पिछले महीने जम्मू–कश्मीर में आतंकवादियों ने १२ नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया जिनमें १० गैर–मुस्लिम हैं। ये हत्याएं हिंदू और सिख अल्पसंख्यक समुदायों को लक्षित करके किया गया‚ जिनमें कुछ स्थानीय और कुछेक प्रवासी मजदूर थे। आतंकवादियों ने विशेषकर प्रवासी मजदूरों को अपना निशाना बनाया जो छोटे–मोटे धंधे करते थे। इन हत्याओं के पीछे आतंकवादियों का उद्देश्य बहुत साफहै। इसी तरह बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के दुर्गापूजा पंड़ालों और मंदिरों पर हमले किए गए। अब वहां पर हिंदुओं के घरों को जलाया जा रहा है। कश्मीर घाटी और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने के संदर्भ भले अलग–अलग हो सकते हैं‚ हमलावर भी अलग–अलग हैं लेकिन इन हमलों की प्रवृत्ति और प्रकृति एक जैसी है। दोनों स्थानों पर हमलावर जेहादी विचारधारा से प्रेरित हैं। सरकार और समाज को इस प्रवृत्ति को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसा लगता है कि इन जेहादी समूहों की मंशा कश्मीर घाटी और बांग्लादेश को हिंदू अल्पसंख्यकों से मुक्त करना है। इन दोनों जगहों पर पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का उद्देश्य धर्म के नाम पर हिंसा करना और घृणा फैलाना है तथा वहां सक्रिय जेहादी समूहों को समर्थन देना है। अफगानिस्तान पर तालिबान आतंकवादियों के कब्जे ने जेहादी समूहों में नई ऊर्जा और जोश पैदा कर दिया है। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही थी कि अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों के कब्जे के बाद जम्मू–कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद का नया दौर शुरू हो सकता है। हाल की घटनाओं से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद की वापसी होने लगी है। जम्मू–कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद ३७० हटाए जाने के बाद वहां अमन–चैन की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी‚ उस पर सवालिया निशान लगने लगा है। जम्मू–कश्मीर और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जिस तरह निशाना बनाया जा रहा है‚ उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पिछले कुछ बरसों से आतंकवाद मजहबी उन्माद और धार्मिक संकीर्णता से निपटने के उपायों पर विचार करती रही है। कश्मीर घाटी और बांग्लादेश की घटनाओं के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को एक स्वर में आवाज उठानी चाहिए।
मोदी सरकार ने तैनात किए अनुभवी विशेषज्ञ
जम्मू-कश्मीर प्रशासन के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि निर्दोष नागरिकों की हत्या कश्मीर में अपनी संपत्तियों पर उन्हें बसाने की सरकार की योजना के लिए एक बड़ा झटका है. अब वे अपने शिविरों में रहने के लिए वापस जम्मू जा रहे हैं. सरकारी सूत्रों ने यह भी कहा कि आईबी, रॉ और एनआईए के अनुभवी अधिकारियों की एक विशेष टीम, जो पहले कश्मीर में काम कर चुके हैं, को आगे की आतंकी कोशिशों को रोकने और नाकाम करने के लिए काम पर लगाया गया है. ये अधिकारी पथराव में शामिल लोगों के पुराने मामलों और इतिहास को खंगाल कर आतंकियों का पता लगाने की कोशिश भी कर रहे हैं.