मरुभूमि राजस्थान में कांग्रेस के अंदर एक बार फिर जबरदस्त उबाल की स्थिति है। सत्ताधारी कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट ने बगावती तेवर अख्तियार किया है। रविवार (९ अप्रैल) को पायलट ने आक्रामक रुख अपनाते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करने का एलान कर दिया‚ जो न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के लिए भी हतप्रभ करने वाली घटना रही। पायलट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कार्रवाई को लेकर गहलोत सरकार को निशाने पर लिया है। पायलट ने ऐसा क्यों किया और क्या उनकी इस कवायद को पार्टी से विद्रोह के शुरुआती कारणों के तौर पर देखा जाए या यह महज पार्टी आलाकमान पर दबाव की रणनीति है। इसे समझने की जरूरत है। हालांकि पायलट पहले भी मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ आक्रामक रुख रखते आए हैं और कई मौकों पर उन्होंने इसका इजहार भी किया है। बावजूद इसके आलाकमान का भरोसा गहलोग पर ज्यादा रहा है। पायलट को पार्टी के लिए ‘संपत्ति’ बताने वाले राहुल गांधी के लिए भी यह घटनाक्रम सहज नहीं होगा। क्योंकि राहुल खुद अड़ानी के मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। राहुल भी भ्रष्टाचार की बात करते हैं और शायद कांग्रेस के लिए २०२४ का मुद्दा भी अड़ानी का भ्रष्टाचार और मोदी की अड़ानी के प्रति मुलायम व्यवहार हो सकता है। यानी पायलट के इस कदम को जो सियासी विशेषज्ञ जल्दबाजी में उठाया गया कदम मान रहे हैं‚ वो गलत भी हो सकते हैं। पिछली वसंुधरा राजे सरकार के दौरान भ्रष्ट आचरण के खिलाफ अगर पायलट एक दिनी अनशन करेंगे तो इसे इस रूप में भी देखने की जरूरत है कि कहीं पायलट कुछ ‘बड़़ा’ करने की रणनीति पर तो काम नहीं कर रहे हैं। क्या पायलट अलग पार्टी बनाने की तो नहीं सोच रहे या आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने का दांव तो नहीं चलने की सोच रहे। फिलहाल तो पायलट के साथ कितने विधायक हैं‚ इसका पता चलने के बाद ही उनकी मजबूती या कमजोरी के बारे में विश्लेषण हो सकता है। आज होने वाले अनशन कार्यक्रम में उनकी गतिविधियों से काफी कुछ साफ होने की उम्मीद है। कांग्रेस आलाकमान भी अभी ‘वेट एंड़ वॉच’ की भूमिका में है। हालांकि पार्टी ने गहलोत के कार्यों की प्रशंसा कर पायलट को बैकफुट पर कर दिया‚ मगर कई दांव–पेच बाकी हैं। खासकर‚ गहलोत की प्रतिक्रिया का सबको बेसब्री से इंतजार रहेगा।
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