साम्यवाद के कड़े नियमों की आड़़ में जनता पर नियंत्रण स्थापित करने की शी जिनपिंग की कोशिशें अब धराशायी होने लगी है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने जीरो कोविड नीति को जनता पर सामाजिक नियंत्रण स्थापित करने का एक अवसर माना था‚ लेकिन लगता है कि सरकार का यह दांव उलटा पड़ गया है। ॥ कोविड के दौरान जिस तरह के सख्त प्रतिबंध लगे और इसकी वजह से अर्थव्यवस्था चौपट हुई‚ उसने सब बदलकर रख दिया है। चीन में तरक्की की रफ्तार सुस्त पड़ गई है तथा कर्ज देश की अर्थव्यवस्था के दोगुने से ज्यादा हो चुका है। भोजन की कमी‚ महंगाई‚ काम पर न जाने पर वेतन रोक लेने का दबाव और इसके बाद भी साम्यवादी सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी का बोझ उठाएं मजदूर जब हांफने लगे तो वे बेकाबू हो गए। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में कम्युनिस्ट सरकार की नीतियों के विरोध में जनता का सड़कों पर आना अभूतपूर्व घटना है और इससे लोकतंत्र समर्थक उत्साहित हो सकते हैं। वहीं पिछले तीन वर्षों में कोविड के दौरान चीन के लोग सरकार की अधिनायकवादी नीतियों से इतने त्रस्त हो गए हैं कि उन्हें विरोध पर उतरने को मजबूर होना पड़ा है। शी जिनपिंग की मजबूत और शक्तिशाली छवि के चलते अधिकारियों में उनके प्रति निष्ठा साबित करने की होड़ लग गई और इसका असर करोड़ों लोग भोगने को मजबूर कर दिए गए।
चीन की नौकरशाही शी जिनपिंग के शासन में ज्यादा केंद्रीकृत है‚ मतलब लोगों को सरकार के साथ ही अधिकारियों के तानाशाही रवैये को भी झेलने को मजबूर होना पड़ता है। कोरोना के कहर से लाखों लोग मारे जा चुके हैं और करोड़ों इससे प्रभावित हो रहे हैं‚ लेकिन इसका सही आंकड़ा दुनिया के सामने अभी तक नहीं आ पाया है। इसका प्रमुख कारण चीन में मीडिया पर सख्त पाबंदी है। प्रसिद्ध मीडिया और डेटा कंपनी ‘ब्लूमबर्ग’ ने कोरोना वायरस से प्रभावित और मरने वाले लोगों पर चीन के अधिकारिक आंकड़ों को लेकर संदेह जताया था। इन सबके बीच चीन ने उस डॉक्टर को अपना निशाना बनाया था‚ जिन्होंने इस वायरस के भयावह प्रभावों को लेकर प्रशासन को आगाह किया था। चीनी नागरिक पत्रकार चेन कुशी वुहान से कोरोना पर रिपोटिग कर रहे थे और वे अचानक गायब हो गए। २०१९ में चीन के सबसे अमीर व्यक्ति जैक मा ने सरकार की खुलेआम आलोचना की थी‚लेकिन इसके कुछ दिन बाद वो रहस्यमय तरीके से ओझल हो गए। कई महीने बाद वो फिर सामने आए और चुप्पी साध ली। ऐसा उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी के दबाव में करने को मजबूर होना पड़ा। चीन की शासन प्रणाली समाजवादी गणराज्य है। आधुनिक चीन को लोकतंत्रीय गणराज्य बनाने की बात तो कही गई थी किन्तु एकदलीय शासन व्यवस्था के कारण यहां वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पाई।
वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन में माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता हैं। आधुनिक चीन के इतिहास में सबको पीछे छोड़कर लगातार तीसरी बार चीन के सर्वोच्च नेता चुने गए शी अपनी आर्थिक नीतियों की तारीफ करते नहीं थकते जबकि आम आदमी की स्थिति बहुत खराब है। वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि चीनी अर्थव्यवस्था की तरक्की दर एशिया प्रशांत क्षेत्र के बाकी हिस्से के मुकाबले पीछे रह जाएगी। ऐसा भी नहीं है कि चीन की अर्थव्यवस्था के पिछड़ने का कारण कोविड ही है। दरअसल‚ शी जिनपिंग कूटनीतिक मोर्चे पर भी लगातार असफल हो रहे हैं। पड़ोसी देश भारत से लगातार तनाव‚ ताइवान को दबा कर रखने की कोशिशें‚ हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों के प्रदर्शन‚ हिंद महासागर में वैश्विक चुनौतियां‚ यूक्रेन युद्ध में रूस के समर्थन से यूरोप और अमेरिका की नाराजगी के दूरगामी परिणाम आर्थिक मोर्चे पर नजर आने लगे हैं।
अब चीन में सरकार के खिलाफ जिस प्रकार के प्रदर्शन हो रहे हैं‚ वैसे बीते कई दशकों में नहीं देखे गए हैं। जीरो–कोविड को लेकर सरकार विरोधी प्रदर्शन आगे चलकर धार्मिक आजादी की ओर भी मुड सकता है। चीन में लाखों बौद्ध‚ मुसलमान और ईसाई रहते हैं। इस साम्यवादी देश में धार्मिक स्वतंत्रता का वादा तो किया गया है‚लेकिन इस स्वतंत्रता पर पाबंदियां भी लगाई हैं।
चीन की नौकरशाही शी जिनपिंग के शासन में ज्यादा केंद्रीकृत है‚ मतलब लोगों को सरकार के साथ ही अधिकारियों के तानाशाही रवैये को भी झेलने को मजबूर होना पड़ता है। कोरोना के कहर से लाखों लोग मारे जा चुके हैं और करोड़ों इससे प्रभावित हो रहे हैं‚ लेकिन इसका सही आंकड़ा दुनिया के सामने अभी तक नहीं आ पाया है॥