सीएम नीतीश कुमार ने विधानसभा के सेंट्रल हॉल में शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने सीएम को सम्मानित किया। शताब्दी समारोह में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव और राबड़ी देवी नहीं आए हैं। उद्घाटन भाषण में विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि आज का दिन बिहार के लिए ऐतिहासिक है। 100 साल पहले इस भवन में लोकतंत्र की पहली बैठक हुई थी। यह भवन कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है। पूरे साल विधायक अपने क्षेत्र में काम करेंगे। साथ ही 5 तरह के अपराध को दूर करने की दिशा में भी काम करेंगे। वे नशा मुक्ति, अपराध मुक्ति, बाल श्रम मुक्ति, बाल विवाह मुक्ति, दहेज मुक्ति के क्षेत्र में काम कर बिहार को इन समस्याओं से दूर करेंगे। विधायिका का समाज निर्माण में अहम भूमिका है। पूरे साल तक बिहार की गौरव गाथा को लेकर एक विशेष अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने बताया कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला का भी इस मौके पर चिट्ठी आई है। उन्होंने बिहार को बधाई दी है।
उप मुख्यमंत्री रेणु देवी की फिसली जुबान
शताब्दी समारोह में भाषण के दौरान उप मुख्यमंत्री रेणु देवी की जुबान फिसल गई। उन्होंने स्पीकर विजय सिन्हा की जगह उनका नाम विजय प्रसाद श्रीवास्तव कहा। साथ ही नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की गैरमौजूदगी के बावजूद उनका नाम लिया। मंच पर सीएम के अलावा विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा, डिप्टी सीएम तारकेश्वर प्रसाद, विजय चौधरी मौजूद हैं। विधानसभा भवन का आज 100 साल पूरा हुआ है। उधर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नहीं आने पर MLC रामचन्द्र पूर्वे को मंच पर बुलाया गया। सीएम नीतीश कुमार की सलाह के बाद उन्हें मंच पर लाया गया।
7 फरवरी 1921 को हुई थी पहली बैठक
एएम मिलवुड ने एम्फीथियेटर की तर्ज पर विधानसभा को बनाया था। आज से ठीक सौ साल 7 फरवरी 1921 को बिहार विधानसभा का पहला सत्र विधिवत अधिसूचित भवन में हुआ। वह तब बिहार-उड़ीसा विधान परिषद कहलाता था। पहली बैठक को गवर्नर लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा ने संबोधित किया और सदन के अध्यक्ष थे वॉल्टर मॉड। तब सदन के निर्वाचित सदस्यों को चुनने वाले मुट्ठीभर लोग थे। यह संख्या मात्र 2404 थी। इन्हें ही वोट देने का अधिकार था। बाद में यह बढ़कर 3,25,293 हुई। इसके अलावा 1463 यूरोपियन, 370 लैंड होल्डर्स और 1548 विशेष निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को ही वोट देने का अधिकार था। आज 7.43 करोड़ से अधिक मतदाता विधानसभा के सदस्यों को चुनते हैं। बीते 100 वर्षों में लोकतांत्रिक संस्थाओं के सतत विकास की यह स्वर्णिम कड़ी है।