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इस बार सिर्फ़ धनपतियों, उद्योगपतियों की बारी…

UB India News by UB India News
May 20, 2023
in VISHESH KHABRE, कारोबार
0
इस बार सिर्फ़ धनपतियों, उद्योगपतियों की बारी…

फिर नोटबंदी…! फिर अफ़रातफ़री! नहीं। इस बार कोई अफ़रातफ़री नहीं मचने वाली है। क्योंकि अफ़रातफ़री मचाने वालों, लाइन में लगने वालों के पास अब दो हज़ार के नोट हैं ही नहीं। रिज़र्व बैंक ने चार साल पहले ही इन नोटों की छपाई बंद कर दी थी। आम आदमी जिन एटीएम से ज़रूरत के लिए पैसे निकालता है, उन एटीएम ने लगभग साल भर पहले से दो हज़ार के नोट उगलने बंद कर दिए थे। दो हज़ार के नोट अब उन्हीं अफ़सरों के पास हैं जो रिश्वत के भूखे रहते हैं।

उन्हीं कारोबारियों के पास हैं जो टैक्स चुकाए बिना करोड़ों कमाने का लालच पाले रहते हैं। या उन राजनीतिक पार्टियों के पास जो उद्योगपतियों या कारोबारियों से बेहिसाब चंदा बटोरती हैं। यह तो चंदा भी नहीं होता, एक तरह की रिश्वत ही होती है! सामान्य आदमी को तो अब इस गुलाबी नोट के दर्शन भी मुमकिन नहीं है।

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अब आते हैं दो हज़ार के नोट को चलन से बाहर करने के फ़ैसले पर। यह फ़ैसला सही है या ग़लत? उचित है या अनुचित? तुलनात्मक रूप से सही माना जाए तो इसलिए कि आम आदमी पर इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

ग़लत इस रूप में कहा जा सकता है कि जब काला धन ख़त्म ही करना था तो 2016 में पाँच सौ और हज़ार का नोट बंद करके दो हज़ार का नोट क्यों चलाया? क्योंकि नोट जितने छोटे यानी कम रक़म के होंगे, काले धन पर उतना ही अंकुश लग पाएगा। ऐसे में जब दो हज़ार का नोट जारी करना ही ग़लत फ़ैसला था तो उसे चलन से बाहर करने को सही कैसे ठहराया जा सकता है? ये तो एक तरह की भूल सुधार हुई!

अब इस भूल सुधार पर भी सरकार इसलिए आई है क्योंकि आगे लोकसभा चुनाव हैं। चार बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। सही मायने में तो लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह फ़ैसला लिया गया है। और कुछ भी नहीं। दरअसल, दो हज़ार के नोट इस वक्त केवल करोड़पतियों, अरबपतियों के पास ही हैं। … और हम हिंदुस्तानियों की आदत है, पैसे वाले परेशान हों तो हमें आत्मिक ख़ुशी मिलती है। जब आम आदमी को आत्मिक ख़ुशी मिलती है तो इस ख़ुशी से वोट निकलकर आते हैं। सरकार यही चाहती है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आम आदमी को प्रभावित करने वाले पाँच सौ और हज़ार के नोट जब बंद किए गए थे तो घोषणा के बाद आधी रात से ही सब कुछ बंद कर दिया गया था। बदलने की सीमा भी एक बार में ढाई हज़ार रु. ही थी। अब बड़े लोगों, जिनमें हो सकता है कई राजनीतिक पार्टियाँ भी शामिल हों, उनकी मिल्कियत वाले गुलाबी नोट बंद किए गए तो वक्त दिया गया सवा चार महीने ( आज से तीस सितंबर तक) का। क्यों? सहूलियत तो देखिए, एक बार वे बीस हज़ार रु. जमा कर सकते हैं या बदलवा सकते हैं।

बदलवाने का वक्त तेईस मई से शुरू होगा जबकि उसके पहले तक तो बैंक में कितने ही रुपए जमा कराए जा सकते हैं। हालाँकि कौन कितना पैसा जमा करवा रहा है? और क्यों, इसका हिसाब- किताब तो होगा ही। इनकम टैक्स वाले भी टूट पड़ सकते हैं। लेकिन सारी छूट, तमाम सहूलियतें पैसे वालों को ही क्यों?

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