लालू यादव अब कम बोलते हैं. फिर भी उनके शब्दों की हनक और आवाज की खनक बरकरार है. लालू यादव किडनी ट्रांसप्लांट के बाद से ही कम बोलते रहे हैं. आन कैमरा महीने-डेढ़ महीने में लालू यादव के सिर्फ तीन बयान आए. पहला बयान नए साल के पहले ही दिन आया. तब लालू यादव ने बिहार के सीएम और एनडीए के नेता नीतीश कुमार के लिए आरजेडी का दरवाजा खुला रखने की बात कह कर सियासी माहौल गरमा दिया था. फिर एक एक बयान तेजस्वी यादव को 2025 में सीएम बनाने के लिए वोटों की अपील के रूप में आया. उनका तीसरा बयान गुरुवार को आया. लालू के कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों के बयान के बाद बिहार की सियासत में कयासों-अटकलों का बजार गर्म हो जाता है. लालू यादव संसदीय राजनीति से बाहर हैं. उम्र में वे 75 पार हैं. कई और व्याधियों ने भी उन्हें घेर लिया है. आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तो हैं, लेकिन तमाम तरह के फैसलों का अधिकार अब अपने बेटे तेजस्वी को सौंप दिया है. इसके बावजूद लालू की राजनीतिक हनक बरकरार है.
डेढ़ महीने में लालू के तीन बयान
इस साल बीते डेढ़ महीने में लालू का तीसरा बयान आया तो इसके मायने निकाले जा रहे हैं. जब उन्होंने नीतीश के लिए आरजेडी का दरवाजा खोले रखने की बात कही थी, तब भी उसके मायने निकाले गए. तब यह चर्चा छिड़ी कि नीतीश कुमार फिर पलटी मार सकते हैं. कई दिनों बाद नीतीश को सफाई देनी पड़ी कि अब वे पुरानी गलती नहीं दोहराएंगे. लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव को इस बार सीएम बनाने के लिए किस कदर बेचैन हैं, यह इससे ही पता चलता है कि वे उनके लिए वोट करने की सार्वजनिक अपील अभी से करने लगे हैं. नालंदा में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ऐसी अपील लोगों से की थी. अब उन्होंने कहा है कि हम लोग बिहार में भाजपा को आने नहीं देंगे. हम लोगों के रहते भाजपा बिहार में कैसे सरकार बना लेगी. यह दिल्ली नहीं, बिहार है.
लालू ने भाजपा को रोकने के लिए ‘हम लोग’ का प्रयोग कर सस्पेंस बढ़ा दिया है. सियासी गलियारों में इसके मायने तलाशे जा रहे हैं. इसके दो अर्थ निकाले जा रहे हैं. पहला यह कि महागठबंधन बिहार में भाजपा के हाथ सत्ता की बागडोर जाने से रोकने के लिए एकजुट है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के खिलाफ कांग्रेस की रणनीति से यह आशंका बढ़ गई है कि बिहार में भी कांग्रेस इसे दोहरा सकती है. अब तक इसके तीन संकेत मिले हैं. पहला कि राहुल गांधी ने महागठबंधन सरकार के जाति सर्वेक्षण के उल्लेखनीय और ऐतिहासिक काम को फर्जी बता दिया है. दूसरा, कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 70 से कम सीटों पर न मानने की जिद ठान ली है. तीसरा, हरियाणा के बाद दिल्ली में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को किनारे कर इशारा कर दिया है कि उसे एकला चलने में तनिक भी संकोच नहीं है. संभव है कि लालू ने इस आशंका को खारिज करने के लिए ही ‘हम लोग’ का प्रयोग किया हो.
नीतीश पर भी लालू की बात फिट
यह सर्वविदित है कि लालू यादव और नीतीश कुमार समाजवादी कुल-गोत्र के हैं. तीन साल पहले नीतीश कुमार भी भाजपा के कट्टर विरोधी बन गए थे. वे घोषित तौर पर कहते थे कि मर जाएंगे, लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाएंगे. भाजपा के विरोध के लिए ही नीतीश ने विपक्षी दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ की नीव रखी थी. इसके बावजूद वे बाद में भाजपा के साथ आ गए. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरह एकनाथ शिंदे की जगह भाजपा ने अपना सीएम बना दिया, उससे नीतीश कुमार पर भी खतरे की तलवार लटक रही है. इस आशंका को अमित शाह के उस बयान ने हवा दे दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार में अगले सीएम का फैसला संसदीय बोर्ड करेगा. उसके बाद भाजपा के प्रदेश स्तर के नेता भी गारंटी के साथ नहीं कहते कि अगली बार एनडीए का सीएम फेस कौन होगा. माना जा रहा है कि भाजपा को रोकने के लिए ही लालू ने नीतीश को अपने बयान से उकसाने की कोशिश की है. यानी भाजपा का सीएम न बन पाए, इसके लिए वे नीतीश कुमार से हाथ मिलाने का संकेत ‘हम लोग’ कह कर दे रहे हैं.
बिहार में सत्ता के लिए बेचैनी
बिहार की सत्ता के लिए आरजेडी में बेचैनी है तो एनडीए भी सत्ता हाथ से न जाने की तैयारी में है. विधानसभा चुनाव में एनडीए इस बार रिकार्ड तोड़ने के लक्ष्य साथ चल रहा है. महागठबंधन भी सरकार बनाने की उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिल रही सफलता से एनडीए का उत्साहित होना स्वाभाविक है. इधर महागठबंधन का मानना है कि दूसरे राज्यों से बिहार का मिजाज अलग है. इसलिए एनडीए की दाल बिहार में नहीं गलने वाली. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने यही कहा है. वे कहते हैं कि हम लोगों के रहते भाजपा का सपना बिहार में साकार नहीं होगा. तेजस्वी यादव उनसे एक कदम आगे बढ़ कर जिस तरह की लोकलुभावन घोषणाएं कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि महागठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिलने का पक्का भरोसा है.
तेजस्वी के पास मुद्दों की भरमार
विपक्ष के पास मुद्दों की कभी कमी नहीं होती. उसे जरूरत होती है कुशल रणनीति से मुद्दों को भुनाने की. 1990 से लगातार 15 साल तक सत्ता में रहे लालू-राबड़ी को उखाड़ फेंकने में नीतीश कुमार को अगर कामयाबी मिली तो उसके दो-तीन मुद्दे ही प्रमुख थे. अच्छी रणनीति बना कर नीतीश ने उन्हें भुना लिया. कामयाबी के लिए यही काम आरजेडी को करना होगा. तेजस्वी यादव ने नीतीश शासन में अपराध और भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर एनडीए के सामने मुसीबत खड़ी करने का प्रयास तो शुरू किया है. वे बार-बार कह रहे हैं कि बिहार में कोई भी काम बिना ‘डीके टैक्स’ चुकाए नहीं होता. नीतीश की सेहत और उम्र को आधार बना कर तेजस्वी उन्हें लाचार सीएम बताते रहे हैं.