‘महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस सरकार का डेथ वारंट जारी हो चुका है। यह सरकार अगले 15-20 दिनों में गिर जाएगी।’
उद्धव ठाकरे गुट के सांसद संजय राउत ने रविवार को ये बयान दिया। उनका इशारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरफ था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने पिछले दिनों उद्धव सरकार गिरने के मामले में उद्धव गुट, शिंदे गुट और राज्यपाल की ओर से दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस सुनवाई के बाद उद्धव गुट के संजय राउत जैसे नेताओं को लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट उनके पक्ष में फैसला सुना सकता है।
सबसे पहले वो 3 संकेत, जिससे संजय राउत 15-20 दिनों में शिंदे सरकार गिरने का दावा कर रहे हैं…
1. सुनवाई के आखिरी दिन यानी 23 मार्च को संविधान पीठ ने उद्धव ठाकरे के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा- तो आपके हिसाब से हमें क्या करना चाहिए। आपको दोबारा बहाल कर दें, लेकिन आपने तो इस्तीफा दे दिया। इसका मतलब तो यह हुआ कि कोर्ट इस्तीफा दे चुकी सरकार को बहाल करने का आदेश दे।
2. संविधान पीठ ने यह भी कहा कि उसे लगता है कि गर्वनर का उद्धव सरकार को विश्वास मत साबित करने के लिए कहना अवैध था।
3. NCP नेता अजित पवार ने 18 अप्रैल को अपने ट्विटर बायो से पार्टी का चुनाव चिन्ह हटा लिया। इससे भी शोर मचा कि सुप्रीम कोर्ट शिंदे सरकार के खिलाफ फैसला सुनाने वाली है, इसलिए खुद को बचाने के लिए बीजेपी सरकार अजित पवार के जरिए 16 विधायकों का इंतजाम कर रही है।
इन तीनों संकेतों से कयास लगाए जा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट उद्धव सरकार को बहाल करने के बारे में सोच रही है। मतलब यह कि फैसला उद्धव गुट के पक्ष में आ सकता है। भास्कर एक्सप्लेनर में इस मामले से जुड़े वो पेंच जानेंगे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना है…
सबसे पहले तीन बातों को जानना होगा…
1. राज्यपाल
राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है। आमतौर पर वह केंद्र में सरकार बनाने वाले दल से जुड़ा होता है। कोई ब्यूरोक्रेट, रिटायर सैन्य अधिकारी या जज होने पर भी केंद्र सरकार अपनी विचारधारा को मानने वाले शख्स को ही राज्यपाल बनाती आई है।
महाराष्ट्र के मामले में तब के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी इस कुर्सी पर बैठने से पहले भाजपा के सीनियर लीडर थे। उत्तराखंड में भाजपा सरकार के सीएम भी रहे थे।
राज्यपालों पर केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लगते आए हैं। उनके राजनीतिक फैसलों से भी ऐसा जाहिर होता रहा है। महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने के मामले में भी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
तकनीकी बातों को छोड़ दें तो राज्यपाल की जिम्मेदारी होती है कि वह राज्य में बहुमत वाली स्थायी सरकार बनाने में सक्षम पार्टी या गठबंधन के लीडर के सरकार बनाने का न्योता दे।
सरकार बनने के बाद कभी-भी अगर राज्यपाल को लगता है कि मुख्यमंत्री के पास बहुमत नहीं है, तो भी वह सीएम से सदन में बहुमत साबित करने को कह सकता है।
हालांकि, वह ये भी मनमाने तरीके से नहीं कर सकता है, इसके लिए भी उसे किसी राजनीतिक दल से सूचना या मांग मिलनी चाहिए। इसके अलावा हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी राज्यपाल सीएम से बहुमत साबित करने को कह सकता है।
2. स्पीकर
विधानसभा स्पीकर का मतलब है, उस सदन का नेता। नेता बहुमत से चुना जाता है, इसलिए देश की सभी विधानसभाओं के स्पीकर आमतौर पर सरकार बनाने वाली पार्टी या गठबंधन से होते हैं। राज्यपाल की तरह देखा गया है कि स्पीकर ज्यादातर मामलों में राज्य सरकार या सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में फैसले लेते हैं।
महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने के दौरान स्पीकर नहीं थे। कानून के मुताबिक, स्पीकर न होने पर उनके सभी संवैधानिक काम डिप्टी स्पीकर करता है। महाराष्ट्र में NCP के नरहरि जिरवाल डिप्टी स्पीकर थे। आपको पता ही होगा, शरद पवार की NCP तब महाराष्ट्र में सरकार चलाने वाली महाविकास अघाड़ी यानी MVA के हिस्सा थे…और अभी भी हैं।
सरकार बनाने या गिराने के मामले में स्पीकर के पास कुछ खास हथियार होते हैं। जैसे- किसी भी पार्टी में फूट होने के स्थिति में दलबदल कानून कैसे लागू होगा, इसका अंतिम फैसला स्पीकर करता है
। राजनीतिक चलन के मुताबिक, आमतौर पर स्पीकर अपनी ही पार्टी को फायदा पहुंचाने वाले फैसले लेता है। महाराष्ट्र में यही आशंका थी। तभी एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले, नबाम रेबिया केस का सहारा लेकर स्पीकर के इस ताकत पर रोक लगा दी। इसके बारे में आगे डिटेल में जानेंगे।
3. महाराष्ट्र में हुआ क्या था
महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर 2019 में चुनाव हुए थे। इस चुनाव में बीजेपी 106 विधायकों के साथ राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और बीजेपी गठबंधन में बात नहीं पाई। ऐसे में 56 विधायकों वाली शिवसेना ने 44 विधायकों वाली कांग्रेस और 53 विधायकों वाली NCP के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार बनाई।
मई 2022 महाराष्ट्र सरकार में नगर विकास मंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे 39 विधायकों के बागी बन जाते हैं। महाराष्ट्र केस में इस बार एकनाथ शिंदे ने नबाम रेबिया केस का फायदा उठाया। साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। ताकि डिप्टी स्पीकर शिंदे गुट के 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला ने लेने पाए।
इसी बीच राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत सिद्ध करने के लिए कह दिया। उद्धव गुट इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को बरकरार रखा। जैसी उम्मीद थी कि राज्यपाल ने जैसे ही देखा कि शिंदे गुट के पास बहुमत है उन्होंने तुरंत बहुमत सिद्ध करने के लिए कह दिया। एक तरफ तो डिप्टी स्पीकर के हाथ बांध दिए गए, दूसरी तरफ राज्यपाल फैसले ले रहे थे।
उद्धव को जब लगा कि उनके पास बहुमत नहीं है तो उन्होंने वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई।
ऐसे में दो बड़े सवाल हैं जिन पर सुप्रीम कोर्ट में बहस हुई है…
1. क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते थे?
उद्धव गुट की दलील
उद्धव गुट की ओर से सीनियर एडवोकेट सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि कभी भी फूट से अलग हुआ कोई खेमा एक गुट ही रहता है। वह पॉलिटिकल पार्टी नहीं हो सकता। राजनीतिक दल कौन है? इसका फैसला चुनाव आयोग कर सकता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह पर ही विधायक चुने जाते हैं। विधानमंडल में भी राजनीतिक दल की अहमियत सबसे ज्यादा है।
मगर, जब तक चुनाव आयोग ने शिंदे खेमे को राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता नहीं दी थी, तब महाराष्ट्र के राज्यपाल ने किस आधार पर शिंदे गुट को बहुमत साबित करने का मौका दिया। सिब्बल ने दलील दी कि महाराष्ट्र के राज्यपाल ने मनमाने तौर पर 34 विधायकों को असली शिवसेना मान लिया। उनका यह काम संविधान विरोधी था।
गवर्नर सिर्फ मान्यता प्राप्त दलों से चर्चा कर सकते हैं, किसी गुट से नहीं। किस हैसियत से राज्यपाल ने एकनाथ शिंदे से मुलाकात की और उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। राज्यपाल ने अपने द्वारा विभाजन को मान्यता दी, जो दसवीं अनुसूची के तहत वैध आधार नहीं है।
शिंदे गुट की दलील
शिंदे गुट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि उस वक्त उद्धव के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार अल्पमत में आ गई थी। ऐसे में राज्यपाल ने बीजेपी को समर्थन हासिल करने वाले शिंदे गुट को सरकार बनाने का न्योता दिया। इसमें कोई गलत बात नहीं थी।
2. क्या डिप्टी स्पीकर को ऐसे रोका जा सकता है?
उद्धव गुट की दलील
उद्धव गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने संविधान पीठ को बताया कि दल बदल कानून के तहत सिर्फ स्पीकर या डिप्टी स्पीकर ही कार्यवाही कर सकते हैं। इस मामले में नबाम रेबिया केस का हवाला देकर उनके हाथ बांध दिए गए। ऐसे में हम फिर से आया राम गया राम वाले पीरियड में चले गए। यानी कभी विधायकों को तोड़कर कोई भी स्थिर सरकार गिराई जा सकती है।
शिंदे गुट की दलील
शिंदे गुट के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में 2016 नबाम रेबिया केस का उदाहरण दिया। इसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फैसला दे चुकी है कि विधानसभा स्पीकर उस सूरत में विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जबकि स्पीकर को हटाने की पूर्व सूचना सदन में लंबित है। यानी स्पीकर तब अयोग्यता की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं, जब खुद उन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव लंबित हो।