हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व होता है. दिवाली के बाद मनाए जाने वाले इस त्योहार से श्रीकृष्ण की पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा की जाती है. इस दिन गोबर लीपकर घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की प्रतिमा बनाई जाती है. अधिकतर दिवाली के अगले दिन ही गोवर्धन पूजा की जाती है, परंतु इस साल गोवर्धन पूजा की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति बन रही है. किसी का कहना है कि यह पूजा 13 नवंबर यानी दिवाली के अगले दिन होनी है तो कोई इसे भैया दूज वाले दिन बता रहा है. ऐसे में इस साल 13 नवंबर या फिर 14 नवंबर के दिन गोवर्धन पूजा की जाएगी, जानिए यहां.
गोवर्धन पूजा किस दिन की जाएगी | Govardhan Puja Date 2023
पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर, सोमवार दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 14 नवंबर, मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार इस साल गोवर्धन पूजा 14 नवंबर के दिन की जाएगी. गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurt) शाम 5:25 मिनट से रात 9:36 मिनट के बीच है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इंद्रदेव के घमंड के चलते पूरे गांव को तूफान और बारिश का प्रकोप सहना पड़ रहा था. श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) उठाकार ब्रजवासियों को बचाया था. इसके बाद से ही हर साल गोवर्धन पूजा की जाने लगी.
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा करने के लिए गोबर से गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण की प्रतिमा बनाते हैं. फूलों से गोवर्धन पर्वत सजाया जाता है. पूजा सामग्री में धूप, दीप, बताशे, रोली, अक्षत, खील और अन्नकूट आदि शामिल किए जाते हैं. इसके बाद गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की कथा पढ़ी जाती है और गोबर से तैयार गोवर्धन की सात बार परिक्रमा करते हुए आरती की जाती है और जयकारे लगाए जाते हैं. इस तरह सम्पन्न होती है गोवर्धन पूजा.
गोवर्द्धन पूजा की कथा
प्राचीन काल में दीपावली के दूसरे दिन भारत में और विशेषकर ब्रज मण्डल में इन्द्र की पूजा हुआ करती थी। श्री कृष्ण ने कहा कि कार्तिक में इन्द्र की पूजा का कोई लाभ नहीं इसलिए हमें गऊ के वंश की उन्नति के लिए पर्वत वृक्षों की पूजा करते हुए न केवल उनकी रक्षा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए अपितु पर्वतों और भूमि पर घास-पौधे लगाकर हमें वन महोत्सव भी मनाना चाहिए। इसके सिवा हमें सदैव गोबर को ईश्वर के रूप में पूजा करते हुए उसे कदापि नहीं जलाना चाहिए।
इसके अलावा खेतों में गोबर डालकर उस पर हल चलातें हुए अन्नौषधि उत्पन्न करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे सहित देश की उन्नति होगी। भगवान श्री कृष्ण के ऐसे उपदेश देने के पश्चात् लोगों ने ज्यों ही पर्वत वन और गोबर की पूजा आरम्भ की, त्यों ही इंद्र ने कुपित होकर सात दिन की बरसात की झड़ी लगा दी परन्तु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा कर ब्रज को बचा लिया और इन्द्र को लज्जित होने के पश्चात् उनसे क्षमा याचना करनी पड़ी।