यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों खुद ही सुशासन की गुम हो चुकी कड़ियो की खोज में जुट गए हैं। जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में उन्हें ऐसी कड़ियां खूब मिल रही हैं। उन्हें अहसास हो रहा है कि तंत्र सचमुच उस स्तर पर काम नहीं कर रहा है, जिसका दावा उन्हें रिपोर्ट करने वाले अधिकारी और साथ रहने वाले चुनिन्दा जन प्रतिनिधि करते हैं। दावा में यही बताया जाता रहा है कि सबकुछ ठीक ढर्रे पर है। लेकिन, मुख्यमंत्री खुद देख रहे हैं कि सच में उनके सपने के साथ क्या हो रहा है। खैर, संतोष की बात यह है कि गड़बड़ियों को वह खुद देख रहे हैं। सकारात्मक परिणाम भी आने लगे हैं। जिला, अनुमंडल और प्रखंड कार्यालयों के अलावा पुलिस थाने में भी यह डर नजर आने लगा है कि शिकायत ऊपर तक जा सकती है।
यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि मुख्यमंत्री की खुली आंखों के सामने ये उनके और जनता के बीच की कुछ कड़यां गुम हुई। कुछ कमजोर हुईं और कुछ टूट भी गईं। जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के मौजूदा सीजन में कई ऐसी शिकायतें आ रही हैं, जिसे सुनकर मुख्यमंत्री का मुंह आश्चर्य से खुला रह जाता है। यह बताता है कि सुशासन के कार्यक्रम के कार्यान्वयन और निगरानी के लिए उन्होंने जिस तंत्र पर भरोसा किया था, उसने मुस्तैदी से अपना काम कम और दिखावा अधिक किया।
कानून का राज और सुशासन
नीतीश के शासन को इन दो सूत्रों में समेटे तो पता चलेगा कि राज्य की नई पहचान इन दोनों की ही देन हैं। सड़क, बिजली, बच्चों को आकर्षित करने के लिए नई नई योजनाएं से सब इन्हीं सूत्रों से बंधे हुए हैं, जिनसे न्याय के साथ विकास की अवधारणा बनी। लेकिन, समय के साथ इसमें बदलाव हुआ। अपराध की हरेक घटना के बाद आम आदमी की धारणा बदली। राहत की बात है कि सरकार भी आम धारणा से सहमत हुई है कि सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। सरकार ने इसी 12 अप्रैल को एक आदेश जारी किया, जिसमें समाज में भय का वातावरण बनाने वाले अपराधों की सूची दी गई और अधीनस्थों को कहा गया कि वे पूरी ताकत से इन पर काबू पाएं। सार्वजनिक स्थलों पर फायङ्क्षरग, हथियारों का प्रदर्शन, हत्या, लूट, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण, रंगदारी, चेन-मोबाइल की स्नैचिंग, महिलाओं के विरूद्ध अपराध एवं अनुसूचित जाति, जनजाति के विरूद्ध अपराध के मामलों को इस सूची में शामिल किया गया है। सरकार ने माना कि इस प्रवृति के अपराध से समाज में भय का वातावरण उत्पन्न होता है। आदेश के साथ इन अपराधों से निबटने के उपाय भी बताए गए हैं। कुल मिला कर अपराध पर काबू पाने के दो उपाय बताए गए हैं-जल्द अनुसंधान और जल्द ट्रायल। इन दो उपायों से ही 2005-10 के बीच अपराध पर काबू पाया गया था। उम्मीद की जा सकती है कि इन उपायों से अपराध पर पहले की तरह काबू पाया जा सकता है। इन उपायों की पहचान कर सरकार ने अपराध नियंत्रण के मामले में एक निहायत कमजोर कड़ी की पहचान कर ली है।
कानून व्यवस्था की तरह विकास में अनियिमितता और लोक शिकायत निवारण अधिनियम के दायरे में आने वाली सेवाओं में त्रुटि की शिकायतों पर भी गौर किया जा रहा है। सरकार को यह प्रेरणा भी जनता दरबार से ही मिली। सरकार के अधिकारी गांवों में जा रहे हैं। वे योजनाओं की जमीनी हालत देख रहे हैं। रिपोर्ट में गड़बड़ी की चर्चा करेंगे। जिम्मेवारी निर्धारित करेंगेे। उस आधार पर दंडात्मक कार्रवाई होगी। खास बात यह है कि यह सब औचक तरीके से हो रहा है। अधिकारियों को अंतिम समय तक पता नहीं रहता है कि उन्हें किस गांव या पंचायत में जाना है। रिपोर्ट लिखने के लिए भी उन्हें अधिक समय नहीं मिलता है। यानी कोई आदमी चाहे कि अधिकारी को कुछ देकर अपने पक्ष में रिपोर्ट लिखवा लें तो यह संभव नहीं है। इसके अलावा किसी योजना की एक से अधिक जांच के उपाय भी किए गए हैं। सरकार कार्रवाई करने से पहले पूरी तरह आश्वस्त होना चाहती है कि दोषी को ही सजा मिलने जा रही है।
जमीन से जुड़ी शिकायतें
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साफ समझ है कि जमीन से जुड़े विवाद के कारण ही अपराध की 60 प्रतिशत घटनाएं होती हैं। जमीन से जुड़ी सेवाओं को आनलाइन किया गया है। फिर भी म्यूटेशन और दखल-कब्जा में रिश्वतखोरी की शिकायतें कम नहीं हो रही हैं। इसकी शिकायत किसी आधिकारिक मंच पर दर्ज नहीं होती है। अंचलों में तैनात अधिकारियों का भी दर्द है-पोस्टिंग के लिए कुछ देना पड़ा है। वेतन के पैसे से तो उसकी भरपाई करेंगे नहीं।
न्यायालयों की सक्रियता बढ़ेगी
सरकार भी मान रही है कि अनुमंडल एवं जिला स्तर के अधिकारी अपने न्यायालय से जुड़े दायित्वों का पालन नहीं करते हैं। यह शिकायत लंबे समय से आ रही थी। मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने इसी 15 अप्रैल को जिलाधिकारियों को आदेश दिया कि वह खुद दंडाधिकारी की भूमिका का निर्वहन करें। साथ में यह भी देखें कि अधीनस्थ अधिकारी न्यायलय से जुड़ा काम करते हैं या नहीं। इस संदर्भ में समाहर्ता सह जिला दंडाधिकारी, अपर समाहर्ता, भूमि सुधार उप समाहर्ता, अन्य राजस्व पदाधिकारी एवं नीलाम पत्र अधिकारी के न्यायालय का जिक्र किया गया है।
पैर की सुस्ती, सिर पर बोझ
जनता के दरबार में ऐसी शिकायतें आती हैं, जिनका समाधान थाना, प्रखंड, अनुमंडल और जिला स्तर पर आसानी से किया जा सकता है। उदाहरण देखिए:-11 अप्रैल को जनता के दरबार में पूर्णिया के एक फरियादी की शिकायत थी कि दबंगों से सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर कब्जा जमा लिया है। मुंगेर की एक महिला की बेटी की मौत साल भर पहले सर्पदंश से हुई। अबतक मुआवजा नहीं मिला। तीन जनवरी को पटना रूपसपुर की एक लड़की ने बताया कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ। पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है। एक व्यक्ति की शिकायत थी कि डीएम के आदेश के बावजूद सीओ ने जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त नहीं कराया। छोटे भाई के हत्यारों की गिरफ्तारी की फरियाद अररिया के एक युवक ने की।
इस हाल पर गौर करें
बिहार लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत आने वाले आवेदनों में से 55.6 प्रतिशत मामले स्वीकृत किए गए। 20.8 प्रतिशत मामले पहली नजर में ही खारिज कर दिए गए। 23. 8 प्रतिशत मामलों में वैकल्पिक सुझाव दिए गए। कुल परिवाद -11 लाख, 41 हजार 198,निष्पादित परिवाद 11 लाख, तीन हजार 947। इस हिसाब से सिर्फ 37257 मामले अनिर्णीत हैं।
अधिनियम के दायरे में विभाग और उनकी सेवाएं
कृषि-12, पशु एवं मत्स्य संसाधन-26, कला संस्कृति एवं युवा विभाग-18, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग-09, भवन निर्माण विभाग-04, मंत्रिमंडल सचिवालय-03, वाणिज्य कर विभाग-01, सहकारिता-05, आपदा प्रबंधन-06, शिक्षा-48, निर्वाचन-03, ऊर्जा-11, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन-18, वित्त-03, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण-04, सामान्य प्रशासन-06, स्वास्थ्य विभाग-16, गृह विभाग-19, उद्योग विभाग-15, सूचना एवं जन संपर्क विभाग-07, सूचना एवं प्रोद्योगिकी-04, श्रम संसाधन विभाग-31, विधि विभाग-01, खान एवं भूतत्व-03, लघु जल संसाधन-03, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग-10, पंचायती राज-06, योजना एवं विकास विभाग-11, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग-02, मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन-13, राजस्व एवं भूमि सुधार-30, पथ निर्माण विभाग-06, ग्रामीण विकास-08, ग्रामीण कार्य विभाग-02, विज्ञान एवं प्रावैधिकी-06, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण-16, समाज कल्याण विभाग-27, गन्ना उद्योग विभाग-04, परिवहन विभाग-07, पर्यटन विभाग-09, नगर विकास-30, निगरानी विभाग- 01, जल संसाधन विभाग-11।