महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत उनके 15 विधायकों की अयोग्याता को लेकर आज सुप्रीम फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने कहा कि शिंदे गुट के गोगवले को चीफ व्हिप नहीं बनाना असंवैधानिक था। कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि खुद को असली पार्टी कहकर अयोग्ता से नहीं बच सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उद्धव बनाम शिंदे की शिवसेना का मामला 7 जजों की बेंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल से विधायकों की बातचीत में कहीं भी इस बात का संकेत नहीं था, जिसमें असंतुष्ट विधायकों ने कहा हो कि वह सरकार से समर्थन बाहर लेना चाहते हैं। राज्यपाल ने शिवसेना के एक गुट के विधायकों की बात पर भरोसा करके गलती कि उद्धव ठाकरे के पास विधायकों का बहुमत नहीं है।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा शिंदे के बयान का संज्ञान लेने पर स्पीकर ने व्हिप कौन था इसकी पहचान करने का उपक्रम नहीं किया और उन्हें जांच करनी चाहिए थी। गोगावाले को मुख्य सचेतक नियुक्त करने का निर्णय असंवैधानिक था क्योंकि व्हिप केवल विधायी राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बातें
- 2016 का फैसला सही नहीं था। इसमें कहा गया था कि डिप्टी स्पीकर या स्पीकर के खिलाफ अयोग्यता का मामला है तो उसे कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं होगा।
- स्पीकर ने कोशिश नहीं की कि शिवसेना की ओर से शिंदे गुट के गोडावले आधिकारिक व्हिप हैं या फिर उद्धव गुट के प्रभु। स्पीकर को यह जरूर पता होना चाहिए कि राजनीतिक पार्टी ने किसे व्हिप चुना है।
- स्पीकर ने शिंदे गुट वाले गोडावले को व्हिप नियुक्त किया, यह फैसला गैरकानूनी था। नवंबर 2019 में विधायकों ने एकमत होकर उद्धव ठाकरे को पार्टी का लीडर चुना था।
- महाराष्ट्र में शिंदे और उनके गुट के 15 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के फैसले पर बड़ी बेंच को विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर विधायक सरकार से बाहर होना चाहते हैं तो वो केवल एक गुट बना सकते हैं। पार्टी के भीतरी झगड़े सुलझाने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
जानें क्या है पूरा केस?
आपको बता दें कि बीते साल जून के महीने में शिवसेना के 16 विधायकों ने तत्कालीन उद्धव सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. तत्कालीन डिप्टी स्पीकर ने बागी विधायकों के खिलाफ नोटिस जारी कर अयोग्यता की कार्यवाही की. बागी विधायकों ने जवाब देते हुए एक पत्र भेजकर कहा कि डिप्टी स्पीकर के प्रस्ताव को प्रॉपर चैनल से नहीं भेजा गया. इस बीच गर्वनर ने विधानसभा में उद्धव ठाकरे को विश्वास मत हासिल करने के लिए फ्लोर टेस्ट के लिए कहा, लेकिन उन्होंने फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले ही सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. गर्वनर की इस कार्रवाई के खिलाफ उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की.
उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद एकनाथ शिंदे गुटे ने सूबे में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ मिलकर सरकार बनाई और चुनाव आयोग में असली शिवसेना होने का दावा ठोंक दिया. इस पर चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे को असली शिवसेना मानते हुए उन्हें पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न तीर-धनुष सौंप दिया. उद्धव ठाकरे गुट ने EC के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. बागी 16 विधायकों की सदस्यता और शिवसेना को लेकर दायर अर्जियों को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय संविधान पीठ गठित कर दी.