किसी एक साथी देश पर हमले को बाकी सभी पर हमला मानने वाला दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन NATO फिर चर्चा में है। अमेरिकी दबदबे वाला NATO रूस-यूक्रेन विवाद में सबसे बड़ी वजह बनकर उभरा है। कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा यूक्रेन NATO से जुड़ना चाहता है, जबकि रूस अपनी सुरक्षा के लिहाज से इसे खतरनाक मानते हुए यूक्रेन को ऐसा करने से रोकने के लिए उसके खिलाफ युद्ध छेड़ चुका है।
आखिर क्या है NATO?
NATO का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है।
- NATO की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी। इसका हेडक्वॉर्टर बेल्जियम के ब्रसेल्स में है।
- NATO की स्थापना के समय अमेरिका समेत 12 देश इसके सदस्य थे। अब 30 सदस्य देश हैं, जिनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं।
- इस संगठन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी NATO देशों और उसकी आबादी की रक्षा करना है।
- NATO के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को NATO के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।
- 1952 में NATO से जुड़ा तुर्की इसका एकमात्र मुस्लिम सदस्य देश है।
12 देशों ने की थी NATO की स्थापना
NATO के 12 संस्थापक देशों में अमेरिका, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्मजबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम शामिल थे।
NATO की नींव कैसे पड़ी थी?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ को रोकने के लिए अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने एक सैन्य गठबंधन बनाया था, जिसे NATO के नाम से जाना जाता है।
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका दो सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे, जो दुनिया पर अपना दबदबा कायम करना चाहते थे। इससे अमेरिका और सोवियत संघ के संबंध बिगड़ने लगे और उनके बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत हुई।
- सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार दूसरे विश्व युद्ध के बाद कमजोर पड़ चुके यूरोपीय देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती थी।
- सोवियत संघ की योजना तुर्की और ग्रीस पर अपना दबदबा बनाने की थी। तुर्की और ग्रीस पर पर कंट्रोल से सोवियत संघ काला सागर के जरिए होने वाले दुनिया के व्यापार को नियंत्रित करना चाहता था।
- सोवियत संघ की इन विस्तारवादी नीतियों से पश्चिमी देशों और अमेरिका से उसके संबंध पूरी तरह खराब हो गए।
- आखिरकार यूरोप में सोवियत संघ के प्रसार को रोकने के लिए यूरोपीय देशों और अमेरिका ने मिलकर NATO की नींव डाली।

अक्सर चर्चा में रहने वाला NATO का आर्टिकल-5 क्या है?
- NATO के लिए आर्टिकल-5 सबसे महत्वपूर्ण है और इस सैन्य संगठन की मूल आत्मा है।
- NATO के आर्टिकल-5 के मुताबिक, ये संगठन अपने सदस्यों की सामूहिक रक्षा में यकीन करता है। इसका मतलब है कि इसके किसी भी देश के खिलाफ बाहरी हमले को सभी सहयोगियों के खिलाफ हमला माना जाएगा।
- 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकियों के हमले के बाद NATO ने पहली बार आर्टिकल-5 का इस्तेमाल किया था। इसके तहत अफगानिस्तान में आतंकियों और तालिबान के खिलाफ NATO देशों के सैनिकों ने संयुक्त कार्रवाई की थी।
सोवियत संघ NATO को रोकने के लिए लाया था वारसा पैक्ट
- NATO से निपटने के लिए सोवियत संघ ने 14 मई 1955 को वारसा ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन यानी WTO या वारसा पैक्ट किया था।
- वारसा पैक्ट सोवियत संघ समेत 8 देशों-अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया के बीच हुआ था।
- सोवियत संघ के विघटन के बाद 1 जुलाई 1991 को वारसा पैक्ट खत्म हो गया था।
कैसे होता गया NATO का विस्तार
- NATO के गठन के समय इसमें केवल 12 देश थे। इसके बाद अगले 6 सालों में यानी 1955 तक इससे तीन और देश तुर्की, ग्रीस और पश्चिमी जर्मनी जुड़े।
- सोवियत संघ के साथ अमेरिका के कोल्ड वॉर (1945-1990) के दौरान NATO का विस्तार लगभग थमा रहा। इस दौरान केवल 1982 में स्पेन ही NATO से जुड़ा, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद इसने तेजी से विस्तार किया।
- NATO से जुड़ने वाला आखिरी देश उत्तरी मेसेडोनिया था, जो 2020 में जुड़ा था। NATO के अब कुल 30 सदस्य देश हैं।
रूस-यूक्रेन विवाद की वजह बना NATO
- 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद NATO ने खासतौर पर यूरोप और सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों के बीच तेजी से प्रसार किया।
- 2004 में NATO से सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन देश- लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया जुड़े, ये तीनों ही देश रूस के सीमावर्ती देश हैं।
- पोलैंड (1999), रोमानिया (2004) और बुल्गारिया (2004) जैसे यूरोपीय देश भी NATO के सदस्य बन चुके हैं। ये सभी देश रूस के आसपास हैं और उनके और रूस के बीच में केवल यूक्रेन पड़ता है।
- यूक्रेन पिछले कई वर्षों से NATO से जुड़ने की कोशिश करता रहा है। उसकी हालिया कोशिश की वजह से ही रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया है।
- यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन NATO से जुड़ता है तो NATO सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी।
- यूक्रेन के NATO से जुड़ने पर रूस की राजधानी मॉस्को की पश्चिमी देशों से दूरी केवल 640 किलोमीटर रह जाएगी। अभी ये दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गांरटी दे कि वह कभी भी NATO से नहीं जुड़ेगा।
- अमेरिका NATO के जरिए रूस को चारों ओर से घेर रहा है। सोवियत संघ के टूटने के बाद 14 यूरोपीय देश NATO में शामिल हो चुके हैं। अब वह यूक्रेन को भी NATO में शामिल करना चाहता है।
रूस से भी बने NATO के संबंध, जल्द बिगड़ भी गए
- 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस और NATO के बीच संबंध स्थापित हुए थे।
- 1994 में रूस NATO के पार्टनरशिप ऑफ पीस प्रोग्राम से जुड़ा था।
- रूस और NATO ने NATO-रशिया काउंसिल का गठन किया था।
- 2014 में रूस के क्रीमिया पर हमले के बाद NATO ने रूस के साथ सभी व्यावहारिक नागरिक और सैन्य सहयोग को सस्पेंड कर दिया था।
- 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताते हुए NATO ने इसका विरोध किया है।
क्या है पार्टनरशिप फॉर पीस प्रोग्राम या PfP
1994 में स्थापित हुए इस प्रोग्राम का उद्देश्य NATO और गैर NATO देशों के बीच शांति और सुरक्षा के लिए संबंध बनाना है। ये देश NATO के सदस्य नहीं होते और उनके बीच इसके 30 सदस्यों की तरह कोई सैन्य गठबंधन नहीं होता है।
इस प्रोग्राम से वर्तमान में रूस समेत 20 देश जुड़े हुए हैं। PfP में रूस, अर्मेनिया, अजरबैजान, बेलारूस, बोस्निया एंड हर्जेगोविना, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मोलदोवा, सर्बिया, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन, उज्बेकिस्तान, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, आयरलैंड, माल्टा, स्वीडन और स्विट्जरलैंड हैं।
NATO ने चलाए हैं कौन से प्रमुख ऑपरेशन?
अपने गठन के करीब पांच दशक बाद तक NATO ने कोई सैन्य अभियान नहीं चलाया था। 1990 के दशक के बाद दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में NATO ने कई अभियान चलाए।
ऑपरेशन एंकर गार्ड (1990): NATO ने अपना पहला सैन्य अभियान कुवैत पर इराक के हमले के बाद चलाया था। ऑपरेशन एंकर गार्ड के जरिए तुर्की को हमले से बचाने के लिए वहां NATO के फाइटर प्लेन तैनात किए गए थे।
ऑपरेशन ऐस गार्ड (1991): ये अभियान भी इराक-कुवैत युद्ध की वजह से चलाया गया था। इसमें NATO की मोबाइल फोर्स और एयर डिफेंस को तुर्की में तैनात किया गया था। NATO सेनाओं के दबाव में इराक ने कुछ ही महीनों बाद फरवरी 1991 में कुवैत को आजाद कर दिया था।
ऑपरेशन जॉइंट गार्ड (1993-1996): 1992 में यूगोस्लाविया के विघटन के बाद हुए बोस्निया और हर्जेगोविना युद्ध में NATO सेनाओं ने हिस्सा लिया था।1994 में NATO ने चार बोस्नियाई सर्ब वॉर प्लेन को मार गिराया था। ये NATO का पहली सैन्य कार्रवाई थी। 1995 में NATO की दो हफ्ते की बमबारी ने यूगोस्लाविया युद्ध का अंत कर दिया था।
ऑपरेशन एलाइड फोर्स (1999): कोसोवो में अल्बानियाई मूल के लोगों पर अत्याचार के बाद मार्च 1999 में NATO ने यूगोस्लाविया की सेना के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। अब भी, नाटो के कोसोवो फोर्स (KFOR) के रूप में कोसोवो में नाटो के मित्र देशों और सहयोगियों के लगभग 3,500 सैनिक तैनात हैं।

अफगानिस्तान युद्ध (2003): 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद NATO ने पहली बार अपने आर्टिकल-5 का यूज किया था। इसके तहत NATO देशों ने 2003 में अफगानिस्तान में तालिबानियों के खिलाफ जंग छेड़ी थी। ये NATO का नॉर्थ अटलांटिक क्षेत्र के बाहर पहला अभियान था।

NATO ट्रेनिंग मिशन इराक (2004): सद्दाम हुसैन के अंत के बाद अगस्त 2004 में इराकी सेनाओं की मदद के लिए वहां NATO ट्रेनिंग मिशन शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य इराकी सेनाओं को ट्रेनिंग देकर तैयार करना है।
ऑपरेशन ओशन शील्ड (2009): अगस्त 2009 में NATO ने अदन की खाड़ी और हिंद महासागर में समुद्री यातायात को सोमाली समुद्री लुटेरों से बचाने के लिए अपने युद्धपोतों को तैनात किया था।
लीबिया में सैन्य हस्तक्षेप (2011): 2011 में लीबिया में कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प से गृह युद्ध छिड़ने के बाद मार्च 2011 में NATO सेनाओं ने आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए लीबिया में अपनी सेनाएं उतारी थीं।
NATO देशों के बीच हो चुका है विवाद
फ्रांस ने 1966 में NATO में अमेरिकी प्रभुत्व की बात कहते हुए इससे अलग होने का ऐलान कर दिया था। 2009 में फ्रांस इससे फिर जुड़ा था। 1974 में साइप्रस पर तुर्की के हमले के बाद NATO की प्रतिक्रिया से नाराज होकर ग्रीस ने इससे नाता तोड़ लिया था। हालांकि, 1980 में ग्रीस इससे फिर जुड़ गया था।
क्या है NATO का बजट और उसकी सेना?
- NATO के पास अपनी सेना तो करीब 20 हजार ही है, लेकिन उसके सभी सदस्यों की सेना को मिलाकर उसके पास 30 लाख से ज्यादा एक्टिव सैनिक हैं।
- 2020 में सभी NATO सदस्यों का संयुक्त सैन्य खर्च वैश्विक सैन्य खर्च के 57% से अधिक था।
- NATO का लक्ष्य है कि उसके सभी देश अपनी GDP का 2% रक्षा पर खर्च करें, लेकिन अभी तक केवल अमेरिका, ब्रिटेन और ग्रीस ही ये लक्ष्य हासिल कर पाए हैं।
- 2021 में NATO के सभी 30 देशों का अनुमानित संयुक्त रक्षा खर्च 1,174 अरब डॉलर, यानी करीब 88.13 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रहा। 2020 में नाटो देशों ने 1,106 अरब डॉलर यानी करीब 83 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे।
- 2021 में NATO के कुल सैन्य खर्च में सबसे ज्यादा 69% योगदान अमेरिका का था और उसने अकेले 811 अरब डॉलर, यानी करीब 60 लाख करोड़ रुपए खर्च किए। बाकी के 29 देशों ने 383 अरब डॉलर, यानी 27 लाख करोड़ रुपए खर्च किए।
- रक्षा खर्च के अलावा, एक अंतरमहाद्वीपीय राजनीतिक गठबंधन चलाने के लिए NATO सालाना लगभग 3 अरब डॉलर, यानी करीब 22,500 करोड़ रुपए खर्च करता है।
- NATO के 30 सदस्यों देशों का दुनिया की GDP में करीब 50% योगदान है।