देश में जब बेरोजगारी चरम पर है और पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बड़़ा मुद्दा बनी हुई है। ऐसे में हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को मामूली राहत माने जा सकने वाले फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणावासियों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसद आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाने का हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट का आदेश खारिज कर दिया। हरियाणा सरकार को नियोक्ताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश भी दिया गया है। एल नागेश्वर राव और पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा‚ हमारा मामले के गुण–दोष से निपटने का इरादा नहीं है और हम हाईकोर्ट से शीघ्र एवं चार सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का अनुरोध करते हैं। हाईकोर्ट के आदेश को इसलिए खारिज किया गया है‚ क्योंकि उसने विधेयक पर रोक लगाने के पर्याप्त कारण नहीं दिए हैं। हरियाणा सरकार की ओर से पेश सालिसीटर जनरल ने पीठ को सूचित किया कि आंध्र प्रदेश‚ झारखंड़‚ महाराष्ट्र और हरियाणा में इस प्रकार के कानून पारित किए गए हैं। यह आदेश 30‚000 से कम वेतन पाने वाले लोगों के लिए है अधिक वेतन वाली नौकरियों के लिए नहीं है। हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार रोजगार अधिनियम‚ 2020 का उद्देश्य लोगों के दूसरे राज्यों में बसने को विनियमित करना है। मेहता ने कई आदेशों का जिक्र किया‚ जिनमें कहा गया था कि कानून जब तक प्रथमदृष्ट्या अवैध नहीं हो‚ इस पर रोक नहीं लगाई जाए। पीठ का कहना था कि हमें केवल रोजगार को लेकर चिंता है‚ क्योंकि हमारे इस देश में चार करोड़़ से अधिक प्रवासी श्रमिक हैं। इस कानून के आर्थिक क्षेत्र में दूरगामी परिणाम होंगे और मुद्दा यह है कि क्या सरकार अधिवास के आधार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू कर सकती हैॽ इससे तो प्रवासी श्रमिकों के रोजगार ही खतरे में पड़़ जाएंगे। हाईकोर्ट इस बात से प्रथमदृष्ट्या संतुष्ट था कि यह कानून असंवैधानिक है और इसी कारण इस पर रोक लगाई गई। हरियाणा में फिलहाल 48‚000 से अधिक कंपनियां पंजीकृत हैं और कानून लागू होने की तारीख से राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति को नियुक्त नहीं कर पाने के कारण उन्हें नुकसान होगा। अब खट्टर सरकार पर है कि वह इस राहत का फायदा उठाकर कितनी भर्तियां कर पाती है क्योंकि यहां 2024 में चुनाव होने हैं और बेरोजगारी का यहां भी बड़़ा मुद्दा बनना तय है।
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मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के एक बयान पर बवाल मच गया है. बीजेपी ने उन्हें चारों तरफ से...