भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से बहुत गहरे और विविध रहे हैं. इन रिश्तों की नींव सदियों पहले रखी गई थी, जब दोनों देशों के बीच व्यापार, संस्कृति, और धर्म का आदान-प्रदान हुआ करता था. हालांकि, अफगानिस्तान की राजनीति में तालिबान का उभार और फिर उनके सत्ता में लौटने के बाद इन रिश्तों में काफी बदलाव आया है.
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान के साथ भारत के व्यापार में भी बड़ा बदलाव आया है. साल 2023-24 में आयात रिकॉर्ड 642.29 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया और निर्यात 16 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है. इससे व्यापार घाटा भी बढ़ा है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों के इतिहास के बारे में विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद इन रिश्तों में क्या बदलाव आया.
भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों की शुरुआत
भारत और अफगानिस्तान के बीच हमेशा से अच्छे और मजबूत रिश्ते रहे हैं, जिनमें तकनीकी, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सहयोग शामिल रहा है. इन दोनों देशों के बीच रिश्तों की शुरुआत बहुत पुरानी है, जो सिंधु घाटी सभ्यता तक जाती है, जब इन क्षेत्रों के लोग आपस में जुड़े थे. 1980 के दशक में, जब अफगानिस्तान में सोवियत समर्थित सरकार थी, भारत ही एकमात्र देश था जिसने अफगानिस्तान को समर्थन दिया और उस सरकार को मान्यता दी.
लेकिन 1990 के दशक में अफगान गृहयुद्ध और तालिबान की सरकार बनने के बाद दोनों देशों के रिश्ते प्रभावित हुए, तालिबान के शासन के दौरान भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे. फिर, 9/11 के हमलों और अमेरिकी युद्ध के बाद, भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते फिर से मजबूत हो गए. भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ा.
तालिबान का उभार और भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों पर प्रभाव
अफगानिस्तान में तालिबान का पहला शासन 1996 से 2001 तक था. उस समय, भारत ने तालिबान के शासन को मान्यता नहीं दी और अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के खिलाफ आवाज उठाई. भारत का मानना था कि तालिबान का शासन आतंकवाद और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला था. भारत ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र और सशक्त नागरिक समाज की हिमायत की.
2001 में अफगानिस्तान में अमेरिकी हमले के बाद तालिबान का शासन खत्म हुआ और वहां एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ, जिसके बाद भारत ने अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्तों को फिर से स्थापित किया. भारत ने अफगानिस्तान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और विशेष रूप से तालिबान के शासन के बाद अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए काम किया.
तालिबान का दूसरा उभार (2021)
2021 में तालिबान का अफगानिस्तान में फिर से सत्ता में आना भारतीय कूटनीति के लिए एक बड़ा झटका था. जब तालिबान ने अगस्त 2021 में काबुल पर कब्जा किया, तो यह भारत के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति बन गई. भारत ने तालिबान को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया और अपनी नीति में संयम बनाए रखा. हालांकि, भारत ने अफगानिस्तान में अपने नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी और अफगानिस्तान में अपने दूतावास को बंद कर दिया.
तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा भारतीय कूटनीति के लिए कई सवाल खड़े कर गया. पहले भारत तालिबान के खिलाफ था, लेकिन अब उसे अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर अफगानिस्तान के साथ संबंधों को फिर से बनाने का तरीका तलाशना था. तालिबान के आगमन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति में बदलाव करने की जरूरत पड़ी.
भारत का दृष्टिकोण और तालिबान के साथ रिश्तों में बदलाव
भारत ने तालिबान के साथ अपने रिश्तों को लेकर एक संवेदनशील और सूझ-बूझ वाली नीति अपनाई है. भारत ने सीधे तौर पर तालिबान से बातचीत शुरू नहीं की, लेकिन कई देशों के माध्यम से अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति की प्रक्रिया को बढ़ावा देने की कोशिश की. भारत का मानना है कि अफगानिस्तान का भविष्य अफगान लोगों द्वारा तय किया जाना चाहिए, और वह तालिबान को अफगानिस्तान के भीतर एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करने के लिए प्रेरित कर रहा है.
भारत ने यह भी संकेत दिया कि वह अफगानिस्तान में मानवाधिकारों और महिलाओं के अधिकारों के मामले में तालिबान से जवाबदेही की उम्मीद करता है. इसके अलावा, भारत ने यह स्पष्ट किया कि वह अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा, लेकिन वह तालिबान के शासन को पूरी तरह से स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, जब तक कि यह मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय नियमों का सम्मान नहीं करता.
तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान में भारतीय निवेश और परियोजनाओं पर असर
भारत ने अफगानिस्तान में कई बड़ी परियोजनाओं में निवेश किया था, जैसे सड़क निर्माण, अस्पतालों की स्थापना, स्कूलों का निर्माण, और जल आपूर्ति परियोजनाएं. तालिबान के सत्ता में आने के बाद इन परियोजनाओं पर असर पड़ा. अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ने के कारण कई भारतीय कंपनियों और निर्माण कंपनियों ने अपने कामों को रोक दिया.
भारत ने कुछ परियोजनाओं को फिर से शुरू किया, लेकिन सुरक्षा स्थिति के कारण ज्यादातर परियोजनाएं प्रभावित हुईं. भारत अब अपनी परियोजनाओं के लिए तालिबान से सीधे संपर्क नहीं कर रहा है, बल्कि अन्य देशों और संगठनों के जरिये काम करने की कोशिश कर रहा है.
भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते में भविष्य की दिशा
तालिबान के आने के बाद, भारत को अपनी विदेश नीति में कुछ बदलाव करने की आवश्यकता पड़ी. भारत की प्राथमिकता अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता की बहाली और अफगान नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करना बनी हुई है. भारत अब अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर अपनी स्थिति को मजबूती से रखने का प्रयास कर रहा है.
भारत ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के बावजूद भारतीय हितों की रक्षा की जाए. इसके लिए भारत ने अफगानिस्तान में अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करने की योजना बनाई है.
भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते ऐतिहासिक और विविध रहे हैं. तालिबान के सत्ता में आने से इन रिश्तों में बदलाव आया है, लेकिन भारत अपनी नीति में संयम बनाए रखते हुए अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है. भविष्य में, भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते इस बात पर निर्भर करेंगे कि अफगानिस्तान में तालिबान किस प्रकार के शासन को लागू करता है और वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ किस तरह से जुड़ता है.
अफगानिस्तान भारत के लिए जरूरी क्यों है?
अफगानिस्तान भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और इसका मुख्य कारण इसकी रणनीतिक स्थिति है. यह देश एशिया के चौराहे पर स्थित है, जो इसे खास बनाता है. अफगानिस्तान दक्षिण एशिया को मध्य एशिया से जोड़ता है और मध्य एशिया को पश्चिम एशिया से जोड़ता है, इसलिए यह भारत के लिए एक अहम कड़ी है.
भारत का कई देशों, जैसे ईरान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान, के साथ व्यापार अफगानिस्तान के रास्ते होता है. यह अफगानिस्तान को भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण बनाता है. साथ ही अफगानिस्तान भारत और मध्य एशिया के बीच स्थित है, जिससे व्यापार को और भी सरल बनाया जा सकता है.
अफगानिस्तान का रणनीतिक महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह तेल और गैस से समृद्ध मध्य-पूर्व और मध्य एशिया के बीच स्थित है. इसका मतलब है कि अफगानिस्तान पर स्थित पाइपलाइन मार्गों से ऊर्जा संसाधनों का परिवहन किया जा सकता है. इसके अलावा अफगानिस्तान के पास कीमती धातुएं और खनिज भी हैं, जो भारत के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकते हैं.