जनसुराज के नायक प्रशांत किशोर भले राजनीतिक सलाहकार की भूमिका में सफल रहे हों, लेकिन जिस मापदंड के साथ राजनीति की साफ सुधरी छवि जनता के बीच ले जाना चाहते थे, वहां वे असफल होते दिखने लगे। एक-एक कर उनके राजनीतिक आदर्श उनके ही हाथों टूटते रहे। बिहार की राजनीति में आज वे जहां खड़े हैं उनकी पहचान आम क्षेत्रीय पार्टी जैसी ही हो गई। आखिर क्यों प्रशांत किशोर अपने द्वारा ही निर्धारित राजनीतिक मापदंड से विमुख होते चले गए?
जाति और धर्म विहीन राजनीत का दावा
जनसुराज के नायक प्रशांत किशोर एक आदर्श के साथ राजनीति में आए। तब राज्य को उन्होंने संदेश दिया था कि वे बिहार को सामाजिक न्याय के नाम पर जातीय राजनीति से मुक्त कराएंगे। धर्म की राजनीति को भी अपनी राजनीति का आधार नहीं बनाएंगे। और यह तब तक चलता रहा जब तक वे पार्टी बनाने के पहले जनता से संवाद कर रहे थे। लेकिन जब जनसुराज पार्टी चुनावी राजनीति का हिस्सा बनने की शुरुआत कर रही थी, तो एक एक कर PK ने अपने आदर्शों का खुद ही गला घोंट डाला।
जातीय ताना बाना बुनने लगे पीके
जात-पात से ऊपर उठने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर तब भटके, जब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वे करा कर जातीय दावेदारी का एक नया प्लेटफार्म खोल डाला। इस सर्वे में अति पिछड़ा की जनसंख्या को 36 .01 प्रतिशत बताया गया। प्रशांत किशोर इतनी बड़ी आबादी को केवल जाति विहीन राजनीति के नाम पर छोड़ नहीं सकते थे। AAP की तरह सत्ता के समीकरण का ध्यान रख यह घोषणा कर डाली कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जनसुराज 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। अतिपिछड़ा समाज से 75 लोगों को चुनावी जंग में उतारा जाएगा।
धर्म की राह भी उतरे पीके
धर्म की राजनीति की तरफ भी प्रशांत किशोर गए तो जातीय सर्वे ही आधार बना। जातीय सर्वे में मुस्लिम की आबादी 17.7 प्रतिशत थी। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर आक्रामक रूप अख्तियार करने वाले पी के ने राजद के MY समीकरण को साधा और घोषणा कर डाली कि मुस्लिम से भी 75 टिकट देंगे। यानी 243 में 150 सीट केवल मुस्लिम और अतिपिछड़ा में बांट देंगे।
अकेले दम पर सत्ता परिवर्तन का दावा भी गलत निकला
जनसुराज के नायक प्रशांत किशोर की नीति यह भी थी कि जनसुराज बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगा, और अपने अकेले दम लड़ेगा। PK ने कहा कि उनका गठबंधन बिहार के लोगों के साथ है, जो बदलाव चाहते हैं और राज्य को विकास के रास्ते पर वापस लाना चाहते हैं। जन सुराज पार्टी इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले ही लड़ेगी। लेकिन आप सबकी आवाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी से हाथ मिला कर प्रशांत किशोर अपनी ही नीति के विरुद्ध खड़े हो गए।