कल शपथ ग्रहण से कुछ घंटे पहले ही देश के स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और सूचना एवं प्राद्योगिकी मंत्रियों ने इस्तीफ़े दे दिए. मोदी सरकार के कुल 12 मंत्रियों को पद से हटाया गया है. ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’ का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार में 36 नए मंत्री शामिल किए गए हैं. इन इस्तीफ़ो के पीछे राजनीतिक विश्लेषक दो बड़े कारण मानते हैं- एक तो व्यावहारिक राजनीतिक मजबूरियाँ और दूसरा महामारी के बाद जनता को ज़मीनी काम दिखाने की ज़रूरत.
प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल के मायने देखे तो यही मिलता है की आपने क्या नारा दिया, क्या सिद्धांत बनाए या फिर आपकी नीयत क्या थी, ये मायने नहीं रखता है, अंत में नतीजे ही देखे जाते हैं. जनता वोट इसी बात पर देगी कि आपने प्रदर्शन कैसा किया है. सरकार ने ये प्राथमिकता ज़ाहिर की है कि ज़मीनी स्तर पर काम दिखना चाहिए. और मंत्रिमंडल विस्तार का मक़सद भी यही है.
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने जून में सभी मंत्रालयों की समीक्षा की थी. सभी के कामकाज़ का 360 डिग्री रिव्यू किया गया था. जानकार बताते हैं कि इस दौरान पीएम मोदी ने तय किया कि किस-किस मंत्री को हटाना है. सबसे पहले जानते हैं उन पाँच बड़े मंत्रियों के बारे में, जिन्हें पद से हटाया गया है.
इस्तीफा देने वाले कदावर मंत्रीयों में हर्षवर्धन , रमेश पोखरियाल निशंक ,रविशंकर प्रसाद ,प्रकाश जावड़ेकर ,संतोष गंगवार जैसे नाम है . आखिर इन्हें इस्तीफे क्यों देने पड़े …………
1. हर्षवर्धन
कोविड महामारी के दौरान भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे हर्षवर्धन को इस्तीफ़ा देना पड़ा है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं की प्रधानमंत्री उनके काम से ख़ुश नहीं थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून में सभी मंत्रालयों के कामकाज़ की समीक्षा की थी.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “स्वास्थ्य मंत्रालय को पूरी तरह बदल दिया गया है. सरकार दिखाना चाहती है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को जो भी दिक़्क़तें आई हैं, या नुक़सान हुआ है, अब नहीं होने दिया जाएगा.”
स्वास्थ्य मंत्री को हटाने से सरकार पर ये सवाल भी उठेगा कि उसने महामारी के दौरान ठीक से प्रबंधन नहीं किया और लोगों की जान बचाने में नाकाम रही. विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी को विपक्ष की आलोचना की बहुत परवाह नहीं है.
स्वास्थ्य मंत्री को हटाने का मतलब है कि सरकार ने विपक्ष को आलोचना करने का मौक़ा दे दिया है. उनको हटाते ही ये सवाल उठेगा कि सरकार कोरोना महामारी के प्रबंधन में विफल रही है. ये बात प्रधानमंत्री भी जानते हैं, लेकिन उनके काम करने का तरीक़ा यही है, वो विपक्ष की आलोचना की बहुत परवाह नहीं करते हैं.” “कोविड प्रबंधन का एक दौर ये था कि लोगों से ताली-थाली बजाने के लिए कहा गया, फिर एक दौर वो आया कि मोदी जी टीवी चैनल पर आकर रोने लगे और अब एक दौर ये है जब ये संकेत दिया जा रहा है कि अब रोना-धोना बंद, अब काम करने का समय है.”
2. रमेश पोखरियाल निशंक
नए कैबिनेट विस्तार के दौरान शिक्षा मंत्री को भी पद से हटा दिया गया है. उत्तराखंड से आने वाले रमेश पोखरियाल निशंक केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहाड़ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. भारत की नई शिक्षा नीति उन्हीं के कार्यकाल में लागू की गई है.
विश्लेषक मानते हैं कि नई शिक्षा नीति लागू करने में निशंक की विफलता ही उन्हें हटाए जाने का कारण है. “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई शिक्षा नीति पर निशंक के काम से नाराज़ थे. शिक्षा में इतना बड़ा बदलाव सरकार ने किया लेकिन इस पर चर्चा ही नहीं हुई. ये ख़बर ही नहीं बन पाई कि नई शिक्षा नीति क्या है, इससे क्या बदलेगा. निशंक जन-जन तक शिक्षा नीति को पहुँचाने में नाकाम रहे, शायद इस बात को लेकर भी प्रधानमंत्री नाराज़ थे. कोविड महामारी के दौरान केंद्रीय बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएँ भी रद्द करनी पड़ीं. नई शिक्षा नीति इन्हीं मंत्री ने बनाई थी. सीबीएसई की 12वीं और 10वीं की परीक्षा को लेकर जो अफ़रा-तफ़री मची, उससे लोग बहुत परेशान हुए. एक महीना रह गया था और छात्रों को पता नहीं था कि इम्तेहान होगा या नहीं होगा. सरकार क्या करना चाह रही है, लोगों को ये समझ नहीं आ रहा था.
3. रविशंकर प्रसाद
ट्विटर से दो-दो हाथ कर रहे रविशंकर प्रसाद को भी त्यागपत्र देना पड़ा है. अदिति फडनीस मानती हैं कि रविशंकर प्रसाद को पद से हटाने की वजह ये विवाद भी हो सकता है.
विश्लेषक मानते है की रविशंकर प्रसाद के इस्तीफ़े को ट्विटर विवाद से जोड़कर भी देखा जा रहा है. रविशंकर प्रसाद ने जिस तरह से दुनिया की बड़ी तकनीक कंपनियों कौ चुनौती दी, उससे भारत एक अजीब स्थिति में फँस गया. जहाँ अमेरिका को भी कहना पड़ा कि भारत ग़लत कर रहा है. मुझे लगता है कि भारत का आशय किसी वैश्विक विवाद में फँसना नहीं था. इससे भी भारत को बहुत दिक़्क़त हुई है.”
भारत लोगों की निजी जानकारियों को लेकर डेटा प्रोटेक्शन लॉ भी ला रहा है. इस पर संयुक्त संसदीय समिति रिपोर्ट तैयार कर रही है. लेकिन रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट के पेश होने से पहले ही ट्वीट कर दिया था कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं. इससे सरकार की बहुत फ़जीहत हुई थी. भारत सरकार नया डेटा प्रोटेक्शन लॉ तैयार कर रही है, जिसे संयुक्त संसदीय समिति देख रही है, इसकी रिपोर्ट अभी आनी है, लेकिन रविशंकर प्रसाद को ये मालूम ही नहीं था कि रिपोर्ट अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है और उन्होंने ट्वीट कर दिया कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं. डेटा पॉलिसी पर बहुत गंभीरता से काम किया जा रहा है. जिस गंभीरता से भारत का संविधान लिखा गया था, उसी गंभीरता से इस पर काम चल रहा है.
4. प्रकाश जावड़ेकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है. इसके दो कारण समझ में आते हैं, एक तो पर्यावरण मंत्रालय में बहुत कुछ काम नहीं हुआ है और दूसरा प्रकाश जावड़ेकर का पार्टी के भीतर समर्थन भी कम हुआ है.
कुछ विश्लेषक कहते है की पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट देखेंगे तो लगेगा कि सरकार और पर्यवारण मंत्रालय ने 2020 के बाद से कोई भी नया इनिशिएटिव नहीं लिया है. ऐसा लगता है कि जैसे पर्यावरण मंत्रालय ने 2020 के बाद कोई काम नहीं किया है. जो भी काम नज़र आता है, वो 2019 तक का ही आता है.”
भारत के सामने इस समय कई पर्यावरण चुनौतियाँ हैं, दिसंबर में कैनबरा में कोप-26 की बैठक होनी हैं, उसमें पर्यावरण को लेकर कई बड़े निर्णय लिए जाने हैं. अदिति कहती हैं कि बावजूद इसके पर्यावरण मंत्रालय ने इस दिशा में कोई ख़ास काम नहीं किया है.
प्रधानमंत्री ने नारा दिया है कि भारत अगले साल तक सिंगल यूज प्लास्टिक फ्री हो जाएगा, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट या काम को देखकर ये नहीं लग रहा है कोई इतनी बड़ी चीज़ होने जा रही है. शायद इससे भी प्रधानमंत्री नाराज़ हों.
5. संतोष गंगवार
कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की खुली आलोचना करने वाले संतोष गंगवार को भी पद से हटा दिया गया है. भारत में जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तो बड़ी तादाद में प्रवासियों ने बेहद मुश्किल हालात में शहरों से गाँवों की तरफ पलायन किया था. प्रवासी संकट की वजह से केंद्र सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था और वैश्विक स्तर पर भारत की ब्रैंड इमेज को भी धक्का लगा था. संतोष गंगवार को हटाने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि वो प्रवासी संकट से सही से नहीं निबटे. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आपस में बात करके एक नीति बनानी थी और इसमें श्रम मंत्री की बहुत बड़ी भूमिका नहीं थी. लेकिन फिर भी उन्हें पद से हटा दिया गया है. गंगवार को पद से हटाने की एक और वजह योगी आदित्याथ के नाम लिखी उनकी चिट्ठी हो सकती है.
ऐसा प्रतीत होता है कि संतोष गंगवार को हटाने की असल वजह उनकी योगी आदित्यनाथ को लिखी चिट्ठी है, जिसमें उन्होंने कोविड की दूसरी लहर के दौरान सरकार के कामकाज की खुले दिल से आलोचना की थी. संतोष गंगवार ने अहम सवाल उठाए थे, लेकिन शायद सरकार ने ये संकेत दिया है कि योगी आदित्यनाथ की आलोचना स्वीकार नहीं की जाएगी. बीजेपी सरकार इस बात को लेकर सजग है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ के कामकाज की आलोचना का असर आगामी चुनावों पर हो सकता है.”