पटना हाईकोर्ट ने बिहार में राज्यपाल कोटे से मनोनीत 12 विधान पार्षदों की चिंता बढ़ा दी है. इन 12 विधान पार्षदों की नियुक्ति के संबंध में पिछले दिनों हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. याचिकाकर्ता ने याचिका में विधान पार्षदों के मनोयन को संविधान के प्रावधानों के तहत साहित्य, कलाकार, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और सहकारिता आंदोलन से नहीं होने के आधार पर चुनौती दी है. इन 12 विधान पार्षदों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कीरीबी मंत्री अशोक चौधरी और जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी शामिल हैं.
बीते मंगलवार को पटना हाईकोर्ट ने इस संबंध में सुनवाई की है. मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की. इस मामले पर अब अगली सुनवाई 13 सितंबर को होगी, और उसी दिन इस पर फैसला भी आएगा. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मनोनीत किए गए 12 राजनीतिज्ञ विधान पार्षदों को हाईकोर्ट समाजसेवी मानेगी या नहीं?
12 विधान पार्षदों की सदस्यता खतरे में
याचिकाकर्ता का आरोप है कि भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत साहित्य, कलाकार, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए विशिष्ट लोगों का मनोनयन हो सकता है. जबकि, 12 विधान पार्षद तो जो मनोनीत हुए हैं, उन पर यह प्रावधान लागू नहीं होते हैं. याचिकाकर्ता खुद भी वकील हैं. उन्होंने कहा कि एक सामाजिक कार्यकर्ता को काम का अनुभव, व्यवहारिक ज्ञान और विशिष्ट होना चाहिए, लेकिन मनोनयन में इन सब बातों की अनदेखी की गयी है.
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता की यह दलील
याचिकाकर्ता ने अदालत को कहा है कि मनोनीत किए गए सदस्यों में कोई पार्टी का अधिकारी है तो कोई कहीं का अध्यक्ष. जिन लोगों को मनोनीत किया गया है वो न तो साहित्य से जुड़े हैं, न ही वैज्ञानिक हैं, और न कलाकार हैं. यह संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन है. इस तरह का फैसला संविधान के सभी मापदंडों को अनदेखा करते हुए लिया गया है.
इन 12 लोगों की निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर
बता दें कि बिहार की एनडीए सरकार ने पिछले दिनों राज्यपाल कोटे से विधान पार्षद के तौर पर जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, जेडीयू नेता अशोक चौधरी, जनक राम, डॉ. राम वचन राय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, संजय सिंह, देवेश कुमार, प्रमोद कुमार, संजय कुमार सिंह, ललन कुमार सर्राफ, घनश्याम ठाकुर और निवेदिता सिंह का मनोनयन किया था. इसमें कई लोग या तो बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रह चुके हैं या फिर वो बीजेपी या जेडीयू से जुड़े हुए हैं.
पिछ्ली सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के महाधिवक्ता से पूछा था कि क्या मनोनीत किए गए विधान पार्षद राज्य के मंत्री पद पर भी हैं? हाईकोर्ट के आने वाले फैसले पर जेडीयू पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और बिहार सरकार के दो कद्दावर मंत्री अशोक चौधरी और जनक राम की निगाहें विशेष तौर पर लगी हुई हैं.