भारत में गरीबी एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. हर राजनीतिक पार्टी चुनाव से पहले गरीबी हटाने की बात करती है, लेकिन अब तक ऐसा हो नहीं सका है. तमाम राजनीतिक पार्टियां और सरकारें गरीबी को लेकर समय-समय पर तरह-तरह के दावे भी करती हैं.
नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि बीते नौ सालों में करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए. इंडिया ह्यूमन डवलपमेंट सर्वे (IHDS) में बताया गया है कि 2004-05 से 2011-12 के बीच गरीबी में काफी कमी आई. हेडकाउंट रेशियो 38.6 से घटकर 21.2 पर आ गया. 2011-12 से 2022-24 के बीच इसमें गिरावट जारी रही और रेशियो 21.2 से 8.5 पर आ गया.
वहीं संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत दुनिया के उन पांच देशों में है जहां सबसे ज्यादा लोग घोर गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं. भारत में कुल 23.4 करोड़ लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं. भारत के अलावा अन्य चार देश पाकिस्तान (9.3 करोड़), इथियोपिया (8.6 करोड़), नाइजीरिया (7.4 करोड़) और कांगो (6.6 करोड़) में सबसे ज्यादा गरीबी है. दुनिया में घोर गरीबी में जीवन यापन करने वाले 110 करोड़ लोगों में करीब आधे (48.1%) इन पांच देशों में रहते हैं.
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में क्या है दावा
इन तमाम दावों के बीच अब वर्ल्ड बैंक ने भारत और दुनियाभर में गरीबी पर एक नई रिपोर्ट जारी की है. ‘पॉवर्टी, प्रोस्पेरिटी एंड प्लेनेट’ नाम की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में लगभग 12.9 करोड़ लोग बहुत ही गरीबी में जी रहे हैं. मतलब उनकी रोज की कमाई 2.15 डॉलर यानी 182 रुपये से भी कम है. लेकिन अच्छी बात ये है कि 1990 में ऐसे लोगों की संख्या 43.1 करोड़ थी, यानी काफी कमी आई है.
लेकिन एक बुरी खबर भी है. अगर हम गरीबी का पैमाना 6.85 डॉलर यानी लगभग 582 रुपये माल लें तो भारत में 1990 के मुकाबले 2024 में ज्यादा लोग गरीब हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि हमारी जनसंख्या बहुत बढ़ गई है. पहले वर्ल्ड बैंक ने कहा था कि 2021 में भारत में घोर गरीब लोगों की संख्या 3.8 करोड़ कम होकर 16.74 करोड़ हो गई थी, जबकि उससे पहले के दो सालों में यह संख्या बढ़ी थी.
लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि इस रिपोर्ट में अभी हाल ही में जारी हुए 2022-23 के भारतीय घरों के खर्च के आंकड़े शामिल नहीं हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन नए आंकड़ों का गरीबी पर क्या असर होगा, ये अभी साफ नहीं है.
दुनिया में सबसे ज्यादा गरीबी कहां
आज भी दुनिया में लगभग 70 करोड़ लोग (यानी पूरी दुनिया की आबादी का 8.5%) बहुत ज्यादा गरीबी में जी रहे हैं. मतलब, उनके पास हर दिन के 2.15 डॉलर (लगभग 182 रुपये) से भी कम हैं. कोरोना के बाद तो हालात और भी खराब हो गए. गरीब देशों में तो गरीबी और भी ज्यादा बढ़ गई है.
सबसे ज्यादा गरीबी अफ्रीका में है. दुनिया की सिर्फ 16% आबादी अफ्रीका में रहती है, लेकिन 67% गरीब लोग वहीं के हैं. दुनिया के दो-तिहाई गरीब लोग अफ्रीका में ही रहते हैं. अगर हम उन देशों को भी जोड़ लें जहां युद्ध या अशांति है तो यह संख्या तीन-चौथाई हो जाती है.
हालात नहीं सुधरे तो सदी लग जाएगी गरीबी मिटाने में
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो 2030 तक भी दुनिया में 622 मिलियन लोग (यानी 7.3%) बहुत ज्यादा गरीबी में जी रहे होंगे. 2024 से 2030 के बीच सिर्फ 69 मिलियन लोग ही गरीबी से बाहर निकल पाएंगे, जबकि 2013 से 2019 के बीच 150 मिलियन लोग गरीबी से बाहर आए थे. 3.4 बिलियन लोग (लगभग 40%) ऐसे होंगे जिनके पास रोज के 6.85 डॉलर (लगभग 582 रुपये) से भी कम होंगे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर हम तेजी से तरक्की नहीं करेंगे और सबको इसका फायदा नहीं मिलेगा, तो गरीबी खत्म करने में हमें कई दशक लग जाएंगे. 6.85 डॉलर वाली गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में तो एक सदी से ज्यादा का समय लग सकता है. इसलिए गरीबी को मिटाने के लिए ज्यादा और अच्छी नौकरियां पैदा करनी होंगी. शिक्षा में निवेश करना होगा, बुनियादी सुविधाएं देनी होंगी ताकि गरीब लोग भी तरक्की में अपना योगदान दे सकें और मुश्किल समय का सामना कर सकें.
25 साल में गरीबी घटी, लेकिन 2020 के बाद हालात फिर कैसे बिगड़े
पिछले 25 सालों तक दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं ने तेजी से गरीबी कम की. 1990 के बाद चीन और भारत ने 1 बिलियन से ज्यादा लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला. ऐसा लग रहा था कि दुनिया से गरीबी पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
मगर 2020 के बाद कोरोना महामारी के समय गरीबी कम होने की रफ्तार अचानक धीमी पड़ गई. गरीब देशों को अमीर देशों के मुकाबले महामारी से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा. दो साल पहले वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कई दशकों में पहली बार गरीबी बढ़ी है. 2030 तक गरीबी को 3 फीसदी तक कम करने का जो लक्ष्य रखा गया था, वो अब पूरा होता नहीं दिख रहा. इस रफ्तार से तो यह लक्ष्य पूरा होने में तीन दशक लग जाएंगे.
गरीबी कम होने की रफ्तार क्यों धीमी हुई?
पिछले कुछ सालों में गरीबी कम होने की रफ्तार धीमी होने की एक बड़ी वजह है दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में गरीबी का बंटवारा. 1990 में पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अफ्रीका से भी ज्यादा गरीबी थी और दक्षिण एशिया में भी अफ्रीका जितनी ही गरीबी थी. लेकिन धीरे-धीरे यह तस्वीर बदल गई.
अर्थव्यवस्था में तेज तरक्की की वजह से पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में गरीबी बहुत कम हुई, जिससे पूरी दुनिया में भी गरीबी का आंकड़ा कम हुआ. 2013 तक चीन की तेज आर्थिक तरक्की की वजह से दुनिया भर में गरीबी कम हो रही थी. चीन ने पिछले तीन दशकों में 800 मिलियन (80 करोड़) से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है. पूर्वी एशिया के बाकी देशों ने भी काफी तरक्की की है और 1990 से 2024 के बीच 210 मिलियन (21 करोड़) लोग गरीबी से बाहर आए हैं.
भारत गरीबी कम करने में आगे, लेकिन चुनौती अभी बाकी
वर्ल्ड बैंक का कहना है कि अगले दस सालों में दुनियाभर में बहुत गरीब लोगों की संख्या में भारत का हिस्सा काफी कम हो जाएगा. ये अच्छी बात है. लेकिन, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि ये अनुमान अगले दस सालों में प्रति व्यक्ति जीडीपी में बढ़ोतरी और पिछले कुछ सालों की विकास दर को देखते हुए लगाए गए हैं. अगर 2030 में भारत से घोर गरीबी पूरी तरह खत्म भी हो जाती है, तब भी दुनिया में बहुत गरीब लोगों की संख्या 7.31% से घटकर सिर्फ 6.72% रह जाएगी.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि हाल ही में खर्च के आंकड़े इकट्ठा करने के तरीके में जो बदलाव हुए हैं, उनका भी ध्यान से अध्ययन करना होगा. 1999-2000 से ही भारत खर्च के आंकड़े ज्यादा सही तरीके से इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग ‘रिकॉल पीरियड’ का इस्तेमाल कर रहा है.
2011-12 के सर्वे में भारत ने तीन तरह के रिकॉल पीरियड इस्तेमाल किए थे: यूनिफॉर्म रिकॉल पीरियड (URP), मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (MRP) और मॉडिफाइड मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (MMRP). 2011-12 में आधिकारिक गरीबी दर की गणना के लिए MRP का इस्तेमाल किया गया था और कहा गया था कि आगे MMRP का इस्तेमाल किया जाएगा. 2022-23 के सर्वे में भारत ने सिर्फ MMRP का ही इस्तेमाल किया. मतलब साफ है कि गरीबी कम करने की राह में अभी कई चुनौतियां हैं.