‘सीधी बात, नो बकवास’ वैसे तो यह टैगलाइन एक कोल्ड ड्रिंक ब्रैंड की है, मगर विदेश मंत्री एस जयशंकर इसी फलसफे पर चलते हैं। 2019 में जिम्मेदारी संभालने के बाद से जयशंकर ने भारतीय डिप्लोमेसी का तरीका ही बदल दिया है। वह बिना लाग-लपेट के बात करते हैं और सवालों के जाल में नहीं फंसते। रूस से तेल/गैस खरीद और अभी अमेरिका में 2+2 बातचीत के साथ-साथ जो कुछ मीडिया इंटरऐक्शन हुए, उनमें जयशंकर के जवाब सुनकर जनता गदगद है। ट्विटर पर बहुतों ने लिखा है कि भई वाह! अमेरिका को इससे पहले तो किसी भारतीय मंत्री ने ऐसे आइना नहीं दिखाया। जयशंकर चुभ जाने वाली बात भी बिना चेहरे के भाव बदले ऐसे कह जाते हैं जैसे ‘मक्खन पर चाकू’ चलता है, ऐसा एक यूजर ने लिखा है। एस जयशंकर के इस ‘नो नॉनसेंस’ एटिट्यूड के पीछे है डिप्लोमेसी में दशकों का अनुभव। 38 साल तक भारतीय विदेश सेवा (IFS) में रहे जयशंकर ने अमेरिका और चीन को बेहद करीब से हैंडल किया है।
बतौर डिप्लोमेट बेहद नपा-तुला बोलने वाले जयशंकर अब फ्री-हैंड मिलने पर फॉर्म में आ गए है। पत्रकारों को दिए उनके जवाब तो वायरल हो ही रहे हैं, उनके वन-लाइनर्स की भी तगड़ी फैन फॉलोइंग तैयार हो गई है। एस जयशंकर इन दिनों अपने इन 5 जवाबों से सोशल मीडिया पर खूब वाहवाही बटोर रहे हैं।
मानवाधिकार पर अमेरिका को दिखाया आइना
भारत और अमेरिका के बीच पिछले दिनों 2+2 बातचीत हुई। जयशंकर अपने सीनियर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ वाशिंगटन गए। वहां कई ऐसे मौके आए जब जयशंकर ने भारतीय हित को सबसे ऊपर रखा और मीडिया की आशंकाओं को सिरे से खारिज किया। इसी दौरान, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत में ‘मानवाधिकारों के हनन’ का जिक्र किया था। फिर जयशंकर ने जवाब जवाब दिया, उसका वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल है। जयशंकर ने अपने जवाब में कहा कि भारत भी अमेरिका में मानवाधिकार हनन को लेकर चिंतित है। जयशंकर के जवाब पर काफी सारे यूजर्स ने कहा कि उन्होंने इससे पहले किसी विदेश मंत्री को यूं अमेरिका को आइना दिखाते नहीं देखा।
रूस से खरीद के सवाल पर बंद कर दी बोलती
जयशंकर के अमेरिकी दौरे की शुरुआत ही हुई थी। दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री मीडिया के सवालों के जवाब दे रहे थे। इसी दौरान एक सवाल आया कि भारत ने रूस से तेल/गैस खरीद क्यों जारी रखी है जब उसने यूक्रेन में युद्ध छेड़ रखा है। जयशंकर ने जवाब में आंकड़े रख दिए। सवाल पूछने वाले पत्रकार से कहा कि भारत एक महीने में रूस से जितनी एनर्जी खरीदता है, उतनी यूरोप आधे दिन में खरीद लेता है तो सवाल यूरोपियन देशों से होना चाहिए। देखिए जयशंकर के इस जवाब का वीडियो।
‘ऑपरेशन गंगा’ पर संसद की वायरल स्पीच
इसी महीने की शुरुआत में जयशंकर ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए चले ‘ऑपरेशन गंगा’ पर संसद में बयान दिया। लोकसभा में जयशंकर ने मिशन की जानकारी देते हुए जो दिलचस्प बात बताई, उसका वीडियो वायरल हो गया। EAM ने लोकसभा में कहा कि एक देश के विदेश मंत्री ने उनके सामने यह गर्व से कहा कि उन्होंने दो प्लेन से अपने नागरिकों को यूक्रेन से वापस लाया और जब उनके पूछने पर बताया कि भारत ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत 90 प्लेन से नागरिकों को लाया तो वो हक्का-बक्का रह गए।
जयशंकर से मोदी के पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह भी खासे इम्प्रेस थे। इतने कि 2013 में विदेश सचिव के लिए जयशंकर ही उनकी पहली पसंद थे, मगर सोनिया गांधी ने मनमोहन के हाथ बांध दिए। नतीजा नियुक्ति कांग्रेस के पुराने वफादार और पूर्व आईबी चीफ टीवी राजेश्वर की बेटी सुजाता सिंह की हुई। मोदी ने पीएम बनने के बाद जयशंकर को जो जिम्मेदारी सौंपी, वे उसपर पूरी तरह खरे उतरे। एनडीए-1 में सुषमा स्वराज के मातहत काम करते हुए जयशंकर की भूमिका पीएम के अनऑफिशियल एडवाइजर की रही। 2019 में जब सुषमा की जगह भरने की बात आई तो मोदी ने फिर जयशंकर पर भरोसा किया। करीब तीन साल के कार्यकाल में जयशंकर ने साबित कर दिया है कि वह इस पद के लिए बेस्ट चॉइस थे।
1977 बैच के IFS अधिकारी एस जयशंकर 2013 में विदेश सचिव बनने की रेस में सबसे आगे थे। वह तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की पहली पसंद थे, मगर जयशंकर को करीब रख नहीं पाए। वजह, सुजाता सिंह। उस वक्त सिंह सबसे सीनियर IFS अधिकारी थीं और जर्मनी में राजदूत के रूप में तैनात थी। सीनियॉरिटी का हवाला देकर उन्होंने पद पर दावा ठोका और यह कहा कि अगर उन्हें नजरअंदाज किया गया तो इस्तीफा दे देंगी।
ऐसा नहीं कि मनमोहन के पास मिसाल नहीं थी। यूपीए-1 में ही दर्जन भर IFS अधिकारियों को किनारे कर शिवशंकर मेनन को विदेश सचिव बनाया गया था। तब कई इस्तीफे हुए थे मगर स्टैंड नहीं बदला। हालांकि 2013 आते-आते कहानी बदल चुकी थी। यूपीए-2 संकट में थी। ऐसे में IFS अधिकारियों का विरोध सहना उसे हितकर नहीं लगा।
सुजाता कांग्रेस के पुराने नेता और पूर्व आईबी प्रमुख टीवी राजेश्वर की बेटी थीं। चर्चा जारों तक थी कि उनकी लॉबीइंग कांग्रेस नेतृत्व तक से हुई। मनमोहन की चॉइस पर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने वीटो कर दिया और सुजाता को विदेश सचिव बना दिया गया।
2015 में विदेश सचिव बनने के बाद जयशंकर ने MEA और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की दूरियां कम कीं। वह फॉरेन पॉलिसी पर मोदी के अनऑफिशियल एडवाइजर बनते चले गए। विदेश दौरे पर जयशंकर PM मोदी के साथ रहते थे जबकि आमतौर पर विदेश सचिव ऐसी यात्राओं पर नहीं जाते। मोदी और जयशंकर ने साथ में हिंद महासागर क्षेत्र, कनाडा, दक्षिण कोरिया, अफ्रीका, पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों का दौरा किया।
सितंबर 2016 में नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे का क्रेडिट जयशंकर को ही मिला। तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ दो मुलाकातों (सितंबर 2014 में वॉशिंगटन और जनवरी 2015 में दिल्ली) के पीछे भी जयशंकर ही थे। मोदी तेज काम करने में यकीन रखते हैं, नए आइडिया एक्सप्लोर करते हैं, ग्लोबल मैप पर भारत की ताकत दिखाना चाहते हैं, जयशंकर उनके लिए एकदम सही सलाहकार साबित हुए।
एस जयशंकर की पहचान ऐसे डिप्लोमेट की रही है जो किसी भी राजनीतिक नेतृत्व और उसके विजन से तालमेल बैठा लेते थे। जयशंकर बेहद विद्वान अधिकारियों में गिने जाते थे। विदेश मंत्रालय का काम संभालने के बाद फॉरेन पॉलिसी में उनके ‘रियलिस्टिक अप्रोच’ की साफ झलक मिलती है।
जयशंकर इन दिनों अपने अमेरिका दौरे के चलते सुर्खियों में है। अमेरिका के साथ जयशंकर का पुराना कनेक्शन है। 1981 से 1985 के बीच विदेश मंत्रालय मुख्यालय में अंडर सेक्रेटरी (अमेरिका) और पॉलिसी प्लानिंग में रहते हुए जयशंकर का पहली बार सुपरपावर से पाला पड़ा। फिर 1985 से 1988 तक जयशंकर को वाशिंगटन स्थित दूतावास में फर्स्ट सेक्रेटरी बनाकर भेजा गया। फिर 2007 से 2007 के बीच MEA में जॉइंट सेक्रेटरी (अमेरिका) रहते हुए जयशंकर उन चुनिंदा लोगों में थे जो भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील पर नेगोशिएट कर रहे थे।
सिर्फ अमेरिका ही नहीं, चीन के बारे में भी जयशंकर की डिप्लोमेटिक समझ के लोग कायल हैं। 1978 में सोवियत युग के मॉस्को से अपना करियर शुरू करने वाले जयशंकर फर्राटे से रशियन बोलते हैं। हाल ही में यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच, जयशंकर ने रूस और अमेरिका दोनो को साध रखा है जो उनकी काबिलियत साबित करता है।