राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की गुगली से भाजपा राज्य में असहज स्थिति में आ गई है। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता वसुंधरा राजे और एक अन्य भाजपा विधायक पर कांग्रेस की सरकार बचाने की बात कहकर गहलोत ने सियासी रोटी पलट दी। गहलोत की इस गुगली का जवाब फिलवक्त भाजपा को नहीं सूझ रहा है। ज्ञातव्य है कि गहलोत ने रविवार को यह बयान देकर सनसनी फैला दी कि २०२० में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा नेता कैलाश मेघवाल ने मेरी सरकार बचाने में मदद की थी। गहलोत ने साथ में अपनी ही पार्टी के सचिन पायलट को घेरने की कोशिश की। गहलोत के इस विस्फोटक बयान को खारिज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने विधानसभा चुनाव से कुछेक महीने पहले भाजपा की मुख्यमंत्री पद की दावेदार और कांग्रेस में दमदारी के साथ मौजूद सचिन पायलट की निष्ठा को सार्वजनिक कर दोनों नेताओं को नैतिक तौर पर कमजोर करने का सोचा–समझा रास्ता चुना है। गहलोत को इस बात का ड़र बखूबी है कि आसन्न चुनाव उनके लिए आसान नहीं होगा। सचिन पायलट ने जिस तरह से उनके खिलाफतलवार खींच रखी है‚ उससे उनका खेल कमजोर पड़़ सकता है। यही वजह है कि उन्होंने ऐन वक्त पर वसुंधरा और पायलट को बे–पर्दा करने वाली रणनीति अपनाई। हालांकि गहलोत के इस दांव पर वसुंधरा ने सिर्फ इतनी टिप्पणी की कि २०२३ के चुनाव में होने वाली हार से ड़र कर वह झूठ बोल रहे हैं। मगर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसा बयान गहलोत ने एक ही झटके में वसुंधरा की पार्टी में मजबूती और निष्ठा को कमजोर कर दिया। गहलोत यहीं पर नहीं रुके और उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह पर उस वक्त सरकार गिराने के वास्ते कांग्रेस के बागी विधायकों को १०–२० करोड़़ देने के बेहद गंभीर आरोप भी जड़़ दिए। साफ है कि गहलोत अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से आमने–सामने की लड़़ाई की शुरुआत भी कर दी है। साथ ही कांग्रेस आलाकमान की नजर में भाजपा की पहली पांत के नेताओं के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करने की ताकत भी दिखा दी। देखना है‚ भाजपा गहलोत के इस ‘जादुई तेवर’ का मुकाबला किस तरह करती है। फिलहाल तो यही प्रतीत हो रहा है कि गहलोत अपने प्रतिद्वंद्वियों पर हमलावर रुख अपनाकर राज्य की जनता के अलावा पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत करने की नीति पर कुशलतापूर्वक अग्रसर हैं।
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