मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मदद की राशि सीधे लाभ पाने वालों के बैंक के खाते में देने का निर्णय किया। लक्ष्य यह था कि सरकार और जनता के बीच लोक कल्याणकारी योजनाओं की राशि में कोई बंदरबाट न हो। इसमें कोई दो विचार नहीं कि यह निर्णय बहुत प्रभावकारी रहा। फिर भी बिचौलियों ने अपना रास्ता निकाल ही लिया। गुरुवार को विधानसभा में ग्रामीण विकास विभाग की अनुदान मांग पर चर्चा के समय विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के कई विधायकों ने कहा कि बिचौलियों ने कमाई का नया माध्यम खोज लिया है। आवास एवं शौचालय योजना की राशि बैंक में आने से पहले ही बिचौलिया अपना हिस्सा नगद ले लेते हैं। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के अलावा त्रिस्तरीय पंचायत के प्रतिनिधियों का भी नाम लिया गया। खास कर मुखियाजी की खूब चर्चा हुई। बताया कि इन योजनाओं की स्वीकृति में सीधी भूमिका नहीं रहने के बावजूद अधिसंख्य मुखिया बिचौलिये की भूमिका में पाए गए हैं। सरकार चाहे तो सरजमीन पर जाकर इन आरोपों की जांच करवा सकती है। यह अधिक समय साध्य भी नहीं है। आप किसी गांव में जाएं तो बहुत बड़ी संख्या में अर्धनिर्मित आवास और शौचालय नजर आएंगे। लोग बताएंगे कि सरकार की ओर से पूरी राशि मिलने के बावजूद उनके घर या शौचालय क्यों नहीं बन पाए। कारण बहुत सीधा है। सरकार प्राक्कलन के आधार पर धन देती हैं। एक हिस्सा बिचौलिये के पास जाने के साथ ही निर्माण का हिसाब गड़बड़ हो जाता है। जरूरत इस बात की है राज्य सरकार इस तरह की शिकायतों को गंभीरता से ले।
राहुल गांधी के बाद अब तेजस्वी की बारी, छत्तीसगढ़ में शिकायत दर्ज
राहुल गांधी के विवादित टिप्पणी करने के कारण उनकी सदस्यता चली गई है. उन्हें गुजरात कोर्ट ने दो साल की...