तारापुर और कुशेश्वरस्थान दोनों विधानसभा सीटों पर JDU की जीत के बाद विश्लेषण शुरू हो गया है। अधिकतर जानकारों की राय है कि महागठबंधन में फूट का फायदा JDU को मिला है। कांग्रेस और RJD एक साथ मिलकर चुनाव लड़ती तो महागठबंधन की जीत हो सकती थी। भास्कर ने जब आंकड़ों का विश्लेषण किया तो इन बातों में ज्यादा दम नहीं दिखा। दोनों के आंकड़ों को जोड़ा जाए तो भी जीत आसान नहीं थी।
बता दें, उपचुनाव में दोनों जगह उम्मीदवार उतारने के बावजूद RJD के बड़े नेताओं ने कभी नहीं कहा कि भविष्य में RJD कांग्रेस से गठबंधन के बिना चुनाव लड़ेगी, लेकिन गुस्साई कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने उपचुनाव से पहले कहा था कि आगे भी कांग्रेस बिहार में अकेला चलेगी। अब आंकड़ों का ऐसे समझिए…
महागठबंधन एकजुट होकर भी लड़ता तो हार जाता
तारापुर में कांग्रेस और राजद को आए वोट को जोड़ें तो यह 78,715 होता है। यानी JDU को मिले कुछ वोट से 251 वोट कम। कुशेश्वरस्थान में कांग्रेस और RJD को आए वोट को जोड़े तो यह 52,786 होता है। यानी JDU को मिले वोट से 7,096 कम।
ये आंकड़े बताते हैं कि महागठबंधन एकजुट होकर लड़ता तो भी जीत पूरी तरह पक्की नहीं हो पाती। हां, यह जरूर है कि तारापुर में खेल बिगड़ सकता था। महागठबंधन में फूट के बाद RJD और कांग्रेस नेताओं के बीच जैसे बयान आए उससे वोटर को कंफ्यूजन भी हुआ और इसका नुकसान भी दोनों पार्टियों को हुआ।
कांग्रेस को मिले सिर्फ 3.06% वोट
निर्वाचन आयोग की ओर से जारी आंकड़ों पर गौर करके भी महागठबंधन की टूट के असर को समझा जा सकता है। विधानसभा उपचुनाव में RJD उम्मीदवारों को 40.7 फीसदी वोट हासिल हुए। यह JDU के 46.2 फीसदी से काफी कम हैं। दोनों दलों के बीच लगभग 5.50 फीसदी वोट प्रतिशत का अंतर रहा है। उपचुनाव में कांग्रेस महागठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव मैदान में उतरी थी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को 3.06 फीसदी वोट प्राप्त हुए। अगर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के उम्मीदवारों को मिले वोट एक साथ भी कर दिए जाए तो JDU उम्मीदवारों को मिले मतों से कम होगा। दोनों अगर एकजुट होकर चुनाव लड़ती तो भी यह आंकड़ा 44 फीसदी वोट के ऊपर नहीं जाता।