जनवरी 2025 में विदेशी निवेशकों ने भारत के शेयर मार्केट से 87,000 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है. उससे पिछले तीन महीनों में 1.77 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की थी. कुछ महीने पहले तक भारत की इकॉनमी पर जबरदस्त तरीके से बुलिश नजरिया रखने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) को ऐसा क्या हुआ कि अब वे लगातार बिकवाल बने हुए हैं और पलटकर भारत का रुख तक नहीं करना चाहते? इसे समझने के लिए सीएनबीसी-आवाज के मैनेजिंग डायरेक्टर ने एडलवाइज़ के प्रेसिडेंट अजय शर्मा के साथ गुफ्तगू की. इस बातचीत में अजय शर्मा ने FIIs का पेन-पॉइन्ट बताया कि वे आखिर क्यों नहीं आना चाह रहे हैं. यह भी बताया कि वे कब और कैसे लौटकर आएंगे.
अजय शर्मा ने बताया कि FIIs की प्राथमिकता हाई रिटर्न होती है. वे बाजार में स्थिरता, लिक्विडिटी और टैक्स से जुड़ी नीतियों को देखकर निवेश करने या नहीं करने का फैसला लेते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों में भारत ने FIIs के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिससे वे S&P 500 जैसे विकसित बाजारों की ओर रुख कर रहे हैं.
रुपये की कमजोरी से रिटर्न पर भारी असर
पिछले 20 वर्षों में निफ्टी ने औसतन 14.5% का सालाना रिटर्न दिया है, जो पहली नजर में काफी आकर्षक लगता है. लेकिन जब इसे डॉलर में देखा जाए, तो यह उतना प्रभावी नहीं दिखता, क्योंकि 20 साल पहले 1 डॉलर 40 रुपये का था, मगर अब यह 87 रुपये का हो चुका है.
इसका मतलब यह हुआ कि रुपये की कीमत आधी से भी कम हो गई है. चूंकि FIIs डॉलर में निवेश करते हैं और डॉलर में ही निकालते हैं, तो इस गिरावट से उनका रिटर्न प्रभावित होता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी निवेशक ने 100 डॉलर भारत में लगाए थे और 20 साल बाद यह 400 डॉलर हुआ, तो रुपये की कमजोरी के कारण इसकी असली वैल्यू बहुत कम हो जाएगी. इतनी कम कि 200 डॉलर भी नहीं रहेगी. यही कारण है कि FIIs को भारत के बजाय डॉलर-स्टेबल बाजारों में ज्यादा फायदा दिखता है.
अजय शर्मा ने विस्तार से बताया कि FIIs का एक अहम सवाल यह भी है कि अगर उन्हें भारत और अमेरिका के शेयर बाजारों से समान रिटर्न मिल रहा है, तो वे भारत में निवेश क्यों करें? निफ्टी और S&P 500 ने 20 वर्षों में लगभग एकसमान रिटर्न दिया है. अगर दोनों बाजारों से बराबर रिटर्न मिल रहा है, तो FIIs को भारत में निवेश करने का कोई अतिरिक्त फायदा नहीं दिखता. खासकर तब, जब अमेरिका का बाजार अधिक लिक्विड है और वहां खरीद-बिक्री आसानी से हो सकती है. भारत में बड़ी मात्रा में शेयर खरीदने-बेचने में मुश्किलें आती हैं.
FIIs को भारत में एक और समस्या टैक्स को लेकर आती है. भारत में निवेश करने पर विदेशी निवेशकों को 12.5 फीसदी का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ता है. अमेरिका में निवेश करने पर ऐसा कोई टैक्स नहीं लगता. अगर FIIs को भारत में निवेश करने पर 12.5% टैक्स देना पड़ेगा, तो उन्हें अमेरिका में 10% रिटर्न के मुकाबले भारत में 12-13% रिटर्न कमाना होगा, ताकि टैक्स के बाद बराबर मुनाफा मिले. लेकिन अगर रुपये की कमजोरी भी जोड़ लें, तो उन्हें भारत में कम से कम 16% से ज्यादा का रिटर्न चाहिए, जो हमेशा संभव नहीं होता.
लिक्विडिटी की समस्या
S&P 500 जैसे विकसित बाजारों में FIIs जितनी चाहें, उतनी बड़ी रकम डाल सकते हैं और बिना किसी दिक्कत के निकाल सकते हैं. लेकिन भारत में ऐसा नहीं है. अगर वे निफ्टी 50 में बहुत बड़े पैमाने पर निवेश करना चाहें, तो उन्हें लिक्विडिटी की समस्या का सामना करना पड़ता है. इसलिए, FIIs ऐसे बाजार को चुनते हैं जहां वे बिना किसी झंझट के निवेश और निकासी कर सकें.
क्या FIIs भारत से हमेशा के लिए दूर हो गए हैं?
अजय शर्मा कहते हैं- नहीं. FIIs हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं. जब भी भारतीय बाजार में अच्छे शेयर सस्ते होते हैं, वे वापस आते हैं. FIIs कोई भावनात्मक निवेशक नहीं होते, वे सिर्फ मुनाफे के आधार पर फैसले लेते हैं. अगर भारतीय बाजार में अच्छी संभावनाएं दिखती हैं, तो वे फिर से निवेश करेंगे.
अभी FIIs की प्राथमिकता उन बाजारों में जाना है जहां उन्हें ज्यादा स्थिरता, बेहतर लिक्विडिटी और टैक्स में राहत मिलती है. लेकिन अगर भारत में शेयरों की वैल्यूएशन सही होती है तो रुपये की गिरावट थमती है और टैक्स की बंदिशों से कुछ राहत मिलती है, तो विदेशी निवेशक दोबारा भारत का रुख करेंगे.