विपक्ष के दावे अपनी जगह और एनड़ीए का कुनबा बढाने की मुहिम अपनी जगह। विधानसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की एनड़ीए में एंट्री तय हो गई है। वहीं‚ जदयू के ‘कुशवाहा समीकरण’ की मजबूती के लिए विधान परिषद् की मनोनयन वाली आधी सीटों से संतोष करने वाली भाजपा को इस एंट्री से एक नुकसान हो सकता है।
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के हाथों ७ में से ६ विधायक खोने वाले जदयू ने पहले तो भाजपा को बिहार में ५०:५० की हिस्सेदारी के लिए बैकफुट पर आने को मजबूर किया और अब विधान परिषद् की मनोनयन वाली १२ सीटों में से १–१ सीट वह रालोसपा–हम के लिए रिजर्व कराने पर तुली है। मतलब‚ १२ में से २ घटा तो १० सीटें बचीं भाजपा–जदयू के आधे–आधे बंटवारे के लिए। १० में से भाजपा को ५ मिलेगा। दूसरी तरफ‚ जदयू को ५ के अलावा एक तो हम के हिस्से आई सीट का फायदा रहेगा और दूसरा रालोसपा को दी गई सीट भी कुशवाहा के नाम पर जदयू के खाते में ही मानी जाएगी। कहने को जदयू ने भाजपा के सामने प्रस्ताव यह रखा है कि भाजपा अपने खाते की ६ सीटों में से १ जीतन राम मांझी की पार्टी को दे दें क्योंकि उनकी पार्टी जदयू ने अपने खाते की ६ सीटों में से १ सीट रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा को देने की तैयारी कर ली है। विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या में पीछे रह गए जदयू को पिछडी जमात में अपनी राजनीतिक ताकत बढानी है। इसके अलावा बडी बात यह भी है कि कुशवाहा जाति के उसके मंत्रियों की हार के बाद मेवालाल कुशवाहा को शिक्षा मंत्री बनाया भी गया तो पद ग्रहण के साथ ही इस्तीफा लेना पडा गया। इससे पहले विधानसभा चुनाव में जदयू को २०१५ के चुनाव के मुकाबले २०२० में २८ सीटों का नुकसान उठाना पडा था। जदयू इस नुकसान के लिए लोजपा की रणनीति को भी एक प्रमुख कारण मानती है। इसी सिलसिले में जदयू नए सिरे से वोट के लिहाज से मजबूत हो रहे कुशवाहा व मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाना चाहता है। इसके लिए उपेंद्र कुशवाहा एक मजबूत स्तंभ हो सकते हैं।