कहते हैं, राजा या शासक को पिता के समान होना चाहिए। पिता अपने ही बच्चों को उनकी गलतियों पर भी क्षमा करता चलता है। उनसे बदला नहीं लेता। लेकिन महाराष्ट्र में इन दिनों जो तस्वीर दिखाई दे रही है, वह अद्भुत है। यहां तो एक के बाद एक बदले के अध्याय लिखे जा रहे हैं। नेता हो, चाहे अफसर, चाहे पत्रकार, सभी इस बदलापुर की चपेट में आते दिखाई दे रहे हैं। वैसे तो इस बदलापुर की शुरुआत कोविड काल में ही हो गई थी, जब कोविड कुव्यवस्थाओं की रिपोर्टंिग करने वाले कई पत्रकारों पर शासकीय गाज गिरती दिखाई दी। ऐसा ही कुछ पालघर में दो साधुओं की नृशंस हत्या के मामले की रिपोर्टंिग करने वाले पत्रकारों के साथ भी होता दिखा।
लेकिन इसकी असली पिक्चर तो पिछले वर्ष महाराष्ट्र विधानमंडल सत्र के दौरान शुरू हुई। उन्हीं दिनों राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख की कारगुजारियां सामने आई थीं। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस विधानसभा में अपनी भूमिका निभाते हुए इन्हीं कारगुजारियों को उजागर कर रहे थे। महाराष्ट्र के इतिहास में पहली बार किसी मंत्री पर सीधे-सीधे वसूली करवाने के गंभीर आरोप लगे थे लेकिन सरकार उसका इस्तीफा लेने को तैयार नहीं थी। मुंबई से लेकर दिल्ली तक, उद्धव ठाकरे से लेकर शरद पवार तक अनिल देशमुख के बचाव में कूद पड़े थे। लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाती। उच्च न्यायालय ने उसी सीबीआई को देशमुख की जांच का जिम्मा दे दिया, जिसे राज्य सरकार ने सुशांत सिंह राजपूत मामले के बाद राज्य में न घुसने देने का प्रणलिया था। मजे की बात यह कि इस मामले में देशमुख और राज्य सरकार को उसी आईपीएस परमबीर सिंह ने फंसाया, जो कुछ दिनों पहले तक राज्य सरकार का चहेता बन उन्हीं के इशारे पर नाच रहा था। पोल खुली तो बदलापुर याद आया। बदले की कार्रवाई में परमबीर सिंह पर एक के बाद एक मामले दर्ज होने लगे। जो परमबीर चंद दिनों पहले तक दूध के धुले थे, कर्मठ, कर्त्तव्यनिष्ठ, वफादार थे, वही अचानक बुरे हो गए। सरकार उन्हीं को जेल में डालने के पीछे पड़ गई। उन्हें महीनों मुंबई से बाहर भागकर किसी और राज्य में छिपे रहना पड़ा।
ऐसी ही स्थिति एक और आईपीएस रश्मि शुक्ला की हुई। रश्मि शुक्ला राज्य खुफिया विभाग की प्रमुख थीं। उन्होंने समय ट्रांस्फर-पोस्टिंग में घपलों की जांच के लिए तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) की अनुमति से ही कुछ लोगों के टेलीफोन टैप करवाए। इसकी रिपोर्ट उन्होंने पुलिस महानिदेशक एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के अलावा मुख्यमंत्री को भी सौंपी। इस रिपोर्ट में भी उंगलियां गृह मंत्री देशमुख पर ही उठ रही थीं। महाविकास (या महाविकार!) आघाड़ी सरकार की कार्यशैली देखिए कि रश्मि शुक्ला ने जिस गृह मंत्री की अनियमितता को रोकने की गुहार मुख्यमंत्री से लगाई थी, मुख्यमंत्री ने वह रिपोर्ट उसी गृह मंत्री के पास भेज दी। नतीजा हुआ कि आईपीएस रश्मि शुक्ला के विरुद्ध भी कई मामले दर्ज कर उन्हें दंडित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उनको भी न्यायालय ने राहत प्रदान की।
इस बीच नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की एक कार्रवाई में अभिनेता शाहरुख खान के पुत्र के पकड़े जाने के बाद महाविकास आघाड़ी सरकार के एक और मंत्री नवाब मलिक सक्रिय हो गए। क्योंकि एनसीबी कुछ महीने पहले उनके दामाद को धर चुकी थी। मलिक ने जोर-शोर से एनसीबी के एक अधिकारी के विरु द्ध मोर्चा खोल दिया और उस पर जातिगत प्रहार करने से भी नहीं चूके। पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस एवं भाजपा नेता मोहित कम्बोज सहित कुछ अन्य भाजपा नेताओं को भी लपेटे में लेने की कोशिश की। लेकिन कुछ ही दिनों बाद लपेटे में खुद आ गए, जब एक संदिग्ध भूखंड सौदे में वह केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के घेरे में आए। यह मामला भगोड़े माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर और भाई इकबाल कासकर से जुड़ा होने के कारण ज्यादा गंभीर है। महाविकास आघाड़ी के कई और नेता भी प्रवर्तन निदेशालय के फंदे में फंसे दिख रहे हैं। इसलिए बदलापुर की अगली कार्रवाई ईडी पर होने की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। राज्य सरकार ईडी के कुछ अधिकारियों पर हफ्तावसूली का आरोप लगाकर उन पर दबाव डालने का प्रयास करने लगी है।
अब ऐसा ही कुछ मामला इन दिनों अमरावती के दो निर्दलीय जनप्रतिनिधियों के साथ होता दिख रहा है। वहां की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके पति अमरावती की ही बडनेरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रवि राणा ने जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करने की घोषणा की तो उनके विरु द्ध राजद्रोह का मामला दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया। सैकड़ों शिवसैनिकों ने उनके घर के बाहर जाकर हंगामा शुरू कर दिया। उनसे मिलने पुलिस थाने पहुंचे भाजपा नेता किरीट सोमैया पर शिवसैनिकों ने हमला कर उनकी गाड़ी तोड़ते हुए उन्हें जख्मी कर दिया। किरीट पर शिवसैनिकों का यह तीसरा हमला है क्योंकि वह अक्सर शिवसेना नेताओं के भ्रष्टाचार दस्तावेज के साथ उजागर करते रहते हैं। भाजपा नेता मोहित कम्बोज पूरी निडरता के साथ महाराष्ट्र सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोलने में लगे हैं, तो उन पर भी शिवसैनिकों ने जानलेवा हमला किया तथा मॉब लिंचिंग करने की कोशिश की। शिवसेना की बौखलाहट इसलिए है, क्योंकि मुंबई में इन दिनों भाजपा महाविकास आघाड़ी सरकार का ‘पोल खोल अभियान’ चला रही है। जगह-जगह स्क्रीन लगाकर नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस का वह भाषण दिखाया जा रहा है, जिसमें इस त्रिदलीय सरकार में अब तक हुए भ्रष्टाचार का विवरण पेश किया जा रहा है। लेकिन इस बौखलाहट से शिवसेना, या महाविकास आघाड़ी का कोई भला नहीं होने वाला। उलटे नुकसान ही होगा।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से फड़नवीस ने सवाल किया है कि हनुमान चालीसा का पाठ यदि भारत में नहीं होगा तो क्या पाकिस्तान में होगा। आज बालासाहेब ठाकरे जीवित होते तो उनका भी सवाल यही होता। अपने पिता को स्मरण कर क्या उद्धव ठाकरे इस सवाल का माकूल जवाब दे सकते हैं?