मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, यह बजट संतुलित है और सभी वर्गों के हित को ध्यान में रखकर बनाया गया है। वर्ष 2005 से अब तक राज्य की अर्थव्यवस्था में विकास दर डबल डिजिट में रही है। उसे यह बजट और गति देगा।
डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 2 लाख 18 हजार 570 करोड़ रुपये का बजट पेश किया.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई सरकार सोमवार को अपना पहला बजट पेश करने जा रही है. आम आदमी और विपक्ष की उम्मीदें आसमान की तरह ऊंची होगी और सीमित संसाधनो के बूते ही सरकार सबको साधने की कोशिश करेगी. कोरोना काल से उपजी निराशा से बाहर निकल आया है, यह आसान कतई था, ऐसे में वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद को आने वाले पाँच वर्षों का रोड मैप प्रदेश के सामने रखना होगा. बिहार के लिए कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें विकास की सबसे ज़्यादा संभावना जताई गई है. अगर बिहार के कृषि उत्पादों के लिए सही बाज़ार उपलब्ध करा दिये जाएं तो इसे रोजगार का सृजन तो होगा ही साथ ही साथ, किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी.
एग्रो-इंडस्ट्री को लेकर पहले भी काफी चर्चा हुई है, लेकिन जब तक इसे बड़े पैमाने पर धरती पर नहीं उतारा जाता, स्थितियां नहीं बदलेंगी. बिहार जैसे राज्य में जहां अभी भी 70 फीसद के करीब लोग कृषि से अपनी जीविका चला रहे हैं, ऐसे में खेतों से ही खुशहाली का रास्ता निकलेगा. इन दिनों आप जब पटना के बाज़ार में जाएंगे तो आपको यह खबर सुनने को मिल जाएगी कि किस तरह से स्थानीय किसान अपनी सब्जियाँ, दिल्ली भेज रहे हैं. मसलन आप जब पटना के बोरिंग रोड पर टमाटर की बेहतरीन किस्में देखेंगे तो आपके जेहन में यह बात ज़रूर आएगी कि काश इन किसानों को इनके उत्पाद सही मूल्य भी मिले.
जो ब्रोकोली आपको पटना के बाज़ार में 25-30 रुपए किलो मिल रहे हैं. इसे अगर दिल्ली और मुंबई का बाज़ार मिल जाय तो सोने पर सुहागा, जहां लोगों को ब्रोकोली शायद 50-100 रुपए/किलो भी नसीब नहीं होगा.
नहीं मिला बाजार
बहुत से विक्रेता अब धीरे धीरे समझ रहे हैं कि यह हरी गोभी नहीं, ब्रोकोली है. इनके लिए अभी बाज़ार नहीं मिल सका है. न ही यहां बड़े स्तर पर कोल्ड स्टोरेज चैन की ही व्यवस्था हो सकी है. अभी शुरुआत हुई है, अगर इन उत्पादों को एग्रो-प्रेसेसिंग की सुविधा भी मिल जाए तो इससे किसानों की आय तो बढ़ेगी ही साथ साथ, एंड- कस्टमर को भी सस्ते उत्पाद मिलेंगे. बिहार में खेती किसानी का उत्पादन अभी भी राष्ट्रीय स्तर से कम है, लेकिन उम्मीद की लौ तो यहीं से निकल रही है. कृषि के क्षेत्र में जिस स्तर का निवेश पंजाब, हरियाणा और दक्षिण के राज्यों में देखने को मिल रहा है, उस स्तर तक पहुंचने में बिहार को वक़्त लगेगा, लेकिन सच्चाई यही है कि अभी भी कृषि बिहार के सकल घरेलु उत्पाद में 18.7 फीसद की भागीदारी कर रहा है. खुशी की बात है कि बिहार में कृषि आधारित कारखानों में 11.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है.
एथनोल की संभावना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गन्ना मिलों को फिर से शुरू करने के लिए केंद्र से बात की है और एथनोल उत्पादन की संभवना पर भी ज़ोर दिया है, अगर यह वाकई शुरू हो पाया तो गन्ना किसानों के चेहरे पर फिर से खुशी देखने को मिलेगी. यह सभी जानते हैं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती है. ऐसे में सरकारी और निजी क्षेत्रों को कृषि आधारित उद्योगों में भारी निवेश भी करना होगा. क्योंकि कोरोना काल में हमारे शहरों ने मजदूरों और किसानों को नकार दिया तो सहारा तो उन्हें अपने छोटे से खेत के टुकड़े में ही मिला.