पश्चिमी देशों को आईना दिखाते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जो कहा वह भारत के बढ़ते कद और हौसले का परिचायक है। जयशंकर ने साफ कहा, ‘हमें पता है, हम कौन हैं हम दूसरे देशों को खुश करने के लिए उनकी छाया नहीं बन सकते।’
रायसीना डायलॉग नामक कार्यक्रम में तीनों दिन पश्चिमी देश जहां भारत पर अपने पाले में खड़ा होने का दबाव बनाते रहे वहीं भारत ने दृढ़ता से अपनी बात रखी। तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने किया था।
अंतिम दिन के एक सत्र में जयशंकर ने कहा कि भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खुश करने का प्रयास करने की बजाय दुनिया से लेन देन करने के लिए अपनी पहचान पर विश्वास को आधार बनाना चाहिए। उन्होंने कहा,‘हम कौन हैं, इस बारे में हमें आत्मविश्वास-पूर्ण होना चाहिए। हमें दुनिया से अपनी असली पहचान के दम पर ही लेन देन करना चाहिए। दूसरे हमें परिभाषित करें यह बीते जमाने की बात हो चुकी है।
हमें किसी भी तरह दूसरों की स्वीकृति की जरूरत नहीं है। रूस-यूक्रेन संकट पर उन्होंने कहा कि इस समय लड़ाई को रोकने और बातचीत शुरू करने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। यूक्रेन युद्ध की शुरु आत से ही पश्चिमी देश भारत के किसी भी पक्ष का साथ न देने को लेकर असहज रहे हैं। अर्से से जाहिर भारत-रूस संबंधों को लेकर भारत की आलोचना की जाती रही, यहां तक कि अमेरिका ने भी दबाव बनाने का खुला प्रयास किया। जबकि भारत हमेशा युद्ध और हिंसा को खत्म करने और वार्ता की अपील करता रहा।
रूस की आलोचना में भारत ने पश्चिम का साथ नहीं दिया लेकिन जब यूक्रेन के बूचा शहर में मासूम नागरिकों के नरसंहार की खबरें सामने आई तो भारत ने इसकी कड़ी निंदा की। रायसीना डायलॉग के यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन ने रूस पर लगाए गए यूरोपीय प्रतिबंधों के पक्ष में भारत का भी समर्थन मांगा।
लेकिन भारत अपनी स्थिति पर कायम रहा। भारत ने पश्चिमी देशों को ही आड़े हाथों लिया। चीन की आक्रामकता को नजरअंदाज करने और अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी जैसी एशिया की सबसे बड़ी चुनौतिया की परवाह न करने पर जयशंकर ने उन्हें ही खरी खोटी सुना दी।