जाति आधारित जनगणना को लेकर जिस तरह की बातें सामने आ रहीं हैं, उससे यह लग रहा है कि बिहार अब अपने बूते इस दिशा में आगे बढ़ने की तैयारी में है। यह संभव है कि कर्नाटक की तर्ज पर बिहार सरकार भी अपने स्तर पर जाति आधारित जनगणना कराने का निर्णय ले। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा न्यायालय में हलफनामा देकर जाति आधारित जनगणना से इनकार की बात पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कह दिया है कि वे इसे कतई सही नहीं मानते। आगे इस बारे में निर्णय को ले बिहार में राजनीतिक दलों के साथ फिर बैठक कर फैसला करेंगे। बिहार की स्थिति यह है कि 10 राजनीतिक दलों में नौ इसके समर्थन में हैं। केवल भारतीय जनता पार्टी को जाति आधारित जनगणना से इनकार है।
बिहार को केंद्र सरकार से थी बड़ी उम्मीद
बिहार से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की थी, तब उन्होंने एक स्वर में कहा था कि प्रधानमंत्री से इस संबंध में बातचीत काफी सकारात्मक रही। उम्मीद थी कि केंद्र जाति आधारित जनगणना पर सहमत हो जाएगा। पर हाल ही में जब केंद्र सरकार की ओर से न्यायालय में हलफनामा देकर यह कह दिया गया कि वह जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है, तब बात नए सिरे से आगे बढ़ गयी है।
अब अपने बूते जाति आधारित जनगणना
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा था कि केंद्र अगर तैयार नहीं होती है तो राज्य सरकार को अपने बूते जाति आधारित जनगणना करानी चाहिए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लगातार यह कहते रहे हैं कि केंद्र के इनकार के बाद ही इस बारे में आगे कुछ सोचा जा सकता है। अब केंद्र का इनकार भी साफ तरीके से सामने आ गया है। इसलिए मुख्यमंत्री ने सर्वदलीय बैठक कर आगे के निर्णय लेने की बात कह दी है।
अलग राजनीतिक दृश्य आएगा सामने
जाति आधारित जनगणना पर बिहार में जनता दल यूनाइटेड (JDU), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस (Congress), वाम दल (Left Parties), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) व विकासशील इनसान पार्टी (VIP) के एक स्वर की वजह से बिहार में राजनीतिक रूप से अलग परिदृश्य नजर आएगा। सभी एक तरफ और बीजेपी एक तरफ। देश स्तर पर भी जाति आधारित जनगणना के बहाने एक नया गठजोड़ दिख सकता है। देश के कई राज्यों में जाति आधारित जनगणना के पक्ष में राजनीतिक दल आगे आ रहे हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार से उठी यह मांग अब देशव्यापी हो गयी है।
बताया कैसे हो सकती है जनगणना
मुुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह भी समझा दिया है कि जाति आधारित जनगणना किस तरह से सहज है। उन्होंने कहा है कि पूरे देश में यह है कि एक जाति की कई उपजातियां होती हैं। हाउसहोल्ड सर्वे में अगर आप किसी की जाति पूछते हैं तो उसके पड़ोस वाला यह पुष्टि कर देगा कि उसके बगलगीर की जाति क्या है?
आर्थिक रूप से है बहुत बड़ी कवायद
जाति आधारित जनगणना आर्थिक रूप से भी बड़ी कवायद है। कर्नाटक मे 2015 के अप्रैल-मई में 1.3 करोड़ घरों में सर्वे हुआ था। इसे सोशल एंड एजुकेशनल सर्वे का नाम दिया गया था। इस काम में 1.6 लाख कर्मियों को लगाया गया था। राज्य सरकार ने इसपर 169 करोड़ रुपए खर्च किए थे। वैसे अभी तक इसकी रिपोर्ट नहीं आयी है।