हफ्तेभर से प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच रविवार को चंडीगढ़ में चौथे दौर की बातचीत हुई। इस बैठक में केंद्र सरकार ने किसानों के सामने MSP को कुछ फसलों पर रियायत का विचार दिया। सरकार ने दाल, मक्का और कपास की खरीद पर पांच साल के अनुबंध का प्रस्ताव रखासरकार के इस प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया। किसानों अभी भी सभी फसलों पर MSP गारंटी को लेकर अड़े हुए हैं। इसके साथ ही किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने सरकार को किसानों की मांगे मानने के लिए 21 फरवरी तक का अल्टीमेटम दिया है। किसान दिल्ली कूच को लेकर तैयार हैं। ऐसे में अब सरकार के सामने चुनौतियां और बढ़ गई हैं। किसान आंदोलन की अगली दिशा क्या होगी? और सरकार के सामने क्या चुनौतियां हैं? आइए समझते हैं।
कल की बैठक में क्या हुआ?
चंडीगढ़ में किसानों और सरकार के बीच हुई बैठक में सरकार ने कुछ फसलों पर MSP को लेकर सहमति जताई। इसमें मक्का, दालें और कपास की खेती शामिल है। बातचीत में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल सहित तीन केंद्रीय मंत्री सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लेकिन इस बैठक के कोई खास परिणाम निकलते नहीं दिख रहे हैं। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार को सिर्फ दाल या मक्का पर नहीं, बल्कि सभी 23 फसलों पर गारंटी देनी चाहिए। पंजाब के किसानों का कहना है कि उनके लिए इस प्रस्ताव से कोई खास लाभ नहीं है, क्योंकि वहां दाल और मक्का की खेती कम ही होती है। उन्होंने कहा, इस अधूरे प्रस्ताव से पंजाब, हरियाणा के किसानों को कोई फायदा नहीं है।
दाल-मक्का पर हुए समझौते की खास बातें
➤ एनसीसीएफ और नाफेड जैसे सहकारी समितियां दाल और मक्का खरीदने के लिए पांच साल का करार करेंगी। ये भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं।
➤ इन फसलों को MSP पर खरीदा जाएगा। खरीद की कोई सीमा नहीं होगी और इसे ट्रैक करने के लिए एक वेबसाइट बनाई जाएगी।
➤ यह समझौता केवल दाल और मक्का पर है, अन्य 22 फसलों को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।
➤ कुछ किसान संगठन केवल दो फसलों पर समझौते से खुश नहीं हैं और सभी फसलों के लिए MSP की गारंटी की मांग कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि यह समझौता मक्का उत्पादन को बढ़ाने की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अनाज से इथेनॉल बनाने के लिए कच्चा माल तैयार करना है। उन्होंने बताया कि इससे पंजाब के कृषि क्षेत्र को फायदा होगा, भूजल स्तर में सुधार होगा और जमीन बंजर होने से बचेगी। सरकार फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है, इसलिए मक्का के लिए MSP पिछले साल ₹1,760 से बढ़ाकर ₹2,090 प्रति क्विंटल कर दिया गया था। भूजल को लेकर पहले भी चिंताएं जताई गई थीं। पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को मक्का की ओर रुख करने सहित उपाय करने की चेतावनी दी थी। यह चेतावनी दिल्ली क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम करने के संदर्भ में दी गई थी, जो मुख्य रूप से पराली जलाने के कारण होता है।
फिलहाल MSP योजना क्या है?
फिलहाल सरकार रागी, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, जौ, रेपसीड और सरसों सहित 23 फसलों के लिए MSP पर खरीद करती है। सरकार हर साल खरीफ फसलों के लिए जून में एमएसपी घोषित करती है। यह न्यूनतम मूल्य उत्पादन लागत से कम से कम 1.5 गुना अधिक होता है। इसका उद्देश्य किसानों को उचित दाम दिलाना और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना है।
क्या है किसानों की मांगें?
➤ MSP पर कानूनी मान्यता: किसानों की पहली और सबसे जरूरी मांग ये है कि सरकार MSP को लेकर कानून बनाए, ताकि किसानों की फसल का उचित दाम मिल सके।
➤ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना: किसानों की दूसरी मांग स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिशों को लागू करना है। इस रिपोर्ट में MSP कुल लागत मूल्य से कम से कम 50% अधिक रखने की सिफारिश की थी। इसे C2+50 फॉर्मूला कहा जाता है। किसान चाहते हैं कि सरकार इसे लागू करे।
➤ किसानों के लिए पेंशन: किसानों की तीसरी मांग किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन है। किसानों की लंबे समय से मांग है कि उन्हें और खेतिहर मजदूरों को भी बुढ़ापे में पेंशन मिले।
➤ इन मांगो के अलावा किसानों की कुछ और मांगे भी हैं। किसान कर्ज माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं, पिछले विरोध प्रदर्शनों के दौरान दर्ज पुलिस मामलों को वापस लेने, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के लिए न्याय, भूमि अधिग्रहण अधिनियम को बहाल करने और विरोध प्रदर्शनों के दौरान मरने वालों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसान फिलहाल पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बॉर्डर से लगभग 200 किमी दूर दिल्ली से डेरा डाले हुए हैं।
सरकार के सामने क्या है चुनौती?
किसानों का आंदोलन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहा है। सरकार अब तक चार दौर की बातचीत में किसानों को आश्वासन दे चुकी है, लेकिन इसका कोई खास नतीजा नहीं निकला। सरकार के सामने भी कुछ चुनौतियां हैं
➤ अब संसद सत्र बुलाना मु्श्किल: किसानों का आंदोलन बजट सत्र के बाद शुरू हुआ है, जो कि इस सरकार का आखिरी संसद सत्र था। करीब दो हफ्ते में चुनाव आयोग लोकसभा चुनावों का ऐलान कर देगा, ऐसे में अगर सरकार किसानों की बात मान भी लेती है, तो भी वो कानून कैसे बनाएगी, क्योंकि इसके लिए संसद सत्र बुलाना पड़ेगा।
➤ MSP पर कानून बनाना मुश्किल: दूसरा सभी फसलों पर MSP देना सरकार के लिए मुश्किल है। अगर सरकार ऐसा करती है, तो एक अनुमान के अनुसार इस पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। सरकार ने अंतरिम बडट में पूंजीगत निवेश पर 11.11 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है। अगर सभी फसलें MSP पर खरीदी जाएंगी तो कर्मचारियों को वेतन और पेंशन कहां से देगी। इससे वित्तीय संकट पैदा हो सकता है।
लंबा चल सकता है किसानों का आंदोलन
किसानों ने 21 फरवरी तक का अल्टीमेटम सरकार को दिया है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार के पास 21 फरवरी तक का समय है। सरकार को सोचना और समझना चाहिए कि ये दो चीजें (तिलहन और बाजरा) (खरीद के लिए) बहुत महत्वपूर्ण हैं। जैसे उन्होंने दालों, मक्का और कपास का उल्लेख किया, उन्हें इन दोनों फसलों को भी शामिल करना चाहिए। अगर इन दोनों को शामिल नहीं किया गया तो हमें इस बारे में फिर से सोचना होगा…कल हमने फैसला लिया कि अगर 21 फरवरी तक सरकार नहीं मानी तो हरियाणा भी आंदोलन में शामिल होगा। इसके अलावा हाल ही में संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इस आंदोलन को समर्थन देने की बात कही। किसान नेता राकेश टिकैट ने साफ तौर पर कहा था ये आंदोलन अभी लंबा चलेगा।