हैरानी हुई कि बात है की कांग्रेस ने गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने का विरोध किया। इसका विरोध करने वाले जयराम रमेश भूल गए कि नरसिम्हा राव की सरकार ने गीता प्रेस को सम्मानित किया था। गांधी जी की 125वीं जयंती के अवसर पर किया था। जयराम रमेश उस समय सरकार से जुड़े हुए थे, तब उनकी चेतना क्यों नहीं जागी? 100 साल से गीता प्रेस ने श्रीमद्भगवत गीता और रामचरितमानस को जन मानस तक पहुंचाया। गीता प्रेस की मैग्जीन ‘कल्याण’ के लिए महात्मा गांधी लेख लिखते थे, इसके रिकॉर्ड हमने आप को दिखाए हैं। ऐसी गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना कांग्रेस के लिए मजाक कैसे हो सकता है? गीता प्रेस, गोरखपुर न तो चंदा मांगती है, न तो विज्ञापन लेती है। जहां हर दिन की शुरुआत प्रार्थना से होती हो, कोई ऐसी संस्था का विरोध कैसे कर सकता है? गीता प्रेस की किताबों में कवर हाथ से चढ़ाए जाते हैं। कवर चढ़ाने वाले चप्पल उतारकर काम करते हैं कोई भी कागज जमीन पर नहीं रखा जाता। जहां इतनी श्रद्धा से काम होता है, अगर उन्हें भी सम्मानित न करें, तो किसको करें? 100 साल से सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार करने वालों को ये सम्मान बहुत पहले मिलना चाहिए था। जिस गीता प्रेस ने कहा कि वो इस सरकार का प्रशस्ति पत्र तो स्वीकार करेंगे लेकिन 1 करोड़ की राशि नहीं लेंगे, उनकी ऐसी आलोचना का अधिकार जयराम रमेश को किसने दिया? अगर जयराम रमेश से अनजाने में गलती हो गई तो उन्हें भूल स्वीकार करनी चाहिए।
अगर ये उनकी मानसिकता है, उनका सोचा समझा विचार है, तो फिर इसे जनता के फैसले पर छोड़ देना चाहिए। मैं तो जयराम रमेश को धन्यवाद दूंगा, अगर वो गीता प्रेस को पुरस्कार देने का विरोध न करते तो इतना विवाद न होता और हमें भी लोगों को गीता प्रेस, गोरखपुर के बारे में उनके योगदान और श्रद्धा के बारे में इतने विस्तार से बताने का अवसर न मिलता।