बीते साल हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा और कोलकाता नगर निगम और इस साल हुए एक सौ से ज्यादा नगर निकाय चुनाव के साथ-साथ हाल में संपन्न उपचुनाव (आसनसोल लोक सभा और बालीगंज विधानसभा) के नतीजों से साफ हो गया कि सूबे में फिलहाल ‘कमल’ नहीं, बल्कि ‘जोड़ा फूल’ का दबदबा है या यूं कहें कि राज्य की मौजूदा कानून-व्यवस्था और रेप की बढ़ती घटनाओं के बावजूद मतदाताओं की पहली पसंद ममता बनर्जी बनी हुई हैं। भले ही गोवा, उत्तर प्रदेश और पंजाब के अलावा उत्तर पूर्व के राज्यों असम और त्रिपुरा में ममता फिलहाल ‘जोड़ा फूल’ खिलाने में कामयाब नहीं रही हों, लेकिन उनकी अगुवाई कम से कम पश्चिम बंगाल में ‘जोड़ा फूल’ न केवल खिल रहा है, बल्कि हर चुनाव में खिल रहा है।
आसनसोल लोक सभा सीट भाजपा से छीन कर तृणमूल कांग्रेस ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि भाजपा के दोनों बागियों और पूर्व केंद्रीय मंत्री (शत्रुघ्न सिन्हा और बाबुल सुप्रियो) को अपने पाले में कर उपचुनाव जीत कर भाजपा की चिंता बढ़ा दी। भाजपा को दोनों जगह पराजय का सामना करना पड़ा और वह भी उन उम्मीदवारों से जो कभी उन्हीं की पार्टी के बैनर तले न केवल सांसद बने थे, बल्कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल रहे थे। निजी कारणों से दोनों ने ‘कमल’ (भाजपा का चुनाव चिह्न) छोड़कर ‘जोड़ा फूल’ थाम लिया था। तमाम आरोप-प्रत्यारोप को दरकिनार करते हुए तृणमूल के दोनों ‘ब’ भाजपा पर भारी पड़े और एक लोक सभा (बिहारी बाबू) और दूसरा बंगाल विधानसभा (बाबुल सुप्रियो) पहुंचने में कामयाब रहे।
आसनसोल लोक सभा सीट भाजपा उम्मीदवार ने 2014 और 2019 में दो बार जीत हासिल की थी। इस बार तृणमूल के शत्रुघ्न सिन्हा ने 3,03,209 मतों के बड़े अंतर से जीत हासिल कर अपनी पार्टी के लिए एक नहीं, दो-दो रिकॉर्ड बनाए। सिन्हा इस लोक सभा क्षेत्र के निर्माण के बाद से न केवल आसनसोल से जीतने वाले पहले तृणमूल उम्मीदवार बने, बल्कि इस मामले में आसनसोल से उनके अंतर ने पिछले सभी रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया है।
वैसे किसी भी दल या उम्मीदवार के लिए चुनाव में पराजय का सामना करना चिंताजनक होता है, और हो सकता है, लेकिन दल के लिए उससे भी चिंताजनक यह कि उसका वोट फीसद बीते चुनाव की तुलना में घट जाए। चुनाव में कई दलों के उम्मीदवारों के साथ-साथ कुछ लोग निर्दलीय तौर पर भी भाग्य आजमाते हैं, लेकिन जीत किसी एक को ही नसीब होती, इसलिए चुनाव में हार के सामने को उतना गंभीर नहीं माना जाता, जितना गंभीर दल के जनाधार के घटने यानी वोट फीसद के कम होने को माना जाता है, और यह भी देखा जाता है कि आखिर, हराने वाला उम्मीदवार कौन है? फिलहाल, प्रदेश भाजपा इसी चिंता में डूबी है। इन उपचुनावों में मिली पराजय के साथ-साथ घटते वोट फीसद ने प्रदेश भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। बीते आम चुनाव (2019) में भाजपा नेता जितनी बुलंद आवाज में बोलते थे कि तमाम विपक्ष एकजुट होकर भी भाजपा को नहीं हरा सकता, अब सूबे में हुए उपचुनाव के नतीजों ने यह बता दिया कि तमाम विरोधी दल एक होकर भी ममता यानी तृणमूल कांग्रेस को नहीं हरा सकते। भाजपा के वोट फीसद में भारी गिरावट ने भगवा खेमे को चिंता में डाल दिया है। उपचुनाव के नतीजे ऐसे समय पर सामने आए हैं, जब अगला आम चुनाव (2024) करीब-करीब दो साल दूर है। दक्षिण कोलकाता स्थित बालीगंज विधानसभा इलाके में भाजपा उम्मीदवार केया घोष कुल मतों का मात्र 12.8 फीसद प्राप्त करके तीसरे स्थान पर रहीं लगभग एक साल पहले यानी 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लोकनाथ चटर्जी यहां से न सिर्फ दूसरे स्थान पर रहे थे, बल्कि उन्होंने 20.50 फीसद वोट भी हासिल किया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लगभग 2 लाख मतों के पिछले अंतर को पाटने के बाद तीन लाख से अधिक वोटों का अंतर से जीत हासिल करना काफी मुश्किल था, जिसे तृणमूल उम्मीदवार ने पूरा कर दिखाया। आसनसोल में तृणमूल ने 2019 में प्राप्त अपने वोट फीसद को 35.19 से बढ़ाकर 56 फीसद तक बढ़ाया। वहीं, भाजपा का वोट फीसद 2019 में मिले 51.16 घटकर इस बार केवल 30 फीसद रह गया। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद से भाजपा के वोट फीसद में गिरावट और बढ़ गई है और उपचुनावों में गिरावट भगवा खेमे को खतरे के संकेत है। ताजा नतीजों से लगता है कि भाजपा के पक्ष में कोई रणनीति या प्रचार अभियान काम नहीं कर रहा है, और बंगाल में फिलहाल ममता बनर्जी का जादू बरकरार है।