भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के इस बयान पर बहस चल रही है कि किसी भी पार्टी को भाजपा से मुकाबला करने के लिए ५०–६० वर्ष साधना करनी पड़ेगी। सामान्य तौर पर देखने से यह बयान अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है‚ लेकिन भाजपा आज जहां है वहां तक पहुंचने में उसे कितना समय लगाॽ १९५० में जनसंघ की स्थापना हुई। १९७७ में पार्टी का विलय जनता पार्टी में हुआ और वह सत्ता में आई। वह जनसंघ की सत्ता नहीं थी जनता पार्टी की थी और वह भी आपातकाल के विरु द्ध मतदान था यानी कांग्रेस की पराजय थी।
पार्टी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने की अवस्था में जनसंघ की स्थापना के ४८ वर्ष बाद १९९८ में आई और एक वर्ष ही सरकार चल सकी। दोबारा १९९९ में आई और पहली बार उसके नेतृत्व में गठबंधन की सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सकी । पार्टी ने ६४ वर्ष बाद २०१४ में पहली बार लोक सभा में बहुमत प्राप्त किया और फिर २०१९ में यानी ६९ वर्ष बाद उसकी पुनरावृत्ति हुई। जाहिर है‚ अगर किसी एक पार्टी को उसका मुकाबला करना है तो उसे लंबे समय तक परिश्रम करना होगा। यह उनके वक्तव्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसका दूसरा पहलू यह है कि पहले जनसंघ और बाद में भाजपा ने लगातार जनता के बीच जाने और अपना जनाधार बढ़ाने के लिए परिश्रम किया है। स्थापना के समय से ही जनसंघ बिना रुके अपनी विचारधारा के प्रचार के साथ संघर्ष व आंदोलन करती रही है। हिंदुत्व और उससे अभिप्रेरित राष्ट्रवाद उसका मूल तत्व रहा है। कश्मीर में जाने के लिए परमिट की व्यवस्था को तोड़ने से लेकर धारा ३७० खत्म करने के लिए जनसंघ ने सबसे ज्यादा संघर्ष किया।
भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो सत्ता में आए न आए लगातार विचारधारा और मुद्दों पर आलोडि़त रहती है तथा कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखती है। भाजपा संघ परिवार का एक सदस्य है‚ जिसकी विचारधारा है। उस विचारधारा के होने के कारण भाजपा पूरी तरह अपने को उससे अलग नहीं कर सकती। पूरे विचार परिवार के घटकों का जिन मुद्दों पर खड़ा होने का निर्णय होता है उससे भाजपा के लोग प्रत्यक्ष परोक्ष जुड़ जाते हैं। भाजपा भी पार्टी के रूप में या संघ परिवार के घटक के रूप में उसमें शामिल होती है। इस तरह उसकी साधना कई रूपों में चलती रही है रहती है। यह स्थिति दूसरी पार्टी की नहीं है। निश्चित विचारधारा से आबद्ध होने के कारण चाहे अनचाहे पार्टी के लोगों को सक्रिय रहना ही होता है। समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियाँ परिवारों और जातीय समीकरणों की पाÌटयों में परिणत हो चुकी हैं। दूसरी विचारधारा वाली कम्युनिस्ट पार्टियाँ खत्म हो चुकी है। कांग्रेस विचार‚ व्यवहार और नेतृत्व तीनों स्तर पर संकटग्रस्त है। वर्तमान राजनीति का सच यही है कि कोई ऐसी पार्टी नहीं दिखती जिसके बारे में कहा जाए कि वह कुछ वर्षों में भाजपा के समानांतर सशक्त अवस्था में खड़ी हो जाएगी। भाजपा में आने के पहले ज्यादातर लोग संघ या फिर उसके दूसरे संगठनों विद्यार्थी परिषद‚ मजदूर संघ‚ किसान संघ‚ सेवा भारती‚ विश्व हिंदू परिषद‚ बजरंग दल‚ धर्म जागरण मंच आदि में काम करते हैं। इस तरह विचारधारा में काम करने का उनका प्रशिक्षण पहले से रहता है।
सत्ता सबको चाहिए‚ लेकिन विचारधारा के अंदर काम करने वाले कार्यकर्ता और सदस्य उसे प्राप्त होते रहते हैं और इसी कारण भाजपा लंबे समय तक सत्ता में ना रहने के बावजूद पार्टी के रूप में बनी रही। आगे भी बनी रहेगी। जेपी नड्डा के ५० से ६० वर्ष साधना करने का एक मतलब यही है। ऐसी स्थिति भारत में किसी भी पार्टी की नहीं है। भाजपा इस समय १२ राज्यों में खुद सत्ता में है और चार राज्यों में साझेदारी में सरकार चला रही है। कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता में है तथा महाराष्ट्र और झारखंड में गठबंधन सरकार में शामिल है। राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से देखिए तो राजस्थान में विधानसभा सीटें कांग्रेस को ज्यादा मिली‚ लेकिन लोक सभा में भाजपा ने उसे साफ कर दिया। झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा लोक सभा में शीर्ष पर रही। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में भाजपा शिवसेना मिलकर लड़ी थी और जनता ने इस गठबंधन को बहुमत दिया था। तमिलनाडु‚ केरल और पंजाब को छोड़ दें तो भाजपा बड़े राज्यों में आज प्रभावी स्थिति में है। आंध्र प्रदेश में भाजपा बड़ी शक्ति नहीं दिखती है‚ लेकिन अब वहां उसका विस्तार हो रहा है। राजनीति में विचारधारा और संगठन का महत्व तो है ही सब कुछ नेतृत्व पर निर्भर करता है।
भाजपा के पास इस समय नरेन्द्र मोदी जैसा हर दृष्टि से सक्षम व प्रभावी नेतृत्व है तो अमित शाह जैसा कुशल संगठनकर्ता‚ रणनीतिकार‚ अपने विचारों को संसद में दृढ़ता से रखने वाला तथा कार्यकर्ताओं से संपर्क रखने वाला नेता है। प्रदेशों में योगी आदित्यनाथ‚ हेमंत विश्व सरमा जैसे लोकप्रिय नेता हैं। इसके साथ संघ से लेकर अलग–अलग संगठनों के नेतृत्व की ताकत उसको मिलती है। पार्टी में ऐसा नेतृत्व तथा संगठन परिवार में नेतृत्व मंडली का यह समूह आपको किसी पार्टी में नहीं दिखेगा। कुछ राज्यों को छोड़ दें तो मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने बता दिया है कि चुनाव में बहुमत हासिल करने के गुर उनको अन्य किसी पार्टी के नेतृत्व से ज्यादा पता है। भाजपा के सत्ता में आने का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू है‚ जिसकी ओर कम ध्यान गया। यह आम धारणा थी कि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते इसलिए वह अपनी बदौलत बहुमत कभी नहीं प्राप्त करेगी। मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने इस धारणा को ध्वस्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश चुनाव में ही मुस्लिम वोट भाजपा के विरुद्ध एकमुश्त समाजवादी पार्टी की ओर गया। बावजूद भाजपा ने बहुमत प्राप्त किया।
प. बंगाल और केरल को छोड़ दें तो पूरे भारत से यह धारणा खत्म हो गई है। इस धारणा के ध्वस्त होने के बाद वैसे लोग जो भाजपा को वोट देने से इसलिए थे कि वह सत्ता में आने वाली नहीं उनके सामने से भी मनोवैज्ञानिक बाधा खत्म हो गई है। इसका व्यापक मनोवैज्ञानिक असर है और यह लंबे समय तक रहेगा। इसलिए नड्डा के बयान पर विरोधी दल जो भी प्रतिक्रिया दें‚ इसे किसी कसौटी पर गलत साबित नहीं किया जा सकता। इसमें विरोधी दलों के लिए संदेश है कि वे भाजपा से सीखें तथा विचार‚ व्यवहार और नेतृत्व के स्तर पर कठिन साधना कर अपना जनाधार बढ़ाएं तभी भाजपा से मुकाबला कर सकते हैं॥।