सरकार की लापरवाही से एक बार फिर 10 नवजात की मौत की खबर झकझोरने वाली है। महाराष्ट्र के भंड़ारा जिला अस्पताल में सरकारी लापरवाही से आग लगने के चलते १० नवजात काल के गाल में समा गए। आश्चर्य की बात है कि जिस वक्त यह हादसा हुआ‚ उस समय वहां कोई स्टाफ मौजूद नहीं था क्योंकि २ बजे तड़़के जब सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट का गेट खोला गया तो वहां धुंआ था। जबकि बच्चों की इस यूनिट में रात में एक ड़ॉक्टर और 4–5 नर्सों की डियूटी रहती है। यानी साफतौर पर यह घोर लापरवाही का मामला है। दूसरी महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आग से बचाव के उपाय अस्पताल में नदारद थे। उपकरणों की जांच कब की गई और यह किसकी जिम्मेदारी थी‚ इस बारे में भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल सका है। वार्ड़ में स्मोक डि़टेक्टर तक नहीं थे। अलार्म भी नहीं थे। अगर बचाव के ये सारे उपकरण होते तो कई बच्चों को बचाया जा सकता था। महाराष्ट्र में पिछले साल भी सितम्बर में पश्चिमी क्षेत्र के कोल्हापुर स्थित छत्रपति प्रमिला राजे शासकीय अस्पताल में आग लगी थी।
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद जिले के मोदीनगर श्मशान घाट में गलियारे की छत गिरने से २४ लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना भी सरकारी लापरवाही की वजह से हुई थी। निर्माण के महज १५ दिनों में गलियारे की छत रेत की माफिक भरभराकर गिर पड़़ी। दरअसल‚ ऐसे मामलों में तुरत–फुरत निलंबन का खेल खेला जाता है और मामले की जांच रिपोर्ट की सिफारिश को अमल में लाया ही नहीं जाता है। ऐसा कई बार पहले भी देखा गया है जब आग लगने की वजह से झुलसकर लोग कम मरे हैं बल्कि दम घुटने से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। दिल्ली के उपहार सिनेमाहाल अग्निकांड़ में ५९ लोगों की जान चली गई थी‚ जबकि १०३ जख्मी हुए थे। इस दर्दनाक हादसे में कई मासूमों की भी मौत हो गई थी। यह घटना इसलिए ज्यादा वीभत्स थी क्योंकि बाहर निकलने के ज्यादातर रास्ते बंद थे। भंड़ारा जिला अस्पताल में हुई घटना में उन परिवारों को तभी न्याय मिलेगा जब दोषियों की पहचान कर उन्हें कड़़ी–से–कड़़ी सजा दी जाएगी। न्यायिक जांच के आदेश तो दिए ही गए हैं‚ मगर कायदे से एक अलग जांच अग्निशमन विभाग के शीर्ष अधिकारी से भी कराई जाए तो बेहतर होगा। साथ ही अस्पताल प्रबंधन से जुर्माना वसूला जाए और उसे पीडि़त परिवारों में बांटा जाए। राज्य सरकार को अपना इकबाल बनाए रखने के लिए हरसंभव उपाय करने चाहिए।
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