मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही एक्शन मोड में आ गई थी. चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी विभाग से 100 दिनों के एक्शन प्लान की सूची तैयार करने को कहा था.
अब सितंबर में तीसरे कार्यकाल के 100 दिन की समय सीमा पूरी होने वाली है. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि अगस्त आखिर तक हर केंद्रीय सरकारी विभाग के मंत्री अपने कर्मचारियों के साथ टाउन हॉल बैठक करेंगे ताकि 100 दिन में हुए कामों की जानकार दी जा सके. लेकिन, अब तक ऐसी कोई भी बैठक नहीं हुई है.
ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर केंद्र सरकार के वो एंजेडा क्या है और अब तक कहां पहुंची पाई है इनकी गाड़ी.
सबसे पहले समझिए आखिर क्या है योजना
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल, जिसे ‘मोदी 3.0’ कहा जा रहा है, के तहत ‘100 दिन का प्लान’ एक महत्वपूर्ण पहल है. इस योजना का उद्देश्य सरकार के नए कार्यकाल के पहले 100 दिनों में तेजी से काम करना और कुछ प्रमुख लक्ष्यों को प्राप्त करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर मंत्रालय को 100 दिनों की कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया था, जिसमें शुरुआती तीन महीनों के भीतर हासिल किए जाने वाले लक्ष्यों की सूची शामिल हो.
क्यों लाई गई ये योजना
100 दिन के प्लान का मुख्य उद्देश्य यही था कि सरकार के कार्यकाल की शुरुआत में ही एक मजबूत नींव रखी जाए, जिससे अलग-अलग क्षेत्रों में तेजी से विकास हो सके. इसमें प्रशासनिक सुधार, सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ध्यान दिया गया.
यह योजना इसलिए बनाई गई है ताकि कार्यकाल संभालने के बाद से ही सरकारी कामकाज में तेजी लाई जा सके और विचार-विमर्श के चरण में समय बर्बाद किए बिना नीतियों को क्रियान्वित किया जा सके. इसका उद्देश्य सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं को तेजी से लागू करना और जनता तक लाभ पहुंचाना है.
इस प्लान के अंतर्गत, हर मंत्रालय को अपने-अपने क्षेत्र में प्राथमिकताओं का निर्धारण करना था और उन पर तेजी से काम करना था. इन योजनाओं में विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक सुधार, और कृषि विकास जैसे क्षेत्रों में सुधार और विकास को प्रमुखता दी गई है.
100 दिनों का एक्शन प्लान योजना के तहत, प्रत्येक मंत्रालय को अपनी प्राथमिकताओं का निर्धारण करके उन पर तेजी से काम करना था. इस योजना के प्रमुख बिंदुओं पर विस्तार से जानते हैं
1. सिविल सेवा सुधार: 100 दिन एजेंडा में सरकारी कामकाज में सुधार लाने को शामिल किया गया था. इस योजना के तहत, सिविल सेवकों को नई चुनौतियों के लिए तैयार करने के उद्देश्य से विशेष ट्रेनिंग कोर्स शुरू किए गए हैं. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और आधुनिक तकनीकियों का उपयोग करने की ट्रेनिंग शामिल है.
2. आर्थिक सुधार: अर्थव्यवस्था में तेजी लाना भी इस योजना के लक्ष्यों में शामिल है. दरअसल विभिन्न मंत्रालयों ने आर्थिक विकास को प्राथमिकता देते हुए नीतियों और योजनाओं को लागू करना शुरू किया है, जैसे कि नए निवेश को आकर्षित करना, व्यापार को आसान बनाना और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना.
3. पर्यावरणीय स्थिरता: पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण भी इस योजना के लक्ष्यों की सूची में शामिल है. इसके तहत पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न पहलें की जा रही हैं, जैसे कि वनों की सुरक्षा, प्रदूषण को कम करना और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देना.
4. सामाजिक प्रगति: 100 दिनों के एक्शन प्लान योजना के तहत सामाजिक कल्याण योजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाने का रोडमैप तैयार किया गया था, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाया जा सके.
5. अच्छी शासन व्यवस्था: सरकार ने पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं. जैसे कि ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन सेवाओं का विस्तार और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सुधार.
6. विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन: हर मंत्रालय को अपनी प्रमुख योजनाओं को तेजी से लागू करना था. इसमें शामिल थे-
- स्वास्थ्य क्षेत्र: आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का विस्तार.
- शिक्षा क्षेत्र: शिक्षा के डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा देना.
- कृषि और ग्रामीण विकास: किसानों की आय बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन.
अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों नहीं पूरी हो पाई ये योजना
100 दिन का एक्शन प्लान योजना के बारे में अब तक किसी तरह का कोई अपडेट नहीं जारी किया गया है. जिससे ये कहा जा सकता है कि या तो इन लक्ष्यों को पूरा नहीं किया गया है या फिर रफ्तार काफी धीमी है. ऐसे में इस योजना के पूरे नहीं होने के पीछे 5 प्रमुख कारण के बारे में जानते हैं…
1. चुनाव के नतीजों का असर: इस चुनाव में पिछले दो लोकसभा चुनाव की तुलना में कम वोट मिले, जिसके चलते कुछ योजनाओं और नीतियों को फिर से समीक्षा करने की आवश्यकता पड़ी. इसने योजनाओं के कार्यान्वयन में देरी हुई.
2. नए मंत्रियों का पदभार संभालना: चुनावों के बाद नए मंत्रियों के पदभार संभालने में काफी वक्त लगा. इस दौरान, कई मंत्रालयों ने घोषणा की कि वे अपनी परियोजनाओं पर काम करेंगे, लेकिन वास्तविक प्रगति धीमी रही. नई योजनाओं को समझने और लागू करने में भी समय लगा, जिससे 100 दिन के लक्ष्य प्रभावित हुए.
3. सचिव स्तर पर बड़े बदलाव: सरकार में सचिव स्तर पर बड़े बदलाव हुए, जो स्वतंत्रता दिवस के तुरंत बाद पूरे हुए. इन बदलावों ने सरकारी कार्यों की निरंतरता को बाधित किया और योजनाओं की गति को धीमा कर दिया.
4. मिशन कर्मयोगी और सिविल सेवा सुधार: मिशन कर्मयोगी के तहत सिविल सेवकों की ट्रेनिंग और नए कोर्स शुरू करने में समय लगा. इस प्रक्रिया में आने वाली नई चुनौतियों और जटिलताओं ने योजनाओं के समय पर क्रियान्वयन को कठिन बना दिया.
5. समन्वय की कमी: मंत्रालयों और विभागों के बीच समन्वय की कमी भी एक प्रमुख कारण हो सकता है. जब विभिन्न विभागों को एक साथ काम करना होता है, तो समन्वय की कमी से कार्यों में देरी हो सकती है.
6. बाहरी चुनौतियां: बाहरी कारण जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां, और आर्थिक अनिश्चितता भी 100 दिन के एक्शन प्लान को प्रभावित कर सकते हैं.
नहीं है इसके योजना की कोई जानकारी
पूर्व वित्त सचिव अशोक चावला ने बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में कहा है कि उन्हें अभी तक इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि तय किए गए लक्ष्यों में कितना काम हो चुका है या फिर ये लक्ष्य कब तक पूरे हो जाएंगे. हालांकि उनका कहना है कि 100 दिन का एजेंडा राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर करता है.