ऊंट के मुंह में जीरा… ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। अब एक विज्ञापन भी याद कीजिए… पियो बिसलेरी! जी हां वही ऊंट जो बिसलेरी भी पी रहा है। इस बार के कृषि बजट में किसानों के साथ भी कुछ यही स्थिति है। काम की घोषणाएं जीरा भर और कुछ ऐलान ऐसे जो ऊंट को बिसलेरी पिलाने जैसे लगे।
मसलन, केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का ऐलान किया था, लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए वित्त मंत्री ने वैसा कोई ठोस ऐलान नहीं किया, जिससे किसानों को सीधा फायदा उनकी जेब में आता दिखे। सरकार ने कृषि क्रेडिट कार्ड (KCC) 20 लाख करोड़ बढ़ाने की घोषणा की, जो पिछले साल 18.5 लाख करोड़ रुपए था। यानी इस बार डेढ़ लाख करोड़ का इजाफा।
इसके अलावा सीतारमण ने दो और घोषणाएं कीं। पहला- डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर एग्रीकल्चर: इस ओपन सोर्स से किसानों को खाद बीज से लेकर मार्केट और स्टार्टअप्स तक की जानकारी मिल सकेगी। दूसरा- एग्रीकल्चर एक्सीलेटर फंड: इसके जरिए गांवों में युवाओं को स्टार्टअप शुरू करने का मौका मिलेगा।
बजट में किसानों के लिए कुल जमा 9 बातें कही गई हैं…
- कृषि स्टार्टअप बढ़ाने के लिए एग्रीकल्चर एक्सीलेटर फंड बनेगा।
- प्रधानमंत्री मत्स्य योजना के लिए 6 हजार करोड़ रुपए का ऐलान।
- किसानों को लोन देने की राशि 20 लाख करोड़ रुपए की गई।
- मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए इंस्टीट्यूट्स ऑफ मिलेट्स बनेगा।
- 2 हजार 200 करोड़ बागवानी की उपज को बढ़ावा देने के लिए।
- खाद-बीज की जानकारी देने के लिए डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर।
- अगले 3 साल में 1 करोड़ किसानों को नेचुरल फार्मिंग के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए 10 हजार बायो इनपुट रिसर्च सेंटर स्थापित होंगे।
- कपास की खेती को बढ़ावा देने के लिए पब्लिक प्राइवेट पाटर्नरशिप (PPP) मॉडल पर जोर।
- किसानों के लिए सहकार से समृद्धि प्रोग्राम चलाया जाएगा। इसके जरिए 63 हजार एग्री सोसाइटी को कंप्यूटराइज्ड किया जाएगा।
कृषि बजट को लेकर अब एक्सपर्ट अवध ओझा की राय 6 पॉइंट्स में पढ़िए…
कृषि बजट को लेकर एक्सपर्ट अवध ओझा ने सरकार की सभी योजनाओं को अच्छा बताया है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि सरकार यदि इन योजनाओं का 60 से 70 प्रतिशत भी ईमानदारी से इम्प्लिमेंटेशन करवा लेती है तो यह किसानों के लिए अच्छा होगा।
- डिजिटल एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा मिलने से किसान को अब सारी योजनाओं की जानकारियां अपने मोबाइल पर ही मिल जाएंगी। इससे कम किसान को बिचौलिए नहीं ठग पाएंगे।
- चुनौती ये है कि देश में अभी भी 60 से 70% लोग मोबाइल और इंटरनेट का सही यूज नहीं कर पाते हैं। सरकार किसानों को इंटरनेट फ्रेंडली बनाने की दिशा में भी काम करें तो ये योजना सफल हो जाएगी।
- सहकार से समृद्धि योजना में 63 हजार सोसायटियों को कंप्यूटराइज्ड किया जाएगा और को-ऑपरेटिव बैंक से किसानों की मदद की जाएगी। लेकिन को-ऑपरेटिव बैंक का इतिहास बहुत खराब रहा है। NPA, फ्रॉड लोन और काम करने का तरीका इस बैंक की सबसे बड़ी समस्या है।
- दुनिया में अनाज का संकट है, ऐसे में मोटे अनाज को श्रीअन्न का नाम देकर प्रमोट करना बहुत लाभदायक होगा। आज के दौर में लोग कई बीमारियों से पीड़ित हैं। इनका समाधान बाजरा, रागी, कूटो और रामदाना जैसे मोटे अनाज ही हैं।
- कॉटन को PPP योजना के तहत प्रोमेशन देने से भारत की आर्थिक शक्ति मजबूत होगी। कॉटन चेन रिएक्शन से ही ब्रिटेन और अमेरिका सुपर पावर बने हैं।
- पिछले साल की तुलना में इस साल किसानों को कर्ज देने का बजट बढ़ाया है। अभी 58% लोग गांवों में कर्जदार हैं। ऐसे में सरकार को तय करना होगा कि किसान को उसकी आवश्यकताओं के हिसाब से ही कर्ज मिले।
- किसान सिर्फ मजदूर के रूप में कभी विकास नहीं कर पाएगा। जब तक उसका स्किल इंप्रूव नहीं होता। किसान अगर रॉ-मैटेरियल बना रहा है तो उसे एक कदम आगे बढ़कर फिनिश्ड गुड्स भी बनाने होंगे। सरकार को इसके लिए भी प्लानिंग करनी होगी।
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1. सात साल में खेती से जुड़ी योजनाओं का बजट 4.36 गुना बढ़ाया
2015-16 में सरकार ने कृषि योजनाओं के लिए 24.2 हजार करोड़ रुपए दिए थे। 2022-23 में यह 4.36 गुना बढ़कर 1.06 लाख करोड़ हो गया।
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हकीकत : कृषि योजनाओं का बजट लगातार बढ़ाने के बावजूद सरकार उनके लिए अलॉट की गई रकम खर्च नहीं कर पा रही है। 2019-20 में ऐसी योजनाओं पर किया गया असल खर्च उन्हें मिले बजट के मुकाबले 29% कम था। पिछले साल यानी 2022-23 में कृषि योजनाओं के लिए 1,05,710 करोड़ रुपए अलॉट हुए थे। ये 2019 के बाद सबसे कम रकम थी। उसी साल केंद्र ने PM किसान योजना शुरू की थी।
2. हर साल 11.3 करोड़ किसानों को 6 हजार रुपए दिए
सरकार ने 2019 में PM किसान सम्मान निधि की शुरुआत की। योजना के तहत किसानों को हर साल 6 हजार रुपए 3 किश्तों में देना शुरू किया। अब तक करीब 11.3 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।
हकीकत : योजना को किसानों ने पसंद तो किया है, लेकिन साल भर में 6 हजार रुपए की राशि बेहद कम है। एक्सपर्ट्स इसे 12 हजार रुपए तक करने की मांग कर रहे हैं।
3. फसल बीमा के जरिए 1.24 लाख करोड़ रुपए दिए
सरकार ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की। इसके तहत फसल नष्ट होने पर किसानों को अब तक 1.24 लाख करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं।
हकीकत : राजस्थान समेत कई राज्यों में किसानों को फसल बीमा के तहत 20 पैसे, 2 रुपए और 10 रुपए दिए गए हैं। ऐसे में इस पर सवाल भी उठ रहे हैं।
4. किसानों को आसानी से कर्ज और क्रेडिट कार्ड मिला
2015-16 में किसानों को 8.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया था। 2022-23 में यह आंकड़ा बढ़कर 18.5 लाख करोड़ रुपए हो गया। किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के जरिए सरकार नवंबर 2022 तक 4.33 लाख करोड़ का कर्ज दे चुकी है।
हकीकत : इतनी बड़ी संख्या में KCC कार्ड जारी होने के बाद भी किसानों पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। नाबार्ड की रिपोर्ट के मुताबिक 6 सालों में किसानों पर 58% कर्ज बढ़ गया है। नेशनल सैंपल सर्वे NSS की 2021 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में 35% लोगों पर कर्ज हैं। इनमें से 10.2% कर्ज गैरसंस्थागत यानी लोकल लेंडर्स से लिए गए हैं।
5. फसलों की MSP डेढ़ गुना बढ़ाई
सरकार का कहना है कि उसने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में डेढ़ गुना बढ़ोतरी की है। 2013-14 में धान की कीमत 1310 रुपए प्रति क्विंटल थी, लेकिन 2022-23 में 2040 रुपए प्रति क्विंटल हो गई।
हकीकत : केंद्र सरकार की शांता कुमार कमेटी के मुताबिक, सरकार केवल 6% उत्पादन ही MSP पर खरीदती है। 94% किसानों का उत्पादन MSP से भी कम रेट पर बिकता है, जिसके कारण किसानों को हर साल लगभग 7 लाख करोड़ का नुकसान होता है।
किसानों की आय दोगुनी करने का सच: बढ़ने थे 13 हजार रुपए, लेकिन बढ़े सिर्फ 2159 रु.
केंद्र सरकार ने 2016 में दावा किया था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुना, यानी प्रति माह 21 हजार रुपए हो जाएगी। नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (NSSO) की 2021 के रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-16 में किसानों की आय 8 हजार रुपए प्रति माह थी, जो 2018-19 में बढ़कर 10 हजार ही पहुंच सकी। यानी किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 11 हजार प्रति माह और बढ़ाने होंगे।
इसके अलावा छोटे और मझोले वर्ग के किसानों को खेती में आने वाली लागत को कम करने पर काम करना होगा। नवंबर 2021 में सरकार ने बताया था कि एक किसान हर महीने 10,218 रुपए कमाता है। इसमें से वह हर महीने 2 हजार 959 रुपए बुआई-उत्पादन पर और 1 हजार 267 रुपए पशुपालन पर खर्च करता है। यानी उसे बाकी खर्चे के लिए 6 हजार रुपए भी नहीं मिलते। लिहाजा वे कर्ज लेने के लिए मजबूर होते हैं।
6 साल में किसानों का कर्ज 58% बढ़ा, हर किसान पर 74 हजार रुपए से ज्यादा का कर्ज
साल 2019 में नाबार्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के किसानों पर 16.8 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। वहीं सरकारी एजेंसी NSSO ने बताया कि 2013 में देश के हर किसान पर औसतन 47 हजार रुपए का कर्ज था, जो 2019 में बढ़कर 74 हजार से ज्यादा हो गया। यानी 6 साल में ही एक किसान का कर्ज 58% तक बढ़ गया। तमिलनाडु के किसानों पर सबसे ज्यादा 1.89 लाख करोड़ का कर्ज है। सबसे कम कर्ज दमन और दीव के किसानों पर 40 करोड़ का है।