बिहार की राजनीति इन दिनों ‘रपटीली राहों’ से होकर गुजर रही है। दल मिल गये। बिहार में महागठबंधन की सरकार चलने लगी। दिल नहीं मिले। किसके दिल नहीं मिले? इस सवाल पर सियासी जानकार बिहार के दो प्रमुख दलों की ओर इशारा करते हैं। तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार भले मिल गये। जेडीयू और राजद के साथ सात दलों का गठबंधन भले हो गया। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता एक दूसरे से दूर हैं। दोनों दलों के विधायक सस्पेंस में हैं। फिल्ड में किसकी राजनीति करें। जेडीयू या फिर राजद की। इधर, राजधानी पटना में सबकुछ ठीक चल रहा हो ऐसा नहीं है। जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार ने जब से महागठबंधन की सरकार में सीएम की कुर्सी संभाली है। राज्य के विकास कार्यों पर बोलने से ज्यादा उन्हें राजनीतिक बयान देना पड़ रहा है। कभी सुधाकर, कभी चंद्रशेखर और कभी अपनी ही पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा। अंदर की बात है नीतीश कुमार तंग आ चुके हैं। वो साफ-सुथरी और बेवजह की राजनीतिक बयानबाजी से बचते हुए सरकार चलाना चाहते हैं। उन्हें मौका नहीं दिया जा रहा है।
राजद के मंत्री नाराज
नीतीश कुमार ने सरकार गठन के बाद एक काम और किया है। राज्य के प्रशासनिक ऑफिसरों का कुनबा एनडीए के समय वाला ही रखा है। इससे आरजेडी कंफर्टेबल नहीं है। राजद के मंत्री मीडिया को बयान देते मिल जाएंगे। मंत्रियों का कहना है कि ये सरकार पिछले साल अगस्त में बनी। आज तक राजद के किसी मंत्री को उसके पसंद का अधिकारी नहीं मिल पाया। तेजस्वी यादव के चेहरे को ध्यान से देखिए। चेहरे से तेज गायब है। उनके स्वास्थ्य और सड़क निर्माण विभाग का नेतृत्व अभी भी नीतीश के पसंदीदा अधिकारी कर रहे हैं। जानकार मानते हैं कि नीतीश के खिलाफ आरजेडी नेताओं के मोर्चा खोलने की जड़ में यही बात प्रमुख है। नीतीश कुमार ने अभी तक सत्ता की असली बागडोर से आरजेडी को दूर रखा है। जानकार खुलासा करते हैं कि इसका मतलब ये है कि नीतीश मन ही मन ये सोच चुके हैं कि यदि उनकी मनमर्जी के हिसाब से मामला नहीं चला, तो पथ बदल देंगे। नीतीश का फैसला यही नहीं थम गया। आप रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए । मुख्यमंत्री ने उन बोर्ड, निगमों और आयोगों के पद को भी नहीं भरा है। जिसमें आरजेडी अपने नेताओं को जगह दिला सके। उन्होंने अति-पिछड़ा आयोग का गठन किया, लेकिन आरजेडी नेताओं को जगह नहीं दी। जेडीयू के नवीन आर्य को अध्यक्ष बना दिया। राजद को पैनल के शेष सदस्यों में भी उतना महत्व नहीं दिया गया।
तेजस्वी हो रहे दरकिनार !
जानकार कहते हैं कि नीतीश के दूसरे पथ के दावेदार बनने की बात कुछ हद तक सही लगती है। नीतीश ने आरएस भट्टी को बिहार के पुलिस प्रमुख के रूप में अंतिम वक्त में नियुक्त कर दिया। नीतीश कुमार ने आरजेडी को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। आरजेडी की पसंद दूसरे अधिकारी थे। अभी हाल में नीतीश ने पीके शाही को महाधिवक्ता के रूप में नियुक्त कर दिया। उसके बाद महागठबंधन के अंदर खलबली मच गई, क्योंकि शाही को लेकर आरजेडी कंफर्टेबल नहीं है। पीके शाही लालू के खिलाफ आरोप लगा चुके हैं। अपनी समाधान यात्रा में नीतीश ने राजद के मंत्रियों को तरजीह नहीं दी। आप समझ रहे हैं महागठबंधन कहां जा रहा है। बहुत जल्द नीतीश प्लान ‘बी’ पर काम करते हुए पथ चेंज करने वाले हैं। अंदर की बात बताते हुए राजद नेताओं के हवाले से सियासी जानकार बड़ी बात कहते हैं। उनका कहना है कि सरकार बनने के बाद तेजस्वी की एक बात पर भी नीतीश ने ध्यान नहीं दिया है। तेजस्वी को सिर्फ कहा जाता है। हो जाएगा। ध्यान रखा जाएगा। ये क्या है? ऐसे गठबंधन की सरकार चलती है?
स्विच ओवर की संभावना
नीतीश के सियासी पाला बदलने और उनके स्विच ओवर करने की संभावना पर एक और नेता का बयान सटीक बैठता है। अभी दो दिन पहले सुशील मोदी ने जो कहा उसके बाद बिहार में दोबारा नये सियासी समीकरण के संकेत मिलने लगे हैं। सुशील मोदी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि कौन आएगा-जाएगा मैं नहीं जानता। इसके लिए मैं सक्षम नहीं हूं। केंद्रीय स्तर से मामला तय होता है। मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार बीजेपी में तीन बार आ चुके हैं। तीन बार जा चुके हैं। 1990 में लालू ने भी हमसे समर्थन लेकर सरकार बनाई थी। सब लोग बीजेपी की मदद लेते हैं। सुशील मोदी ने ममता बनर्जी के अलावा टीडीपी तक का उदाहरण दिया। सुशील मोदी ने कहा कि बिहार में लालू के लौटने के बाद बड़ा खेल होगा। उसके बाद नीतीश कुमार को गद्दी छोड़नी भी पड़ सकती है। सुशील मोदी का ये कहना कि नीतीश कुमार पर फैसला केंद्रीय नेतृत्व करेगा। इस बयान के कई मायने हैं। सुशील मोदी कोई छोटे नेता नहीं हैं। यदि उन्होंने इस तरह का बयान दिया है, तो इसके मायने जरूर हैं। क्योंकि जेडीयू के अंदर कलह जारी है। उपेंद्र कुशवाहा हिस्सा मांग रहे हैं। नीतीश उन्हें खदेड़ रहे हैं। ललन सिंह अलग से तेजस्वी से बैठक कर रहे हैं। बिहार की सियासत आपसी फूट के दौर से गुजर रही है। इस बीच नीतीश का ‘B’ पथ की ओर आकर्षित होना कोई बड़ी बात नहीं है। देखते जाइए बिहार की राजनीति में सियासी उठा-पटक का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है। कुल मिलाकर नीतीश कुमार एक बार फिर बीजेपी की तरफ जा सकते हैं!