफल सुसम्पन्न भारतवंशियों को भी अपने भारतीय गांव‚ जिला–जवार के लिए कुछ करना चाहिए। वहीं रिश्तों की गर्माहट के लिए केवल सरकारें नहीं अपितु सामाजिक स्तर पर भी प्रयासों की आवश्यकता है। इन भूमिपुत्रों को भारतीय उत्सवों में आने और गांव एवं स्थानीय तीर्थ घूमाने की सोचना चाहिए। वही ये भारतवंशी समाज अपने भ्रमण की योजनाओं में पहले गंतव्य के तौर पर भारत को रखे‚ जबकि शादी–विवाह जैसे आयोजनों में अपने भारतीय परिवार को जरूर आमंत्रित करे। ऐसी ही परिपाटियों के चलन से भौगोलिक सांस्कृतिक दूरी मिटेगी। वहीं अगर ये भारतवंशी समुदाय थोड़ा सोचे तो भारत के आर्थिक उन्नयन और भारतीय संस्कृति के प्रचार द्वार खुल सकते हैं।