प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कल सुबह से ही हलचल है. इसका कारण है काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों का सर्वे हो रहा है. ये सर्वे वाराणसी के सीनियर जज डिविजन के आदेश पर हो रहा है. सर्वे के दौरान किसी तरह की कानून व्यवस्था न बिगड़े, इसलिए यहां सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
दरअसल, 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग को लेकर सिविल जज सीनियर डिविजन के सामने वाद दर्ज कराया था. इस पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मंदिर में सर्वे और वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया है. इसकी रिपोर्ट 10 मई तक मांगी गई है. इसी दिन इस मामले में सुनवाई भी होगी.
सर्वे का काम आज शनिवार को भी हो रहा है । बाहर आए अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने एडवोकेट कमिश्नर पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
इधर आज AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कानून का उल्लंघन है. आगे उन्होंने कहा, काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण करने का ऑर्डर 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का खुला उल्लंघन है. अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अधिनियम भारत की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा करता है, जो कि संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है. सर्वे पर बोलते हुए Owaisi ने सर्वे के फैसले को एंटी मुस्लिम हिंसा Anti Muslim Violence का रास्ता खोलने वाला भी बताया है. AIMIM के प्रमुख ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोर्ट की ओर से सुप्रीम कोर्ट की खुलेआम अवहेलना की जा रही है. इस आदेश से कोर्ट 1980-1990 के दशक की रथ यात्रा के हुए खून-खराबे और मुस्लिम विरोधी हिंसा का रास्ता खोल रही है.
उन्होंने कहा- ‘ज्ञानवापी परिसर में पश्चिम तरफ स्थित चबूतरे की वीडियोग्राफी कराई गई। इसके बाद 5:45 बजे एडवोकेट कमिश्नर ने ज्ञानवापी मस्जिद के प्रवेश द्वार को खुलवाकर अंदर जाने का प्रयास किया तो हमने विरोध किया। उन्हें बताया कि अदालत का ऐसा कोई आदेश नहीं है कि आप बैरिकेडिंग के अंदर जाकर वीडियोग्राफी कराएं। लेकिन, एडवोकेट कमिश्नर ने कहा कि उन्हें ऐसा आदेश है।
मस्जिद की दीवार को उंगली से कुरेदा जा रहा था, जबकि ऐसा कोई आदेश अदालत ने नहीं दिया था। इसलिए हम एडवोकेट कमिश्नर से पूरी तरह असंतुष्ट हैं। कल अदालत से दूसरा एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने की मांग की जाएगी।’
इधर, हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने कहा कि आज ज्ञानवापी परिसर के कुछ हिस्से की वीडियोग्राफी हुई है। परिसर के अंदर जाने का प्रयास किया गया तो प्रतिवादी पक्ष ने विरोध किया और कहा कि आप नहीं जा सकते हैं। शनिवार को 3 बजे फिर एडवोकेट कमिश्नर सर्वे की कार्रवाई शुरू करेंगे। एडवोकेट कमिश्नर ने जिला मजिस्ट्रेट से कहा है कि कल हम बैरिकेडिंग के अंदर जाएंगे और सर्वे का काम होगा।

रविवार तक चल सकता है सर्वे
एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्र, मंदिर और मस्जिद पक्ष के कुल 28 लोग शाम 4 बजे ज्ञानवापी पहुंचे थे। इससे पहले टीम जब पहुंची तभी कुछ युवाओं ने हर-हर महादेव का उद्घोष किया। इस पर कुछ मुस्लिम युवकों ने भी अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाए। कुछ देर के लिए माहौल तनावपूर्ण हो गया। दुकानें भी बंद हो गईं। फिलहाल सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
दरअसल, 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग को लेकर सिविल जज सीनियर डिविजन के सामने वाद दर्ज कराया था. इस पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मंदिर में सर्वे और वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया है. इसकी रिपोर्ट 10 मई तक मांगी गई है. इसी दिन इस मामले में सुनवाई भी होगी.
काशी विश्वनाथ मंदिर और वहीं स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी विवाद जारी है. ये विवाद 1991 से अदालत में है. अभी इस विवाद की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही है.
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है. हालांकि, इसमें कई सारे पेंच भी है. अयोध्या के मामले में मस्जिद अकेली थी और मंदिर नहीं बना था. लेकिन इस मामले में मंदिर और मस्जिद दोनों ही बने हैं. काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद को हटाया जाए और वो जमीन उन्हें दी जाए, क्योंकि वो मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाई गई है.
कैसे हुई इस विवाद की शुरुआत?
1984 में देशभर के 500 से ज्यादा संत दिल्ली में जुटे. धर्म संसद की शुरुआत भी यहीं से हुई. इस धर्म संसद में कहा गया कि हिंदू पक्ष अयोध्या, काशी और मथुरा में अपने धर्मस्थलों पर दावा करना शुरू कर दे.
अयोध्या में रामजन्मभूमि का विवाद था तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर विवाद है. वहीं, स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे अहम माना जाता है.
अयोध्या पर हिंदू पक्ष का दावा तो आजादी से पहले ही चल रहा था. लिहाजा हिंदू संगठनों की नजरें दो मस्जिदों पर टिक गईं. एक थी मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और दूसरी थी काशी की ज्ञानवापी मस्जिद. कहा जाता है कि ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’ का नारा भी इसके बाद ही चला.
फिर आया साल 1991. तब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की. इनके वकील थे विजय शंकर रस्तोगी.
याचिका में तर्क दिया गया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. सन् 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह मस्जिद बनाई. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया.
याचिका में मंदिर की जमीन हिंदू समुदाय को वापस करने की मांग की गई थी. साथ ही ये भी कहा गया कि इस मामले में प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर बनाया गया था, जिसके हिस्से आज भी मौजूद हैं.
ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजमुन इंतजामिया इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. उसने दलील दी कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है. इसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी.
करीब 22 साल तक ये मामला लंबित पड़ा रहा. 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे. उन्होंने याचिका दायर कर मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे पुरातत्व विभाग से करवाया जाए. अभी ये मामला हाईकोर्ट में चल रहा है.
अब ये प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट क्या है?
1991 में केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी. उनकी सरकार में ये कानून लाया गया था. ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा. उसके साथ छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता.
चूंकि अयोध्या विवाद का मामला आजादी से पहले से कोर्ट में चल रहा था, इसलिए इसे छूट दी गई थी. लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद और शाही ईदगाह मस्जिद पर ये लागू होता है.
इस कानून में साफ है कि आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था, वो हमेशा वैसा ही रहेगा. उसके साथ कोई बदलाव नहीं हो सकता. इसमें ये भी है कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे एक से तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है.
ये मंदिर और मस्जिद बनवाया किसने था?
इसे लेकर कोई एक राय नहीं है. याचिकार्ताओं का कहना है कि इस मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने फिर से बनवाया था. अकबर के शासन काल में इसका फिर से निर्माण करवाया गया. 1669 में औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनाई.
अभी वहां पर जो काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद आपस में सटे हुए हैं, लेकिन उनके आने-जाने के रास्ते अलग-अलग दिशाओं में हैं.
जानकार मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर को अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल ने बनवाया था. इसे 1585 में बनाया गया था. 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई. 1735 में रानी अहिल्याबाई ने फिर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जो आज भी मौजूद है.
क्या अयोध्या की तरह सुलझ सकता है ये विवाद?
अयोध्या विवाद और वाराणसी विवाद में कुछ हद तक समानताएं हैं, लेकिन वाराणसी विवाद अयोध्या विवाद से हटकर है. अयोध्या का विवाद आजादी के पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए उसे 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट से छूट मिली थी. लेकिन वाराणसी विवाद 1991 में अदालत से शुरू हुआ, इसलिए इस आधार पर इसे चुनौती मिलनी लगभग तय है.
हिंदू संगठनों की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और वो पूरी जमीन हिंदुओं के हवाले की जाए. इस मामले में हिंदू पक्ष की दलील है कि ये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है, इसलिए 1991 का कानून इस पर लागू नहीं होता. तो वहीं मुस्लिमों का कहना है कि यहां पर आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है, इसलिए इस पर 1991 के कानून के तहत कोई फैसला करने की मनाही है.