लोकतंत्र में आस्था और विश्वास रखने वाले अब बेसब्री से इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि चुनाव आयोग जम्मू–कश्मीर में ठप पड़़ी राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा कब करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर्वतीय प्रदेश में विधानसभा एवं लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निधारण के लिए परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। केंद्र सरकार ने जम्मू–कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम‚ २०१९ के तहत पांच अगस्त‚ २०१९ को तब के जम्मू–कश्मीर प्रदेश को दो केंद्र शासित प्रदेशों–जम्मू–कश्मीर और लद्दाख–में विभाजित कर दिया था। इसी अधिनियम के तहत संविधान के अनुच्छेद ३७० के प्रावधानों को निरस्त करते हुए जम्मू–कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा भी समाप्त हो गया था। पिछले वर्ष मई में परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। इसमें आयोग ने जम्मू में ६ और कश्मीर घाटी में १ सीट बढ़ाने की सिफारिश की है। इसके लागू होने पर वहां के विधानसभा की कुल सीटें ८३ से बढ़कर ९० हो जाएंगी। गौर करने वाली बात यह है कि इसमें पाक अधिकृत कश्मीर की २४ सीटें शामिल नहीं हैं। दरअसल‚ केंद्र सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय ने मार्च‚ २०२० में जम्मू–कश्मीर में परिसीमन की अधिसूचना जारी की थी। याचिकाकर्ता हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने परिसीमन आयोग की वैधता पर सवाल उठाया था जिसे शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद जम्मू–कश्मीर में विधानसभा चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। २०१५ में यहां पीड़ीपी और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी थी। करीब ४० महीने बाद २०१८ में इस बेमेल गठबंधन की सरकार टूट गई। इसके बाद से वहां विधानसभा के चुनाव नहीं हुए हैं। अनुच्छेद ३७० के निरस्त होने के बाद प्रदेश में आतंकवाद और अलगाववाद की घटनाओं में भारी कमी आई है। अनेक मल्टीप्लेक्स और सिनेमाहॉल खुल गए हैं। केंद्र ने भी प्रदेश की जनता को बार–बार आश्वस्त किया है कि राजनीतिक प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। वास्तव में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान लोकतंत्र की आवश्यक शर्त है। अपेक्षा की जानी चाहिए कि वहां जब भी चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी इन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। केंद्र के साथ स्थानीय नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि चुनाव प्रक्रिया से अवांछित तत्वों को दूर रखने के सभी उपाय किए जाएं।
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